हमारे फैसलों के नतीजे अक्सर बेहद जटिल और बहुआयामी होते हैं...इसलिए भविष्य को जान पाना बहुत कठिन हो जाता है.’’ जे.के. राउलिंग (हैरी पॉटर ऐंड द प्रिजनर ऑफ अज्कबान) ने ठीक पकड़ा था भविष्य को. हम भी तो अपने कदमों के नतीजे कहां समझ पाए और...2020 आ गया.
2020 यानी भारत के लिए अवसरों के आखिरी दशक की शुरुआत हो रही है.
2020 की मंजिल वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने तय की थी जिससे प्रेरणा लेकर तब के योजना आयोग ने पांच साला योजनाओं से परे 2002 में भविष्य का रोडमैप (विजन 2020) बनाया था, जिसमें एक दशक की उपलब्धियों के आधार पर अगले दो दशकों की चुनौतियों को मापा गया था. सरकारी लक्ष्यों में राजनैतिक सुविधा के हिसाब से बदलावों के बीच, विजन 2020 उम्मीदों की एक सुहानी मंजिल की तरह टंगा रहा है क्योंकि आर्थिक उदारीकरण के बाद के वर्षों में शायद यह इकलौता दस्तावेज है जिसमें तर्कसंगत आकलन के साथ दूरगामी लक्ष्य तय किए गए थे.
दस्तावेज पुराना है लेकिन अवसरों के आखिरी दशक पर निगाह डालने के लिए 2002 में तय की गई कई मंजिलों के संदर्भ बेहद कारगर हैं. बाद के दशकों में, यही लक्ष्य अलग संख्याओं और व्याख्याओं में बंधकर हमारे पास आते रहे हैं.
मसलन, 2020 तक गरीबी दूर करने के लिए 2002 के बाद हर साल 8-9 फीसद की विकास दर का लक्ष्य तय किया गया था. हम यह विकास दर नहीं हासिल कर सके. 2020 तक बेकारी को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य था क्योंकि तब तक जीवन प्रत्याशा दर 69 वर्ष तक पहुंच जानी थी. बुढ़ापे के मामले में हम लगभग इसी मुकाम पर हैं.
इन सुहाने सपनों और चुभती सचाइयों के बीच भारत अपने सबसे मूल्यवान आखिरी दशक की राह में तीन बहुत बड़ी चुनौतियों से मुकाबिल है.
·
आर्थिक विकास यानी प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में 2020 की शुरुआत में हम ठीक वहीं खडे़ हैं जहां चीन 2003-04 में खड़ा था.
ग्लोबल निवेशकों से लेकर देशी कारोबारियों तक किसी को यह उम्मीद नहीं है कि भारत अगले दशक में दस फीसद यानी दहाई की विकास दर हासिल कर सकेगा.
बेहतर सुधारों की शर्त पर सात फीसद की विकास दर मुमकिन है लेकिन अब अगले वर्षों में दुनिया भारत को इसकी वास्तविक विकास दर (महंगाई रहित) की रोशनी में आंकेगी. अगर यह दर 5 फीसद के आसपास रही तो फिर एक-तिहाई आबादी कभी भी बेहतर खपत की तरफ नहीं बढ़ पाएगी. बेकारी, गरीबी को लेकर इस दशक के लक्ष्य भरोसेमंद नहीं रह पाएंगे. जरूरी सामान और अन्य चीजों की खपत में गिरावट होगी. और निवेशकों (शेयर बाजार, उद्येाग) के लिए लंबी अवधि में बहुत उम्मीदें नहीं बचेंगी.
·
अगले एक दशक में आर्थिक विकास दर की यह तस्वीर हमें दूसरे बड़े बदलाव की तरफ देखने पर मजबूर करती है. तेज विकास के लिए भारत का सबसे बड़ा संसाधन उसके युवा रहे हैं. लेकिन अब हम बुढ़ाते हुए समाज की तरफ यात्रा प्रारंभ कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में युवा आबादी घटने लगी है. हमारे पास युवा आबादी का लाभ लेने का यह अंतिम दशक है. 2021 से 2031 के बीच भारत की कामगार आबादी हर साल 97 लाख लोगों की दर से बढ़ेगी. इस बीच बड़ी आबादी रिटायर होगी जिसे सेवाएं देने के लिए इस युवा आबादी को बचत और खपत (टैक्स) बढ़ानी होगी.
·
कमजोर ग्रोथ और बुढ़ाती आबादी के आगामी दशक के बीच गवर्नेंस उम्मीदें तोड़ रही है. निराशा केवल सरकार को लेकर ही नहीं, हर तरह की गवर्नेंस को लेकर है. 2020 की शुरुआत में भारत का राजनैतिक नक्शा केंद्र और राज्यों के बीच युद्ध के संभावित मैदान में तब्दील हो चुका है. सरकारें सक्षम होने के बजाए टैक्स पचाकर फूल रही हैं, भ्रष्ट हो रही हैं और लोगों की बचत (सरकारी खर्च) के बूते अपने सियासी संगठन पाल रही हैं. स्वतंत्र नियामकों का गठन और मौजूदा नियामकों को नई ताकत देने के एजेंडे पीछे छूट चुके हैं. गवर्नेंस का क्षरण राज्यों से होता हुआ स्थानीय संस्थाओं तक पहंच चुका है.
भारत की कॉर्पोरेट गवर्नेंस भी उतने ही बुरे दौर में है. कागजों पर सबसे अच्छे कानूनों के बावजूद पिछले एक दशक में कई बड़ी कंपनियों के निदेशकों ने हर तरह का धतकरम किया और निवेशकों व कर्मचारियों के सपनों को आग लगाई है. इस गवर्नेंस का क्षरण और शून्य हमें कई क्षेत्रों में निजी एकाधिकार की तरफ ले जा रहा है. अगला एक दशक इस लिहाज से बेहद संवेदनशील होने वाला है.
भविष्य कभी हमारे मन मुताबिक नहीं आता. सो, 2020
भी अफरातफरी और आर्थिक संकट के बीच धप्प से कूद पड़ा. हमें इस समय सब कुछ बदलने वाले तेज रफ्तार सुधारों की जरूरत है. एक देश के तौर पर हम समय के उस मोड़ पर हैं जहां वर्तमान कुछ नहीं होता. वक्त या तो तुरंत आने वाला भविष्य होता है अथवा अभी बीता हुआ कल (अमेरिकी कॉमेडियन जॉर्ज कार्लिन). 2020 का पहला सूरज हमारे लिए सबसे निर्णायक उलटी गिनती की शुरुआत लेकर आया है, क्योंकि अवसरों के भंडार में अब केवल दस साल बचे हैं...
केवल दस साल!