भारत अपने सुधार इतिहास के सबसे दर्दनाक फैसले से मुकाबिल है। डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले करना सुधारों का सबसे धारदार नश्तर है। तभी तो कड़वी गोली को खाने व खिलाने की जुगत लगाते सुधारों 22 साल बीत गए। यह नश्तर पहले से मौजूद महंगाई, कमजोर रुपये के सानिध्य में दोगुने दर्द की शर्तिया गारंटी के साथ अर्थव्यवस्था के शरीर में उतरा है। भारत डीजल पर चलने, चमकने, दौड़ने, उपजने व बढ़ने वाला मुल्क है। यहां गरीब गुरबा से लेकर अमीर उमरा तक हर व्यक्ति की जिंदगी में डीजल शामिल है। इसलिए भारत की डीजली अर्थव्यवस्था को एक साल तक महंगाई के अनोखे तेवरों के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इस सुधार सरकार को शुक्रिया जरुर कहियेगा क्यों कि इस कदम के फायदे मिलेंगे लेकिन इससे पहले लोगों का तेल निकल जाएगा।
सरकार के आपरेशन डीजल का मर्म यह नहीं है कि पेट्रोल पंप पर डीजल हर माह पचास पैसे महंगा होगा। महंगाई का दैत्य तो डीजल पर दोहरी मूल्य प्रणाली से अपने नाखून तेज करेगा जिसके तहत थोक उपभोक्ताओं यानी रेलवे, बिजली घरों, मोबाइल कंपनियों को प्रति लीटर करीब दस रुपये ज्यादा देने होंगे। इस फैसले के बाद डीजल को सब्सिडी के नजरिये के बजाय महंगाई के नजरिये