अगर आप यस बैंक के उन अभागे जमाकर्ताओं में हैं जिनकी करीब 2.09 लाख करोड़ रुपए की बचत, भारत के चौथे सबसे बड़े निजी बैंक की बदहाली में फंस गई है तो वजह यह है कि हम सो रहे थे, सरकार नहीं. वह तो इस घोटाले की हिफाजत कर रफ्तार दे रही थी.
• यस बैंक पर बीते साल रिजर्व बैंक ने दो बार पेनाल्टी लगाई, बाजार ने बैंक को पूंजी देने से मना कर दिया, फिर भी यह बैंक डिपॉजिट कैसे लेता रहा?
• बीते साल मई में रिजर्व बैंक ने अपने एक पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी को यस बैंक के निदेशक मंडल में तैनात किया था. उन्हें बैंक में राणा कपूर के वे धतकरम क्यों नजर नहीं आए जिन्हें आज प्रवर्तन निदेशालय की बहादुरी बताकर गाया-बजाया जा रहा है ?
• बैंक निदेशकों पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप था, रेटिंग एजेंसियां साख गिरा चुकी थीं. फिर भी सेबी की नाक के नीचे म्युचुअल फंड, इसके शेयर या बॉन्ड में निवेश क्यों करते रहे?
• पिछले चार साल में कर्ज और खराब कॉर्पोरेट गवर्नेंस के कारण डूबी हर बड़ी कंपनी (जेट एयरवेज, अनिल अंबानी, देवान हाउसिंग, आइएलऐंडएफएस, सीजी पावर, कॉक्स ऐंड किंग) से रिश्तों के बावजूद यस बैंक को सरकार के यूपीआइ (डिजिटल पेमेंट सिस्टम) के बाजार में सबसे बड़ा हिस्सा कैसे मिल गया?
• रिजर्व बैंक ने यस बैंक के एटी-1 बॉन्ड्स को कचरा घोषित कर दिया है और इनमें निवेशकों के करीब 10,800 करोड़ रुपए फंस गए हैं. सबसे तगड़ी चोट म्युचुअल फंड को लगेगी यानी छोटे निवेशकों को. मगर यस बैंक तो बीते साल तक खुदरा निवेशकों को भी यही बॉन्ड बेच रहा था, जिस पर बाजार से महंगा ब्याज दिया जा रहा था!
• स्टेट बैंक करीब 1.68 लाख करोड़ रुपए के फंसे हुए कर्ज (31 दिसंबर को खत्म तिमाही) में दबा है, यस बैंक में 20,000 करोड़ रुपए डालने के बाद उसकी क्या हालत होगी? स्टेट बैंक को 2019 के वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक ने करीब 11,000 करोड़ रुपए के बकाया कर्ज को छिपाने के मामले में पकड़ा और बैंक को 6,968 करोड़ रुपए का घाटा हुआ.
• एलआइसी के 21,624 करोड़ रुपए पचा कर भी आइडीबीआइ बैंक नहीं उबरा. स्टेट बैंक व एलआइसी की कृपा जब तक असर करेगी तब तक यस बैंक के जमाकर्ता भाग चुके होंगे और तब इस मुर्दा बैंक का बोझ उद्धारक बैंकों के जमाकर्ता उठाएंगे या करदाताओं का पैसा सरकारी बैंकों की पूंजी में डाला जाएगा.
अगर आपको यह सब पता होता तो क्या यस बैंक में पैसा रखते? मुसीबत यही है कि बैंक हमारे बारे में जितना जानते हैं हम अपने बैंक के बारे में उसका दस फीसद भी नहीं जानते. बैंक यानी भरोसे पर, हमने कुछ इतना अंधा भरोसा कर लिया है कि हम ठगे जाने को ही देशभक्ति समझ बैठे हैं.
भारतीय बैंकिंग अस्तित्व के संकट में है. बैंकों का कारोबारी मॉडल दरक गया है. नियामक, चोरों के साथ गलबहियां डालते हैं, हर नई सरकार क्रोनी बैंकिंग का नया मॉडल ईजाद करती है या कर्ज माफिया बांटती है और फिर करदाता के पैसे को डूबते बैंकों में झोंक कर सुधारों की टेर लगाती है.
यह संकट कर्ज लेने वाली कंपनियों पर नहीं, बल्कि अबोध जमाकर्ताओं पर है, यह खेल जिनकी बचत पर हो रहा है. भुगतते हैं वे छोटे निवेशक भी जिनकी बचत म्युचुअल फंड के जरिये इन बैंकों के शेयरों या बॉन्ड में लगाई जाती है. इसलिए...
• शक करिए अगर कोई बैंक आपको बाजार से ऊंची ब्याज दर पर बचत या निवेश का लालच देता है. जैसा कि (एटी-1 बॉन्ड) में यस बैंक ने किया. ऐसी किसी भी पेशकश की उम्र लंबी नहीं होती.
• बैंकों के लुभावने विज्ञापनों को पढ़ने से ज्यादा संकट की आहट पर कान रखना जरूरी है. आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि बैंक ने कर्ज किसे दे रखा है और बकाया कर्ज का उसके कमाई या मुनाफों से क्या रिश्ता है.
• भारतीय बैंकिंग जमाकर्ताओं के दम पर चलती है. सरकारें सस्ते कर्ज की बरसात चाहती हैं जो एक सीमा से अधिक होने पर बचतों को डुबा देती है.
• आपका म्चयुचुल फंड किस बैंक में पैसा लगा रहा है, इसका पता जरूर रखिए.
याद रखिए, वित्तीय जानकारियों से लैस नागरिक, सरकारों को कभी नहीं भाते क्योंकि वे आंख मूंद कर भरोसा नहीं करते. जितना वक्त हम सियासत को समझने में लगाते हैं, उसका आधा वक्त भी अगर वित्तीय समझ में लगा दें तो यस बैंक जैसी नौबत नहीं आएगी.
बैंक के बारे में हर छोटी-बड़ी बात जानना जमाकर्ताओं और निवेशकों का हक है. हम बैंक के बंधुआ नहीं हैं. बैंकों को हमारी जरूरत है. बैंकिंग पारदर्शिता के मौजूदा ढांचे में व्यापक बदलाव तभी आएंगे जब हम सरकारों को सवालों के खौलते पानी में बार-बार डुबाएंगे.
आपकी गाढ़ी कमाई संकट में है. जागिए नहीं तो डूब जाएंगे.