वित्तीय बाजारो में ज्यादा बेफिक्री ठीक नहीं। यहां सशंकित रहना ही समझदारी है। 2013 के नोबल विजेता फामा, शिलर और हैनसेन के अनुभवसिद्ध (इंपीरिकल) शोध यही साबित करते हैं।
स्टाकहोम की नोबल पुरस्कार समिति अर्थशास्त्र
के नोबेल के लिए किसी इतिहासकार या मनोवैज्ञानिक की तलाश में तो यकीनन नहीं थी। अर्थशास्त्र
के लिए 555 बार पुरस्कार दे चुके नोबल वाले 2013 में ऐसे अर्थशास्त्रियों को
नवाजना चाहते थे जो दरकती बैंकिंग, कर्ज के जाल फंसती सरकारों और मंदी में डूबती
उतराती दुनिया को शोध, सोच और संकल्पना के नए सूत्र दे सकें। लेकिन खोज ऐसे
अर्थशास्त्रियों पर जाकर खत्म हुई जो कहते हैं कि आम लोगों को शेयर, बांड आदि
बाजारों पर ज्यादा मगजमारी नहीं करनी चाहिए क्यों कि वित्तीय बाजारों का मिजाज
समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यूजेन फामा, लार्स पीटर हेनसेन और रॉबर्ट जे
शिलर को नोबेल मिलना दिलचस्प और प्रतीकात्मक है। जीवन के साठ बसंत देख चुके तीनों
अमेरिकी विशेषज्ञ अर्थशास्त्री कम,
इतिहास और मानव स्वभाव के अध्येता ज्यादा हैं। इन्होंने नए सिद्धांत को
गढ़ने के बजाय वित्तीय बाजारों के इतिहास और मानव मनोविज्ञान को बांचा है और
साबित किया है कि निवेशकों के फैसले अक्सर तर्क-तथ्य पर आधारित नहीं होते। पिछले
कुछ वर्ष बाजारों के फेर में बैंकों, सरकारों और निवेशकों की बर्बादी के नाम दर्ज हैं इसलिए गणितीय संकल्पनाओं से लंदे फंदे