Welcome 2012
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की सबसे बड़ी उलझन क्या होने वाली है, वही जो मनमोहन, सोनिया व राहुल की है। अरे वही जो होस्नी मुबारक वगैरह को ले डूबी और ओबामा, पुतिन, कैमरुन, वेन जियाबाओ को सता रही है। उभरता ग्लोबल मध्यवर्ग दुनिया भर की सियासत की साझी मुसीबत है। यह मझले अमेरिका में वाल स्ट्रीट को आकुपायी करने के लिए चढ़ दौड़े है तो रुस व चीन में क्रांति की जबान बोल रहे हैं। अरब में विरोध का बसंत और यूरोप की अशांति (लंदन में हिंसा) भी इनके कंधे पर सवार थी। इसी मध्य वर्ग ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम से भारतीय सियासत को पानी मंगवा दिया। मध्य वर्ग का यह तेवर अनदेखा है। संचार तकनीक से खेलते इन मझलों की मुखरता बेजोड़ है। इनकी अपेक्षायें सियासत की चतुरता का इम्तहान ले रही है। 2012 चुनावों के ग्लोबल उत्सव (अमेरिका, फ्रांस, रुस सहित 75 देशों में चुनाव) का वर्ष है। यानी कि एक तरफ बेचैन मध्य वर्ग और दूसरी तरफ सियासत की परीक्षा। नए साल की बिसात बड़ी सनसनीखेज है।
भौंचक सियासत
बेताब मध्य वर्ग और उस में भी ज्यादातर युवा! यह जोड़ी खतरनाक है। भारत में 40 फीसदी वोटर युवा हैं। कोई नहीं जानता कि बाबरी ध्वंस के बाद जन्मे मध्यवर्गीय युवा उत्तर प्रदेश (53 लाख नए युवा वोटर) के चुनाव में क्या फैसला देंगे। भारत का मौन, मजबूर व परम संतोषी को मध्य वर्ग लोकपाल के लिए ऐसे सड़क पर आएगा, यह किसने सोचा था। रुस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन भी हैरान हैं कि देश में आर्थिक प्रगति के बावजूद मध्य वर्ग और युवा आंदोलित क्यों हैं। दो सबसे बड़े दुश्मनों (सद्दाम और ओसामा) की मौत से अमेरिकी मध्यवर्ग को राष्ट्रपति बराक ओबामा पर रश्क नहीं हुआ। वह तो यही जाते हैं एक फीसदी अमेरिकियों के पास बहुत कुछ है और 99 फीसदी बस ऐ वेईं हैं। पूंजीवादी अमेरिका का मझला तबका वाल स्ट्रीट को निशाना बनाकर एक नया साम्यवाद गढ़ रहा है। चीन के कम्युनिस्ट शासन की सख्ती तोड़कर लोगों ने एक गांव (वुकान) को कबजा लिया और वह भी सबसे धनी गुएनडांग प्रांत में। तियेन आनमन और जास्मिन क्रांति अतीत वाले इस देश में मध्य वर्ग का मिजाज