एक ट्विटर चर्चा ..
पहला - सरकार
ने एक्साइज ड्यूटी घटाकर पेट्रोल डीजल सस्ता किया. बधाई दीजिये संवेदनीशलता को
दूसरा – दस रुपये बढ़ाकर नौ रुपये कम किये, कीमत तो वहीं है जहां मार्च से पहले थी, पहले बढ़ाओ फिर घटा कर ताली बजवाओ.
यदि कोई इन राजनीतिक स्वादानुसार बहसों के परे भारत की महंगाई का
सबसे विद्रूप सच समझना चाहता है तो सरकार का ताजा फैसला उसकी नज़ीर है. दरअसल भारत में महंगाई जहां से निकलती वहीं से उसे कम
किया जा सकता है और सरकार अब हार कर इस सच को स्वीकार करना पड़ा है कि कीमतें न
तो रिजर्व बैंक के कर्ज सस्ता करने से घटेंगी न और बयानबाजी से.
हमारी ऊर्जा महंगाई के लिए पूरी दुनिया को लानते भेजने के बाद अंतत: सरकार ने यह मान लिया कि यह टैक्स ही है महंगाई की
जड़ है.
फॉसिल फ्यूल यानी जैव ईंधन यानी कोयला और पेट्रो उत्पाद भारत में
ऊर्जा का प्रमुख स्रोत हैं.. भारत
दुनिया के उन गिने चुने देशों में होगा जहां ऊर्जा और ईंधन यानी कच्चा तेल,
पेट्रोल डीजल कोयला बिजली और यहां तक कि सौर
ऊर्जा का साजोसामान पर भी भारी टैक्स लगता है. यह टैक्स न केवल हमें महंगाई के नर्क में जला रहे हैं बल्कि
भारतीय उत्पादों और सेवाओं की प्रतिस्पर्धा खत्म कर रहे हैं
केंद्र सरकार के कुल टैक्स राजस्व का करीब 25 फीसदी हिस्सा ऊर्जा से आता है राज्यों के कुल राजस्व
का 13 फीसदी ऊर्जा से मिलता है
पेट्रोल डीजल पर एक्साइज कटौती की रोशनी में चलते हैं भारत के टैक्स
भवन में जहां ऊर्जा पर टैक्स से थोक में महंगाई बन रही है
ईंधन और महंगाई
पेट्रो उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी क्यों घटी क्यों कि रिजर्व बैंक ने कारोबारों और उपभोक्ताओं की लागत का आकलन
करने के बाद कहा था कि ज्यादातर महंगाई तो ईंधन से
आ रही है. रिजर्व बैंक ने अपनी मॉनेटरी
पॅालिसी रिपोर्ट 2021 में बताया था कि
खुदरा और थोक दोनों ही वर्गों में ईंधन की महंगाई जुलाई 2020 से शुरु हो गई थी. जो पेट्रोल डीजल कीमतों में ताजा यानी चुनाव बाद मार्च के बाद
बढ़ोत्तरी का दौर शुरु होने से पहले तक दहाई के अंकों में पहुंच चुकी थी.
भारत की अधिकांश महंगाई जो ऊर्जा की कीमतों से निकल रही है, उसकी बड़ी वजह खुद सरकार के टैक्स हैं इन्हें टैक्स
कम किये बिना यह आग ठंडी कैसे होती.
इसलिए जब सरकार ने टैक्स का लोभ कम किया तो कीमतों का सूचकांक नीचे
आया.
पेट्रोल
डीजल पर उत्पाद शुल्क या एक्साइज और वैट की चर्चा होतीहै लेकिन यहां तो टैक्सों
का पूरा परिवार ही पेट्रो उत्पादों के पीछे पड़ा है
इंपोर्टेड महंगाई
- भारत सरकार
इंपोर्टेड कच्चे तेल पर एक रुपये प्रति टन बेसिक कस्टम ड्यूटी, इतनी ही काउंटरवेलिंग ड्यूटी और 50 रुपये प्रति टन का राष्ट्रीय
आपदा राहत शुल्क लगाती है.
- भारत अपनी
जरुरता का 85.5 फीसदी तेल आयात करता है मार्च 2022 में समाप्त वर्ष में कच्चे
तेल का कुल आयात 212 मिलियन टन रहा जो अभी कोविड के पहले के आयात (227
मिलियन टन) से कम है.
- देश के
भीतर निकाले जाने वाले कच्चे तेल पर एक रुपये प्रति टन बेसिक एक्साइज ड्यूटी, 50 रुपये प्रति टन का आपदा राहत शुल्क तो लगता ही इसके अलावा 20
फीसदी का सेस भी लगता है जो कच्चे तेल की कीमत पर आधारित (एडवैलोरम) है.
इसे 2016 में लगाया गया था. देशी कच्चे तेल की कीमत तय करने के लिए भारत के
तेल आयात की कीमत को आधार बनाया जाता है यानी अगर इंपोर्टेड क्रूड महंगा तो
देशी भी महंगा होगा.
- आत्मनिर्भरता
का यह अनोखा तकाजा है कि भारत मे घरेलू तेल उत्पादन कुल आयात का 15 फीसदी भी
नहीं लेकिन इस पर टैक्स आयातित क्रूड से काफी ज्यादा है
- आयातित और
देशी कच्चे तेल पर टैक्स से सरकार ने कोविड से पहले के वर्ष यानी 2019-20
में 43.8 अरब रुपये का राजस्व जुटाया.
- भारत में
पेट्रोल डीजल का आयात भी होता है पेट्रोल पर 2.5% कस्टम ड्यूटी,1.4 रुपये प्रति लीटर की काउंटरवेलिंग ड्यूटी,
11 रुपये प्रति लीटर स्पेशल एडीशनल ड्यूटी, 2.5 रुपये
प्रति लीटर का इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस, 13 रुपये
प्रति लीटर की एडीशनल कस्टम ड्यूटी लगती है. डीजल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी, काउंटर वेलिंग ड्यूटी के अलावा 8 रुपये प्रति लीटर की स्पेशल
ड्यूटी , 4 रुपये प्रति लीटर का इन्फ्रा से और 8 रुपये
प्रति लीटर की एडीशनल कस्टम ड्यूटी लगती है. 2019-20 में इनसे 73 अरब रुपये
का राजस्व मिला.
- आयातित
कच्चा तेल और पेट्रोउत्पाद पर टैक्स का इनकी कीमतों सीधा रिश्ता है. कच्चा
तेल लगातार महंगा हुआ इसलिए सरकार की कमाई भी खूब बढ़ी है. 2021-22 में भारत
का तेल आयात बिल दोगुना बढ़कर 119 अरब डॉलर हो गया जबकि मात्रा में आयात कम
हुआ था.
- मोटे तौर यह समझिये कि एक्साइज, स्पेशल
एडीशनल ड्यूटी, सडक सेस और राज्यों के वैट आदि को
मिलाकर लगभग अधिकांश भारत मे पेट्रोल और डीजल की कीमत का आधा हिस्सा टैक्स
है. बीते साल यूपी चुनाव से पहले और इसी मई 21 यही हिस्सा हल्का किया गया
है.
- पेट्रोल डीजल पर टैक्स कटौती और बढ़त का हिसाब किताब बताता है कि राहत
क्यों खोखली होती है 2015 में जब कच्चे तेल की कीमत कम थी तब से केंद्र
सरकार ने पेट्रो उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना शुरु किया. अक्टूबर 2021 तक
पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 200 फीसदी और डीजल पर 600 फीसदी बढ़ी. इसकी क्रम
में राज्यों का वैट भी बढ़ा. नतीजतन 2014-15 से 20-21 के बीच पेट्रो उत्पादों
से केंद्रीय एक्साइज संग्रह 163 फीसदी बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये से 4.5
लाख करोड़ हो गया. इसी दौरान मार्च 2014 से अक्टूबर 2021 तक राज्यों का वैट
संग्रह 35 फीसदी बढ़कर 1.6 लाख करोड़ से 2.1 लाख करोड़ हो गया.
- केंद्र सरकार पेट्रोल डीजल पर बेसिक एक्साइज पर
राजस्व का 42 फीसदी हिस्सा राज्यों से बांटती है जो पेट्रोल पर केवल 58
पैसे और डीजल पर 75 पैसे प्रति लीटर है जबकि इन दोनों पर कुल एक्साइज क्रमश
33 रुपये और 42 रुपये प्रति लीटर है.
कोयला और बिजली वाला टैक्स
केवल पेट्रोल डीजल ही नहीं , टैक्स निचोड़ नीति के
कारण कोयले और बिजली का हाल भी इतना ही बुरा है. भारत की
करीब 60 फीसदी बिजली कोयले से बनती है
- बिजली के
कोयले की औसत बेसिक कीमत (955-1100 रुपये) पर रॉयल्टी, पर्यावरण विकास उपकर, सीमा कर, कुछ राज्यों मे जंगल कर, विकास कर, कोयला निकालने का चार्ज, 5 फीसदी का जीएसटी,
400 रुपये प्रति बिजली घर तक टन के बाद कोयले की कीमत लगभग
दोगुनी हो जाती है. रेलवे का भाड़ा (दूरी के अनुसार) और उस पर जीएसटी अलग से.
- कोल
कंट्रोलर के आंकडे बताते हैं केंद्र सरकार को कोयले से करीब 25000 करोड़ का
जीएसटी मिलता है. राज्यों को मिलने वाला टैक्स इससे अलग है.
- इन टैक्स
के कारण घरेलू और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली करीब 26 पैसे प्रति
यूनिट महंगी हो जाती है
- कई राज्य
सरकारें बिजली पर इलेक्ट्रिसिटी बिल पर ड्यूटी या टैक्स लगाती हैं. यह
टैक्स, चुनावी वादों बिजली को सस्ता रखने के लिए लगाया
जाता है.
नई ऊर्जा नया टैक्स
- टैक्स का
शिकंजा बडा हो रहा है . सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रचार के बीच सरकार ने
सोलर मॉड्यूल्स के आयात पर 40 फीसदी और सेल पर 25 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगा
दी है. भारत में उत्पादन क्षमता है नहीं, आयात चीन होता है नतीजतन
बढ़ती लागत के कारण सौर ऊर्जा क्रांति का दम भी टूट रहा है
पुणे की रिसर्च संस्था प्रयास एनर्जी ग्रुप का अध्यन
बताता है कि केंद्र सरकार के कुल टैक्स राजस्व का करीब 25 फीसदी हिस्सा ऊर्जा से
आता है राज्यों के कुल राजस्व का 13 फीसदी ऊर्जा से मिलता
है. करीब से देखने पर पता चलता है कि केंद्र सरकार को ऊर्जा
क्षेत्र से कंपनियों के लाभांश सहित जितना राजस्व मिलता है उसमें 90 फीसदी टैक्स हैं.
केंद्र को ऊर्जा क्षेत्र से मिलने वाले कुल राजस्व में 83 फीसदी पेट्रो उत्पादन से
और 17 फीसदी कोयले से आता है जबकि राज्यों को कोयले से केवल
दो फीसदी राजस्व मिलता है. 83 फीसदी पेट्रो उत्पादों से और
शेष बिजली से आता है... रिजर्व बैंक के आंकडे बताते हैं
कि 2018-19 के बाद से ऊर्जा पर केंद्र सरकार का राजस्व बढ़ा
और सब्सिडी घटती चली गई.
इधर राज्य अपने ऊर्जा राजस्व का करीब आधा हिस्सा , लगभग 1.33 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च कर रहे हैं हमें
समझना होगा कि पेट्रोल डीजल और बिजली की महंगाई केवल सरकारी टैक्स से निकल रही है.
GST ked ayre mein kyuu nahi le aateघ्
यही वजह है कि सरकारें पेट्रो उत्पादों, कोयला और बिजली को जीएसटी
के दायरे में नहीं लाना चाहतीं. जबकि यह टैक्स वाली लागत का
सबसे बड़ा हिस्सा है जिस इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलना चाहिए भारत के नेता जितनी बडी बड़ी बातें करते हैं, उतनी
चतुरता उनके आर्थिक प्रबंधन में नहीं है. बजटों का राजस्व
ढांचा बुरी तरह सीमित हो चुका है. सरकारें खर्च कम करने को
राजी नहीं है. देश ऊर्जा के बिना रह नहीं सकता. शाहखर्च सरकारें टैक्स निचोड़कर हमें महंगाई में भून रही है. नतीजा यह है कि भारत अब दुनिया के सबसे महंगे मोटर ईंधन और पर्याप्त
महंगी बिजली वाले देशों में शामिल हो गया.
यदि प्रति व्यक्ति खपत खर्च या क्रय क्षमता के आधार पर
देखें तो यह महंगाई और ज्यादा भयावह लगती है भारत के पास अब विकल्प कम हैं. कोयले और कच्चे तेल
की महंगाइ्र स्थायी हो रही है. या तो ऊर्जा पर टैक्स कम
करने होंगे या फिर झेलनी होगी महंगाई. इसके अलावा कोई रास्ता
नहीं है सनद रहे कि पर्यावरण की चिंताओं के बाद भारत को
ऊर्जा का ढांचा बदलना है. नई तकनीकों के बाद ऊर्जा और महंगी
होगी. जब तक टैक्स नहीं कम हो ऊर्जा क्षेत्र में कोई नया
बदलाव मुश्किल होगा...