वह एक अनोखा दृश्य था। सरकार दूरसंचार स्पेकट्रम की नीलामी की ‘असफलता’ का उत्सव मना रही थी। सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्री वित्त, संचार और सूचना प्रसारण, इस ‘नाकामी’ की सहर्ष घोषणा कर रहे थे कि दुनिया के सबसे तेज बढ़ते दूरसंचार बाजार में कंपनियां अपना कारोबार बढ़ाने में दिलचस्पी खो चुकी हैं। उन्हें अब दूरसंचार का बुनियादी कच्चा माल अर्थात स्पेक्ट्रम खरीदने में रुचि नही है जिसके जरिये उनके मुनाफे और कारोबार में तरक्की होनी है। हकीकत यह है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी असफल नहीं हुई। इस नीलामी में कंपनियों ने चतुराई के साथ भविष्य की ग्रोथ और सस्ते स्पेक्ट्रम को चुनते हुए मुनाफे का माल उठा लिया। यह सरकार के लिए दूरसंचार बाजार की हकीकत का कड़वा अहसास था। दरअसल सरकार और दूरसंचार नियामक ने बाजार को समझने में फिर चूक की थी मगर सरकार के काबिल मंत्रियों इसे एक संवैधानिक संस्था पर जीत के बावले जश्न में बदल दिया। अंधिमुत्थु राजा के घोटाले से हुए नुकसान के ऑडिट आकलन की पराजय का नगाड़ा बज गया। मजा देखिये फायदा फिर कंपनियों के खाते में गया।
नाकामी का जश्न
आंकड़े खंगालने और कंपनियों की कारोबारी सूझबूझ को समझने के बाद नीलामी के असफल होने के ऐलान पर शक होने लगेगा। सरकार ने 28000 करोड़ की न्यूनतम कीमत वाला जीएसएम सेल्युलर (1800 मेगाहर्ट्ज) स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए रखा था। इसके साथ सीडीएमए (800 मेगाहर्ट्ज) स्पेक्ट्रम भी था। दोनों की बिक्री से कुल 40,000 करोड़ रुपये के राजसव का अंदाज किया गया था, क्यों कि बोली ऊंची आने की उम्मीद थी। नीलामी में करीब 9407.6 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम बिका जो जीएसएम रिजर्व प्राइस के आधार पर संभावित राजस्व का लभगग 35 फीसदी है। सीडीएमए का कोई ग्राहक नहीं था क्यों कि बाजार बढ़ने की उम्मीद सीमित है। टाटा ने बोली से नाम वापस ले लिया जबकि रिलायंस व एमटीएस को स्पेक्ट्रम की जरुरत नहीं थी। इसलिए यह नीलामी केवल केवल जीएसएम स्पेक्ट्रम