एक थी अर्थव्यवस्था। बाशिंदे थे मेहनती, ग्रोथ की कृपा हो गई। मगर आर्थिक ग्रोथ ठहरी कई मुंह वाली देवी। ऊर्जा, ईंधन उसकी सबसे बडी खुराक। वह मांगती गई, लोग ईंधन देते गए। देश में न मिला तो बाहर से मंगाने लगे। ईंधन महंगा होने लगा मगर किसको फिक्र थी। फिर इस देवी ने पहली डकार ली। तब पता चला कि ग्रोथ का पेट भरने में महंगाई आ जमी है। ईंधन के लिए मुल्क पूरी तरह विदेश का मोहताज हो गया है। आयात का ढांचा बिगड़ गया है इसलिए देश मुद्रा ढह गई है। और अंतत: जब तक देश संभलता ग्रोथ पलट कर खुद को ही खाने लगी। यह डरावनी कथा भारत की ही है। एक दशक की न्यूनतम ग्रोथ, जिद्दी महंगाई, सबसे कमजोर रुपये और घटते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण हम पर अब संकट की बिजली कड़कने लगी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अपनी बुनियादी गलतियों को गिनने का वक्त आ गया है। बिजली भयानक कमी और ऊर्जा नीति की असफलता ताजा संकट की सबसे बड़ी सूत्रधार है।
डरावनी निर्भरता
भारत का आयात एक हॉरर स्टोरी है। पिछले एक साल में देश का तेल आयात करीब 46 फीसदी बढ़ा और कोयले का 80 फीसदी। यह दोनों जिंस आयात की टोकरी में सबसे बडा हिससा घेर रहे हैं। दरअसल प्राकृतिक संसाधनों को संजोने, बांटने और तलाशने में घोर अराजकता ने हमें कहीं का नही छोड़ा है। कोयले की कहानी डराती है। भारत की 90 फीसदी बिजली कोयले से बनती है और इस पूरे उजाले व ऊर्जा की जान भीमकाय सरकारी कंपनी कोल इंडिया हाथ में है जो इस धराधाम की सबसे बड़ी कोयला कंपनी है। पिछले दो साल में जब बिजली की मांग बढ़ी तो कोयला उत्पादन घट गया। ऐसा नहीं कि देश में कोयला कम है। करीब 246 अरब टन का अनुमानित भंडार है जिस, इसके बाद कोल इंडिया की तानाशाही और कोयला ढोने वाली रेलवे का चरमराता नेटवर्क.. बिजली कंपनियां कोयला आयात न करें तो क्या करें। इसलिए कोयला भारत का तीसरा सबसे बड़ा आयात है। अगले पांच साल में कोयले की कमी 40 करोड़ टन होगी, यानी और ज्यादा आयात होगा। पेट्रो उत्पादों का हाल और भी बुरा है। भारत अपनी 80 फीसदी से ज्यादा पेट्रो मांग के लिए आयात पर निर्भर है। देश में घरेलू कच्चा तेल उत्पादन पिछले दो साल में एक-दो फीसद से जयादा नहीं बढ़ा। तेल खोज के लिए निजी कंपनियों का बुलाने की पहली कोशिश (नई तेल खोज नीति 1990) कुछ सफल रही लेकिन बाद में सब चौपट। कंपनियों के उत्पादन में हिस्सेदारी की पूरी नीति सरकार के गले फंस गई है। तेल क्षेत्र लेने वाली निजी कंपनिया उत्पादन घटाकर सरकार को ब्लैकमेल करती हैं। सरकार असमंजस मे हैं कि निजी कंपनियों के साथ उत्पादन भागीदारी की प्रणाली अपनाई जाए या रॉयल्टी टैक्स की। अलबत्ता ग्रोथ की खुराक को इस असमंजस से फर्क नहीं पड़ता, इसलिए पिछले दो साल में कीमतें बढ़ने के बाद भी पेट्रो उतपादों की मांग नहीं घटी। तेल आयात बल्लियों उछल रहा है।