अमेरिका भीतर से बेचैन और डरा हुआ है। इसलिए नहीं कि उसकी सियासत
उसे कौन सा रहनुमा देगी बल्कि इसलिए कि अमेरिका
की वित्तीय संकट मशीन पूरी रफ्तार से काम रही है और राजनीति के पास इसे रोकने की
कोई जुगत नहीं है। दुनिया की महाशक्ति एक
अभूतपूर्व वित्तीय संकट से कुछ कदम दूर है। अमेरिका में कर्ज और घाटे से जुड़ी मुसीबतों
का टाइम बम दिसंबर मे फटने वाला है और अमेरिका के पांव में सबका पांव है सो टाइम
बम की टिक टिक वित्तीय दुनिया के लिए मुसीबत के ढोल से कम नही है। घाटे को कम
करने के राजनीतिक कोशिशों की अंतिम समय सीमा दिसंबर में ख्त्म हो रही है। एक
जनवरी 2013 को अमेरिका का आटोमेटिक संवैधानिक सिस्टम सरकारी खर्च में कमी भारी
कमी व टैक्स में जोरदार बढ़ोत्तरी का बटन दबा देगा। इस संकट से बचना अमेरिकी
सियासत की असली अग्नि परीक्षा है। यह सिथति अमेरिका को सुनिश्चत मंदी और विश्व
को नए तरह की मुसीबत में झोंक देगी।
फिस्कल क्लिफ
अमेरिका एक बडे संकट
की कगार पर टंगा है। वित्तीय दुनिया इस स्थिति को फिस्कल क्लिफ के नाम से बुला
रही है। अमेरिका की सरकारों ने पिछले वर्षों में जो तरह तरह की कर रियायतें दी थीं
उनके कारण घाटा बुरी तरह बढ़ा है। इन रियायतों को वापस लेने का वक्त आ गया है। अमेरिकी
बजटीय कानून घाटा कम करने लिए सरकार के राजस्व में बढोत्तरी और खर्च में कमी की सीमायें
तय करता है, जैसा कि भारत के राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून में प्रावधान किया गया
है। इस कानून के मुताबिक अमेरिकी सरकार को 2013 के लिए प्रस्तावित घाटे को आधा कम करना है। जो सरकार के कुल राजसव
में चार से पांच फीसदी की बढ़त और खर्च में एक फीसदी कमी के जरिये हो सकेगा। मतलब
यह कि अमेरिका को 665 अरब डॉलर की