समृद्धि लाने वालों का सम्मान करें, उन पर शक उचित नहीं है.’’ लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनकर टैक्स अधिकारी जरूर मुस्कराए होंगे, क्योंकि सच तो वह है जो राजस्व विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के बंद कमरों में उनसे कहा जाता है.
पिछले छह-सात वर्षों से, भारत की सरकारें कर प्रशासन को लेकर गहरी दुविधा में हैं. वे कर नियमों में उदारता और सख्ती के बीच सही संतुलन बना पातीं, इससे पहले कुख्यात टैक्स नौकरशाही ने कर और वित्तीय कामकाज के कानूनों को निर्मम बनाकर, करदाताओं को सताने की अकूत ताकत जुटा ली.
अलबत्ता नया आयकर कानून तो कब से नहीं आया और जीएसटी तो टैक्स प्रणाली सहज करने के वादे के साथ लाया गया था. तो फिर ऐसा क्या हो गया कि टैक्स नौकरशाही कारोबारियों के लिए आतंक का नया नाम बन गई है.
टैक्स टेरर का यह दौर ऐंटी मनी लॉन्ड्रिंग कानून (2005 से लागू 2009 और 2013 में संशोधन) की देन है जिसने कारोबार को लेकर न केवल नौकरशाही का नजरिया बदल दिया बल्कि उन्हें भयानक ताकत भी दे दी. जन्म से ही विवादित इस कानून में अब तक के सबसे सख्त प्रावधानों (संपत्ति की कुर्की, असंभव जमानत) की मदद से प्रवर्तन निदेशालय (एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट) देश की सबसे ताकतवर सतर्कता एजेंसी बन गई है.
मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ग्लोबल मुहिम में भारत अजीबोगरीब अंदाज में शामिल हुआ. पहली एनडीए सरकार (वाजपेयी) के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के बीच सरकार ने विदेशी मुद्रा विनिमय को भयानक फेरा कानून की जकड़ से मुक्त किया था. इसकी जगह फेमा लाया गया जो विदेशी मुद्रा नियम उल्लंघन को सिविल अपराध की श्रेणी में रखता था. लेकिन तब तक आतंक को वित्त पोषण और नशीली दवाओं के कारोबार को रोकने के लिए एफएटीएफ (1989) और संयुक्त राष्ट्र की अगुआई में मनी लॉन्ड्रिंग कानूनों पर ग्लोबल सहमति (1998) बन चुकी थी, जिसने अमेरिका पर आतंकी हमले (9/11) के बाद तेजी पकड़ी. नतीजतन, विदेशी मुद्रा के इस्तेमाल को उदार करने वाला फेमा और कारोबार पर सख्ती का ऐंटी मनी लॉन्ड्रिंग कानून एक साथ संसद में (2002-यशवंत सिन्हा) में पेश हुए.
2009 के बाद इस कानून के दांत दिखने शुरू हुए. 2012 में पिछली तारीख से टैक्स (वोडाफोन) लगाने का विवाद उभरा और तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी यह कहते सुने गए कि भारत कोई टैक्स हेवेन नहीं है. इस वक्त तक राजस्व नौकरशाही देश के हर कारोबार को संभावित मनी लॉन्ड्रिंग के चश्मे से देखने लगी थी. ऐंटी मनी लॉन्ड्रिंग कानून इतना खौफनाक इसलिए है क्योंकि
· यह अकेला कानून है जिसमें ईडी के अधिकारी सिर्फ अपने आकलन (रीजन टु बिलीव) के आधार पर संपत्ति जब्त कर सकते हैं. अदालत की मंजूरी जरूरी नहीं है. अगर मनी लॉन्ड्रिंग की गई संपत्ति विदेश में है तो बराबर की संपत्ति भारत में जब्त होगी.
· करीब दो दर्जन प्रमुख कानून और 75 से अधिक अपराध इसके दायरे में हैं. इनमें ट्रेडमार्क, पर्यावरण नष्ट करने के अपराध भी हैं. इसके अलावा असंख्य संभावित अपराधों (प्रेडिकेट ऑफेंस) में भी मनी लॉन्ड्रिंग लग सकता है. इनकम टैक्स और जीएसटी इसके तहत नहीं है लेकिन टैक्स फ्रॉड से जुड़े मामलों पर अधिकारी मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाकर संपत्ति जब्त कर सकते हैं.
· 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक इस कानून में जमानत भी मुश्किल थी. अब भी आसान नहीं है.
सुस्त अभियोजन के लिए कुख्यात ईडी ने 2,000 से ज्यादा फाइलें खोल रखी हैं लेकिन आधा दर्जन मामलों का भी अभियोजन नहीं हुआ है. 2005 से अब तक ऐंटी मनी लॉन्ड्रिंग में कोई बरी भी नहीं हुआ है. वकील जानते हैं कि किसी भी अपराध में यह कानून लागू हो सकता है और कारोबारी का सब कुछ खत्म हो सकता है. आयकर के तहत कुछ ताजा बदलाव (अभियोग चलाने के कठोर प्रावधान या विदेश में काला धन छिपाने का ताजा कानून) भी इसी से प्रेरित हैं.
भारत की वित्तीय सतर्कता एजेंसियों के दो चेहरे हैं. एक के जरिए वे सियासत के इशारे पर बड़े मामलों (जैसे चिदंबरम) में सुर्खियां बटोरती हैं और अंतत: अदालत (2जी, कोयला, कॉमनवेल्थ) में ढेर हो जाती हैं जबकि दूसरा चेहरा अपनी ताकत से कारोबारियों का डराता है. सनद रहे कि लचर व्यवस्था में बेहद सख्त कानून उत्पीड़क बन जाते हैं और भ्रष्टाचार बढ़ाते हैं.
भारत में काले धन की धुलाई यानी मनी लॉन्ड्रिंग कितनी कम हुई? कुछ हुआ होता तो नोटबंदी का कहर न टूटा होता! भाजपा, यूपीए की सरकार के दौरान टैक्स आतंक को कोस कर सत्ता में आई थी. पर आज प्रधानमंत्री ही लाल किले से टैक्स के आतंक को बिसूर रहे हैं.
मजा देखिए कि प्रधानमंत्री अपनी ही सरकार से यह कह रहे हैं कि सभी कारोबारियों को टैक्स चोर न समझा जाए ! बेचारे कारोबारी उनके लिए तो
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मिरे हक़ में फ़ैसला देगा!