नीति शून्यता (पॉलिसी पैरालिसिस) जवाब नीति रोमांच (पॉलिसी एडवेंचरिज्म) हरगिज नहीं हो सकता
नोटबंदी के बाद
राम सजीवन हर तीसरे दिन बैंक की लाइन में लग जाते हैं, कभी एफडी तुड़ाने
तो कभी पैसा निकालने के लिए. फरवरी में बिटिया की शादी कैसे होगी? फ्रैंकफर्ट से भारत
के बाजार में निवेश कर रहे एंड्रयू भी नोटबंदी के बाद से लगातार शेयर बाजार में
बिकवाली कर रहे हैं.
सजीवन को सरकार
पर पूरा भरोसा है और एंड्रयू को भारत से जुड़ी उम्मीदों पर. लेकिन दोनों अपनी पूरी
समझ झोंक देने के बाद भी आने वाले वक्त को लेकर गहरे असमंजस में हैं.
सजीवन और एंड्रयू
की साझी मुसीबत का शीर्षक है कल क्या होगा?
सजीवन आए दिन बदल
रहे फैसलों से खौफजदा हैं. एंड्रयू को लगता है कि सरकार ने मंदी को न्योता दे दिया
है, पता नहीं कल
कौन-सा टैक्स थोप दे या नोटिस भेज दे इसलिए नुक्सान बचाते हुए चलना बेहतर.
सजीवन मन की बात
कह नहीं पाते,
बुदबुदा कर रह
जाते हैं जबकि एंड्रयू तराशी हुई अंग्रेजी में रूपक गढ़ देते हैं, ''हम ऐसी बस में
सवार हैं जिसमें उम्मीदों के गीत बज रहे हैं. मौसम खराब नहीं है. बस का चालक
भरोसेमंद है लेकिन वह इस कदर रास्ते बदल रहा है कि उसकी ड्राइविंग से कलेजा मुंह
को आ जाता है. पता ही नहीं जाना कहां है?"
नोटबंदी से पस्त
सजीवन कपाल पर हाथ मार कर चुप रह जाते हैं. लेकिन एंड्रयू, डिमॉनेटाइजेशन को
भारत का ब्लैक स्वान इवेंट कह रहे हैं. सनद रहे कि नोटबंदी के बाद विदेशी निवेशकों
ने नवंबर महीने में 19,982 करोड़ रु. के शेयर बेचे हैं. यह 2008 में लीमन
ब्रदर्स बैंक तबाही के बाद भारतीय बाजार में सबसे बड़ी बिकवाली है.
ब्लैक स्वान
इवेंट यानी पूरी तरह अप्रत्याशित घटना. 2008 में बैंकों के डूबने और ग्लोबल मंदी के बाद
निकोलस नसीम तालेब ने वित्तीय बाजारों को इस सिद्धांत से परिचित कराया था. क्वांट
ट्रेडर (गणितीय आकलनों के आधार पर ट्रेडिंग) तालेब को अब दुनिया वित्तीय दार्शनिक
के तौर पर जानती है. ब्लैक स्वान इवेंट की तीन खासियतें हैः
एक—ऐसी घटना जिसकी
हम कल्पना भी नहीं करते. इतिहास हमें इसका कोई सूत्र नहीं देता.
दो—घटना का असर बहुत
व्यापक और गहरा होता है.
तीन—घटना के बाद ऐसी
व्याख्याएं होती हैं जिनसे सिद्ध हो सके कि यह तो होना ही था
ब्लैक स्वान के
सभी लक्षण नोटबंदी में दिख जाते हैं.
इसलिए अनिश्चितता
2016 की सबसे बड़ी
न्यूजमेकर है.
और
नोटबंदी व ग्लोबल
बदलावों के लिहाज से 2017, राजनैतिक-आर्थिक गवर्नेंस के लिए सबसे असमंजस भरा साल होने
वाला है.
ब्लैक स्वान
थ्योरी के मुताबिक, आधुनिक दुनिया में एक घटना, दूसरी घटना को
तैयार करती है. जैसे लोग कोई फिल्म सिर्फ इसलिए देखते हैं क्योंकि अन्य लोगों ने
इसे देखा है. इससे अप्रत्याशित घटनाओं की शृंखला बनती है. नोटबंदी के बाद उम्मीद
थी कि भ्रष्टाचार खत्म होगा लेकिन यह नए सिरे से फट पड़ेगा, बेकारी-मंदी आ
जाएगी यह नहीं सोचा था.
नोटबंदी न केवल
खुद में अप्रत्याशित थी बल्कि यह कई अप्रत्याशित सवाल भी छोड़कर जा रही है, जिन्हें सुलझाने
में इतिहास हमारी कोई मदद नहीं करता क्योंकि ब्लैक स्वान घटनाओं के आर्थिक नतीजे
आंके जा सकते हैं, सामाजिक परिणाम नहीं.
- नोटबंदी के बाद नई करेंसी की
जमाखोरी का क्या होगा? क्या नकदी रखने की सीमा तय होगी? डिजिटल पेमेंट सिस्टम अभी पूरी तरह तैयार नहीं है.
क्या नकदी का संकट बना रहेगा? काम धंधा कैसे चलेगा?
- नई करेंसी का सर्कुलेशन शुरू हुए बिना
नए नोटों की आपूर्ति का मीजान कैसे लगेगा? नकद निकासी पर पाबंदियां कब तक जारी रहेंगी ?
- नकदी निकालने की छूट मिलने के
बाद लोग बैंकों की तरफ दौड़ पडे तो ?
- कैश मिलने के बाद लोग खपत
करेंगे या बचत? यदि बचत
करेंगे तो सोना या जमीन-मकान खरीद पाएंगे या नहीं.
और सबसे बड़ा सवाल
इस सारी उठापटक के बाद क्या अगले साल नई नौकरियां
मिलेंगी? कमाई के मौके
बढेंग़े? या फिर 2016 जैसी ही स्थिति
रहेगी?
भारत को ब्लैक
स्वान घटनाओं का तजुर्बा नहीं है. अमेरिका में 2001 का डॉट कॉम संकट
और जिम्बाब्वे की हाइपरइन्क्रलेशन (2008) इस सदी की कुछ ऐसी घटनाएं थीं. शेष विश्व की
तुलना में भारतीय आर्थिक तंत्र में निरंतरता और संभाव्यता रही है. विदेशी मुद्रा
संकट के अलावा ताजा इतिहास में भारत ने बड़े बैंकिंग, मुद्रा संकट या
वित्तीय आपातकाल को नहीं देखा.
आजादी के बाद आए आर्थिक संकटों की वजह प्राकृतिक
आपदाएं (सूखा) या ग्लोबल चुनौतियां (तेल की कीमतें, पूर्वी एशिया
मुद्रा संकट या लीमन संकट) रही हैं, जिनके नतीजे अंदाजना अपेक्षाकृत आसान था और जिन्हें भारत ने
अपनी देसी खपत व भीतरी ताकत के चलते झेल लिया. नोटबंदी हर तरह से अप्रत्याशित थी
इसलिए नतीजों को लेकर कोई मुतमइन नहीं है और असुरक्षा से घिरा हुआ है.
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी सक्रिय राजनेता हैं. वह जल्द से जल्द से कुछ बड़ा कर गुजरना चाहते
हैं. हमें मानना चाहिए कि वह सिर्फ चुनाव की राजनीति नहीं कर रहे हैं. पिछले एक
साल में उन्होंने स्कीमों और प्रयोगों की झड़ी लगा दी है लेकिन इनके बीच ठोस
मंजिलों को लेकर अनिश्चितता बढ़ती गई है.
2014 में मोदी को
चुनने वाले लोग नए तरह की गवर्नेंस चाहते थे जो रोजगार, बेहतर कमाई और
नीतिगत निरंतरता की तरफ ले जाती हो. प्रयोग तो कई हुए हैं लेकिन पिछले ढाई साल में
रोजगार और कमाई नहीं बढ़ी है. पिछली सरकार अगर नीति शून्यता (पॉलिसी पैरालिसिस) का
चरम थी तो मोदी सरकार नीति रोमांच (पॉलिसी एडवेंचरिज्म) की महारथी है.
ब्लैक स्वान वाले
तालेब कहते हैं विचार आते-जाते हैं, कहानियां ही टिकाऊ हैं लेकिन एक कहानी को हटाने के लिए
दूसरी कहानी चाहिए. नोटबंदी की कहानी बला की रोमांचक है, लेकिन अब इससे
बड़ी कोई कहानी ही इसकी जगह ले सकती है जिस पर उम्मीद को टिकाया जा सके.
क्या 2017 में अनिश्चितता
और असमंजस से हमारा पीछा छूट पाएगा?