मा नव इतिहास में ऐसे मौके कम मिलते हैं जब एक
बड़ा संकट, आने वाले दूसरे संकट के प्रशिक्षण सत्र में बदल गया हो. कोरोना वायरस के पंजे में
थरथराती दुनिया सीख रही है कि बदतर को रोकने की कोशिश ही फिलहाल सबसे सफल संकट प्रबंधन है.
इस वायरस से तीन माह
की जंग बाद तीन बातें स्पष्ट हो गई हैं. एक—वायरस अमर नहीं है.
इसका असर खत्म होगा. दो—इस वायरस से न सब
इटली हो जाएंगे और न ही सिंगापुर (न एक मौत न लॉकडाउन). सब अपने
तरीके से भुगतेंगे. तीन—वायरस से जिंदगी बचाने की
कोशिशें लोगों की जीविका और कारोबारों पर इस शताब्दी का सबसे बड़ा संकट बनेंगी.
कोरोना से लड़ाई अब
दोहरी है. ज्यादातर देश सेहत और अर्थव्यवस्था, दोनों का विनाश सीमित करने में जुटे हैं. भारत में संक्रमण
रोकने की कवायद जोर पकड़ रही है लेकिन आर्थिक राहत में भारत पिछड़ गया है सनद रहे
कि 2008 में लीमन बैंक के
डूबने के पंद्रह दिन के भीतर पुनरोद्धार पैकेज (सीआरआर और
उत्पाद शुल्क में कमी) आ गया था. लेकिन बेहद तंग आर्थिक विकल्पों के बीच सहायता जारी करने में देरी हुई. सरकार
और रिजर्व बैंक ने इस सप्ताह जो दो पैकेज घोषित किये हैं जिनका आकार अन्य देशों और भारतीय
अर्थव्यवस्था को होने नुकसान की तुलना में इस बहुत छोटा है, और इनके असर भी सीमित रहने
वाले हैं.
भारत के कोरोना राहत
पैकेंजों का जमीनी असर समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि दुनिया के अन्य देश और केंद्रीय
बैंक कोरोना का आर्थिक कोहराम से निबटने के लिए क्या कर रहे हैं.
अमेरिका को मंदी से
बचाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप, अपनी संसद दो
ट्रिलियन डॉलर के पैकेज पर मना रहे हैं. अमेरीकियों को एक मुश्त 3,000 डॉलर (करीब 2.25 लाख रुपए) दिए जाने का
प्रस्ताव है. केंद्रीय बैंक (फेडरल रिजर्व) ब्याज दरें शून्य करते हुए बाजार में सस्ती
पूंजी (4 ट्रिलियन डॉलर तक
छोड़ने की तैयारी) का पाइप खोल दिया है.
ब्रिटेन की सरकार
टैक्स रियायतों, कारोबारों को सस्ता
कर्ज, तरह-तरह के अनुदान सहित 400 अरब डॉलर का पैकेज
लाई है जो देश के
जीडीपी के 15 फीसद बराबर हैं.
बैंक ऑफ इंग्लैंड ब्याज दरें घटाकर बाजार में पूंजी झोंक रहा है. कोरोना से बुरी तरह तबाह इटली की
सरकार ने 28 अरब डॉलर का पैकेज
घोषित किया है, जिसमें विमान सेवा
एलिटालिया का राष्ट्रीयकरण शामिल है.
इमैनुअल मैकरां के
फ्रांस का कोरोना राहत पैकेज करीब 50 अरब डॉलर (जीडीपी का 2 फीसद) का है. स्पेन
का 220 अरब डॉलर, स्वीडन 30 अरब डॉलर, ऑस्ट्रेलिया 66 अरब डॉलर और
न्यूजीलैंड का पैकेज 12 अरब डॉलर (जीडीपी का 4 फीसद) का है. सिंगापुर अपनी 56 लाख की आबादी के लिए 60 अरब
डॉलर का पैकेज लाया है.
अन्य देशों के
कोरोना राहत पैकेजों के मोटे तौर पर चार हिस्से हैं.
एक—रोजगार या धंधा गंवाने वालों
को सीधी सहायता,
दो—डूबते कारोबारों की
सीधी मदद
तीन—सस्ता कर्ज
और चार— चिकित्सा क्षेत्र
में निवेश.
भारत सरकार का करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये
का पैकेज कोरोना प्रभावितों को सांकेतिक मदद पर केंद्रित है. जिसमें सस्ता अनाज प्रमुख
है. जिसके लिए पर्याप्त भंडार है. रबी की की खरीद से नया अनाज आ जाएगा. किसान सहायता निधि और अन्रय नकद भुगतान स्कीमों
की किश्तें जल्दी जारी होंगी. इसके लिए बजट में आवंटन हो चुका है. उज्जवला के तहत मुफ्त
एलपीजी सिलेंडर के लिए तेल कंपनियों को सब्सिडी भुगतान रोका जाएगा.
भारत में भविष्य निधि पीएफ का संग्रह करीब 11 लाख करोड़ रुपये का है.
इससे एडवांस लेने की छूट और छोटी कंपनियों में नियोक्ताओं के अंशदान को तीन माह के
टालने के लिए इस निधि का भरपूर इस्तेमाल होगा.
रिजर्व बैंक
सरकार के मुकाबले रिजर्व
बैंक ने ज्यादा हिम्मत दिखाई है. सभी बैंकों से सभी कर्जों (हाउसिंग, कार, क्रेडिट कार्ड
सहित) पर तीन माह तक किश्तों का भुगतान टालने को कहा है. ब्याज दरों में अभूतपूर्व कमी
की है और वित्तीय तंत्र में करीब 3.74 लाख करोड़ की पूंजी बढ़ाई है ताकि कर्ज की कमी
न रहे.
असर
- अन्य देशों की तरह भारत
सरकार कोरोना के मारे मजदूरों, छोटे कारोबारियों, नौकरियां गंवाने
वालों को सरकार कोई नई सीधी मदद नहीं दे सकी है. भविष्य निधि से मिल रही रियायतों के लाभ केवल 15-16
फीसदी प्रतिष्ठानों को मिलेंगे.
- रिकार्ड घाटे, राजस्व में कमी के कारण भारत का
राहत पैकेज इसके जीडीपी की तुलना में केवल 0.8 फीसदी है जबकि अन्य देश अपने जीडीपी
का 4 से 11% के बराबर पैकेज लाए हैं.
- रिजर्व बैंक ब्याज दर
कटौती के बाद बैंक दुविधा में हैं. डूबती अर्थव्यवस्था में कर्ज की मांग तो आने से
रही लेकिन ब्याज दर कटने ने जमा रखने वाला और बिदक जाएंगे. कर्ज के किश्तें टालने
से बैंक बुरी तरह कमजोर हो जाएंगे. अकेले स्टेट बैंक के करीब 60000 करोड़ रुपये फंस
जाएंगे. बाजार में जो अतिरिक्त पैसा दिया गया है उसका ज्यादातर इस्तेमाल सरकारें कर्ज
लेने में करेंगी.
- अमेरिकी डॉलर दुनिया
की केंद्रीय करेंसी है इसलिए वह डॉलर छाप कर बडे पैकेज ला सकता है. भारत के पास यह
रुपया छापकर एसा करने का विकल्प नहीं है क्यों कि इससे महंगाई बढ़ती है. बडा पैकेज
बडे घाटे की वजह बनेगा जो रुपये की कमजोर करेगा. इसलिए इन छोटे व सीमित पैकेजों के
डॉलर के मुकाबले रुपया संतुलित होता देखा गया है.
सरकार ओर रिजर्व बैंक
को इस बात का बखूबी अहसास है कि यह मंदी नगरीय अर्थव्यवस्थाओं, छोटे कारोबारों, सेवा क्षेत्र की है. जहां से बेकारी का विस्फोट होने वाला है. पहले से घिसटता
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र उत्पादन रुकने के बाद धराशायी हो जाएगा. विमानन, होटल, आटोमोबाइल, भवन निर्माण,
बुनियादी ढांचा आदि क्षेत्रों में कंपनियां दीवालिया होंगी और बकाया
कर्ज बढ़ेगा.
यही वजह है कि रिजर्व बैंक ने इतिहास में पहली किसी मौद्रिक
नीति में देश को यह नहीं बताया कि इस साल भारत की विकास दर कितनी रहने वाली है. रिजर्व
बैंक ने संकेतों में गहरी मंदी के लिए तैयार रहने को कहा है. अन्य एजेंसियों से जो
आकलन मिल रहे हैं उनके मुताबिक इस इस साल (2020-21) में भारत की विकास दर 2 से 2.5% फीसदी रहने वाली है जो 1991 के बाद न्यूनतम
होगी. अचरज नहीं अप्रैल-जून की तिमाही विकास दर नकारात्मक हो जाए जो एक अभूपूर्व घटना
होगी
सनद रहे कि एक
छोटी-सी मंदी यानी तीन साल में विकास दर में 2.5 % गिरावट, करीब एक दर्जन बड़ी कंपनियों, असंख्य छोटे
उद्योगों और चौथे सबसे बड़े निजी बैंक तो ले डूबी है, कई सरकारी बैंकों के विलय की नौबत है. फिर यह तो इस सदी का
सबसे बड़ा आर्थिक संकट है.
इस समय आशंकित होने
में कोई हर्ज नहीं. डर सतर्क करता है. यह वक्त सतर्क समझदारी और उम्मीद भरी चेतना
के साथ जीने का है.