ग्रोथ व आय बढ़ने का आसरा छोड़ कर नई महंगाई से बचने का इंतजाम शुरु करना होगा, जो ऊर्जा क्षेत्र के रास्ते पूरी अर्थव्यस्था में पैठने वाली है।
हम यह शायद कभी नहीं जान पाएंगे कि वक्त
पर आर्थिक सुधार न होने से किस राजनेता को क्या और कितना फायदा पहुंचा या दौड़ती
अर्थव्यवस्था थमने और रुपये के टूटने का जिम्मेदार कौन है। लेकिन देश बहुत जल्द
ही यह जान जाएगा कि लापरवाह व अदूरदर्शी सरकारें अपनी गलतियों के लिए भी जनता से किस
तरह कुर्बानी मांगती हैं। सियासत की चिल्ल पों के बीच भारत में दर्दनाक भूल
सुधारों का दौर शुरु हो चुका है, जो पूरी अर्थव्यवस्था में नई महंगाई की मुनादी
कर रहा है। ऊर्जा क्षेत्र में मूल्य वृद्धि का नया करंट दौड़ने वाला है जो कमजोर
रुपये के साथ मिल कर महंगाई-मंदी के दुष्चक्र की गति और तेज कर देगा। कोयला व गैस
से जुडे़ फैसलों के दूरगामी नतीजे भले ही ठीक हों लेकिन फायदों के फल मिलने तक आम
लोग निचुड़ जाएंगे।