मेरी कमाई देश में है। एक भी पैसा देश से बाहर से नहीं गया यानी सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ। क्या मैं टैक्स देने से मना कर सकता हूं ?? कंपनियों को मुफ्त में कोयला खदान देने से देश को नुकसान न होने की सरकारी दलील पर अगर आपके दिमाग में ऐसा कोई सवाल उठे तो आप कतई गलत नहीं हैं। कंपनियों को मिली खदानों कोयला धरती के गर्भ में सुरक्षित होने से सरकार को कोई यदि नुकसान नहीं दिखता तो फिर आप भी कमाइये, देश में खर्च कीजिये और टैक्स मत दीजिये। सरकार को क्या नुकसान हो रहा है। पैसा तो देश में ही है। कोयला खदानों की मुफ्त बंदरबांट में देश को हानि न होने की यह सूझ उस नए अर्थशास्त्र का हिस्सा है जिसे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की टीम देश के गले उतारना चाहती है। यह दागदार हिसाब संपत्तियों के मूल्यांकन के शास्त्रीय से लेकर बाजारवादी सिद्धांतों तक का गला घोंट देता है और राजस्व का नुकसान आंकने के बजटीय सिद्धांतों को दफ्न कर देता है। सरकार के समझदार मंत्री देश को शर्मिंदा करने वाला यह अर्थशास्त्र सिर्फ इसलिए पढ़ा रहे हैं ताकि प्राकृतिक संसाधनों को बांटने के अधिकार की कीमत वसूलने वाले नेताओं (रेंट सीकिंग) और उनकी चहेती कंपनियों (क्रोनी कैपटिलिज्म) के बीच गठजोड़ को सही साबित किया जा सके। यह चोरी के बाद सीनाजोरी का अर्थशास्त्र है।
दागी गणित
सरकार और कांग्रेस देश को शायद सिरे से मूर्ख समझती है। वह देश के सामान्य आर्थिक ज्ञान का मखौल बना रही है। सदियों से बाजारी, कारोबारी और संपत्ति के हिसाब में तपे हुए इस देश का एक अदना सा किसान भी जानता है कि