लगता है कि भारतीय निर्यातकों को माल बेचने के लिए जरुर कोई दूसरी दुनिया मिल गई है क्यों कि यह दुनिया तो मंदी, मांग में कमी और उत्पादन में गिरावट से परेशान है, इसलिए इस धरती पर माल बिकने से रहा। भारत का निर्यात ऐसे बढ रहा है मानो अमेरिका व यूरोप समृद्धि से लहलहा रहे हों। पिछले छह माह में निर्यात की छलांगों ने विश्व व्यापार के पहलवान चीन को भी पछाड़ दिया है। सरकार निर्यातकों के बैंड में शामिल होकर सफलता की धुन बजा रही है मगर मुंबई-दिल्ली से लेकर लंदन-न्यूयार्क तक विशेषज्ञ गहरे असमंजस में हैं क्यों कि निर्यात वृद्धि का यह गुब्बारा दुनियावी असलियत की जमीन से कटकर हवा में तैर रहा है। विश्व व्यापार से लेकर घरेलू बाजार ऐसे मजबूत तथ्यों का जबर्दसत टोटा है जो निर्यात की इस सफलता को प्रामाणिक बना सकें। इतना ही नहीं निर्यात की इस बाजीगरी से अब काले धन, मनी लॉडिंग, टैक्स हैवेन की दुर्गंध भी उठने लगी है।
हकीकत से उलटा
अप्रैल 35 फीसदी, मई 57 फीसदी, जून 46 फीसदी, जुलाई 81 फीसदी, अगस्त 44 फीसदी, सितंबर 36 फीसदी!!...... यह पिछले छह माह में निर्यात बढ़ने की हैरतंअगेज रफ्तार है। जबकि हकीकत इसकी उलटी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है कि दुनिया की विकास दर आधा फीसदी घटेगी। अमेरिका 1.5 फीसदी और पूरा यूरो क्षेत्र 1.6 फीसदी की ग्रोथ दिखा दे तो बड़ी बात है। यूरोप व अमेरिका भारत के निर्यातों के सबसे बड़े बाजार हैं। विश्व व्यापार संगठन ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की विकास दर 6.5 फीसदी से घटाकर 5.8 फीसदी कर दी है। अमीर देशों के संगठन ओईसीडी ने बताया कि इस साल की दूसरी तिमाही में ब्रिक और जी 7 देशों का निर्यात घटकर 1.9 फीसदी पर आ गया, जो इससे पिछली तिमाही में 7.7 फीसदी था। लेकिन जुलाई में भारत की सरकार बताया कि एक साल में भारत के निर्यातों का मूल्य दोगुना हो गया है। जुलाई में तो 81 फीसदी की बढ़त ने निर्यात के चैम्पियन चीन को भी चौंका दिया। सरकार के दावे के विपरीत, विश्व बाजार में मांग को नापने वाले कुछ और आंकड़े भारतीय निर्यात में तेजी पर शक को मजबूत एचएसबीसी का मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनजर्स इंडेक्स (पीएमआई) आयात निर्यात को सबसे करीब से पकड़ता है। इस सूचकांक में पिछली तिमाही में सबसे तेज गिरावट आई और यह 2008 के स्तर के करीब है जब दुनिया में निर्यात बुरी तरह टूट गए थे। पीएमआई अमेरिका, यूरोप व एशिया सभी जगह निर्यात की मांग में गिरावट दिखा रहा है। यूरो मु्द्रा का इस्तेमाल करने वाले 17 देशों में सेवा व मैन्युफैक्चरिंग सूचकांक दो साल के न्यूनतम स्तर पर हैं। यानी कि भारतीय निर्यातों की कहानी दुनिया की हकीकत से बिल्कुल उलटी है।