जीएसटी क्रांतिकारी सुधार बनाने के लिए इसे केंद्र सरकार के सूझबूझ भरे राजनीतिक नेतृत्व की जरुरत है।
जीएसटी लागू होने के बाद उपभोक्ता राजा बन जाएगा ! टैक्स चोरी बंद! जीडीपी में उछाल! राज्यों की ज्यादा कमाई! टैक्स अफसरों का आतंक खत्म! छोटे कारोबारियों के लिए बड़ी सुविधाएं! जीएसटी से अपेक्षाओं की उड़ान में अगर कोई कमी रह गई थी तो प्रधानमंत्री के 8 अगस्त के लोकसभा के संबोधन ने उसे पूरा कर दिया है.
दरअसल, 2014 के नरेंद्र मोदी और 2016 के जीएसटी में एक बड़ी समानता है. दोनों ही अपेक्षाओं के ज्वार पर सवार होकर आए हैं. 2014 में जगी उम्मीदों का तो पता नहीं, अलबत्ता प्रधानमंत्री के पास जीएसटी को ऐसा सुधार बनाने का मौका जरूर है जो अर्थव्यवस्था के एक बड़े क्षेत्र का कायाकल्प करने और दूरगामी फायदे देने की कुव्वत रखता है.
संयोग से जीएसटी को कामयाब बनाने के लिए प्रधानमंत्री के पास पर्याप्त राजनैतिक ताकत है, साथ ही संसद के दोनों सदनों ने अभूतपूर्व सर्वानुमति के साथ जीएसटी का जो खाका मंजूर किया है, उसके प्रावधान जीएसटी को क्रांतिकारी सुधार बना सकते हैं बशर्ते केंद्र सरकार सूझबूझ और संयम के साथ जीएसटी का राजनैतिक नेतृत्व कर सके.
संसद की दहलीज पार करते हुए जीएसटी को तीन ऐसी नेमतें मिल गई हैं जो भारत में इस तरह के (केंद्र व सभी राज्यों के सामूहिक) इतने बड़े सुधार के पास पहले कभी नहीं थीं.
एक- संसद से मंजूर जीएसटी विधेयक में राज्यों की अधिकार प्राप्त समिति के सभी सुझाव और केंद्र की सहमति शामिल है. जीएसटी के पूर्वज यानी वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) को 2005 में सहमति का यह तोहफा नहीं मिला था. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित सात राज्यों ने पूरे देश के साथ मिलकर वैट लागू नहीं किया. ये राज्य इस सुधार में बाद में शामिल हुए.
दो- जीएसटी काउंसिल के तौर पर देश को पहली बार एक बेहतर ताकतवर संघीय समिति मिल रही है, जिसमें राज्यों के सामूहिक अधिकार केंद्र से ज्यादा हैं. आर्थिक फैसलों के मामले में यह अपनी तरह का पहला प्रयोग है जो अच्छे जीएसटी की बुनियाद बनना चाहिए.
तीन- राज्य सरकारों के संभावित वित्तीय नुक्सान का बीमा हो गया है. यदि जीएसटी लागू करने से टैक्स घटता है तो केंद्र सरकार पांच साल तक इसकी भरपाई करेगी. पहली बार दी गई इस संवैधानिक गारंटी के बाद जीएसटी को उपभोक्ताओं के लिए कम बोझ वाला बनाने का विकल्प खुल गया है.
व्यापक सहमति, फैसले लेने की पारदर्शी प्रणाली और राज्यों के नुक्सान की भरपाई की गारंटी के बाद, यकीनन जीएसटी एक ढांचागत सुधार हो सकता है लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार को जीएसटी के गठन में छह व्यवस्थाएं अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करनी होंगी. यह काम सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है क्योंकि जीएसटी का नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली की टीम ही करेगी.
पहलाः मोदी यदि जीएसटी में ग्राहकों को राजा बनाना चाहते हैं तो उन्हें जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 18 फीसदी रखने के लिए राजनैतिक सहमति बनानी होगी. राज्यों में स्टेट वैट की स्टैंडर्ड दर 14.5 फीसदी है, जिसके तहत 60 फीसदी उत्पाद आते हैं जबकि सेंट्रल एक्साइज की 12.36 स्टैंडर्ड दर अधिकांश उत्पादों पर लागू होती है. सर्विस टैक्स की दर 15 फीसदी है. यदि इन तीनों को मिलाकर 18 फीसदी की स्टैंडर्ड जीएसटी दर तय हो सके तो यह जीएसटी की सबसे बड़ी सफलता होगी. इस दर के तहत कुछ उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स बढ़ेगा लेकिन कई दूसरे टैक्सों को मिलाने के फायदे इसे संतुलित करेंगे और महंगाई काबू में रहेगी. केंद्र सरकार राज्यों को इस संतुलन के लिए राजी कर सकती है क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक ने उनके घाटे की भरपाई को सुनिश्चित कर दिया है.
दूसराः ऊर्जा व जमीन आर्थिक उत्पादन की सबसे बड़ी लागत है लेकिन बिजली, पेट्रो उत्पाद और स्टांप ड्यूटी जीएसटी से बाहर हैं. इन पर टैक्स घटाए बिना कारोबार की लागत कम करना असंभव है. इन्हें जीएसटी के दायरे में लाना होगा. केंद्र सरकार तीन साल की कार्ययोजना के तहत जीएसटी काउंसिल को ऐसा करने पर सहमत कर सकती है.
तीसराः केंद्र को यह तय करना होगा कि जीएसटी कारोबार के लिए कर पालन की लागत (कॉस्ट ऑफ कंप्लायंस) न बढ़ाए. जीएसटी का ड्राफ्ट बिल खौफनाक है. इसमें एक करदाता के कई (केंद्र व राज्य) असेसमेंट, दर्जनों पंजीकरण, रिटर्न और सजा जैसे प्रावधान हैं. अगर इन्हें खत्म न किया गया तो जीएसटी टैक्स टेररिज्म का नमूना बन सकता है.
चौथाः जीएसटी की राह पर आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार को राज्यों में गैर-कर राजस्व जुटाने के नए तरीकों और खर्च कम करने के उपायों की जुगत लगानी होगी. वित्त आयोग और नीति आयोग इस मामले में अगुआई कर सकते हैं. जीएसटी कानून के तहत राज्यों में कर नियमों में आए दिन बदलाव की संभावनाएं सीमित करनी होंगी.
पांचवां स्वच्छता, बुनियादी ढांचे और अन्य जरूरतों के लिए स्थानीय निकायों को संसाधन चाहिए. जीएसटी में कई ऐसे टैक्स शामिल हो रहे हैं जो इन निकायों की आय का स्रोत हैं. केंद्र को यह ध्यान रखना होगा कि जिस तरह केंद्र के राजस्व में राज्यों का हिस्सा तय है, ठीक उसी तरह राज्यों के राजस्व में स्थानीय निकायों का हिस्सा निर्धारित हो.
छठा जीएसटी की व्यवस्था तय करते हुए केंद्र की अगुआई में जीएसटी काउंसिल को हर स्तर पर सभी पक्षों यानी उपभोक्ता, छोटे-बड़े उद्यमी, स्थानीय निकायों को चर्चा में जोडऩा होगा जो अभी तक नहीं किया गया है.
बहुत से लोग यह कहते मिल जाएंगे कि जीएसटी न होने से एक कमजोर जीएसटी होना बेहतर है लेकिन हकीकत यह है कि एक घटिया जीएसटी जो समस्याएं पैदा करेगा, उनकी रोशनी में जीएसटी की अनुपस्थिति ही बेहतर है. जीएसटी भारत में सुधारों की दूसरी पीढ़ी की सबसे बड़ी पहल है और अभी इसकी सिर्फ नींव रखी गई है.
यदि प्रधानमंत्री मानते हैं कि जीएसटी से भारत की सूरत बदल जाएगी तो उन्हें स्वयं इस सुधार का नेतृत्व करना चाहिए. यदि वे देश को एक दूरगामी, सहज और कम महंगाई वाला टैक्स सिस्टम दे सके तो यह आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी, जिसे लेकर इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा.