हर्ष बुरी तरह निराश है. लॉकडाउन खत्म हुए नौ महीने बीतने को हैं. सरकारी मुखारविंदों से मंदी खत्म होने उद्घोष झर रहे हैं. रैलियां, चुनाव, मेले सब कुछ तो हो रहे हैं, बस उसकी नौकरी नहीं लौट रही.
हर्ष जैसे लोग पहले भी बहुत ज्यादा
नहीं थे जिनके पास मासिक पगार वाली ठीक ठाक नौकरी थी. हर्ष जैसे गिनती के लोग
टैक्स दे पाते हैं, और
अपने खर्च के जरिए कई परिवारों को जीविका देते हैं. कोविड से पहले 2019-20 में वेतनभोगियों की तादाद करीब 8.6 करोड़ थी जो अप्रैल 2020 में घटकर 6.8 करोड़ और जुलाई में घटकर 6.7 करोड़ रह गई (सीएमआईई).
लॉकडाउन खत्म होने के बाद, पहले से कम मजदूरी और कभी भी निकाले
जाने के खतरे के तहत असंगठित दिहाड़ी कामगारों को कुछ काम मिलने लगा है, लेकिन संगठित नौकरियों के बाजार में
स्थायी मुर्दनी छाई है.
आर्थिक मंदी की गर्त से वापसी के सफर
में नौकरी पेशा बहुत पीछे क्यों छूटते जा रहे हैं? कोविड के बाद नौकरियां क्यों नहीं लौट
रही हैं? इसके लिए कोविड के पहले की तस्वीर
देखनी होगी.
भारत में संगठित क्षेत्र के रोजगारों
का बाजार पहले से बहुत छोटा है. जिसका दुर्भाग्य कोविड की आमद से पहले ही जग चुका
था.
1,703 प्रमुख और बड़ी कंपनियों की बैलेंस
शीट का आकलन (केयर रेटिंग्स, नवंबर
2020) बताता है कि कोविड से पहले 2019-20 में भारत की 60 फीसद कॉर्पोरेट नौकरियां केवल पांच
उद्योग या सेवाओं (सूचना तकनीक 20.8, बैंक 18, ऑटोमोबाइल
7.5, हेल्थकेयर 6.4, वित्तीय सेवाएं 6.1 फीसद ) में थीं. इनमें करीब 39 फीसद कॉर्पोरेट रोजगार केवल बैंक और
सूचना तकनीक में केंद्रित हैं.
मंदी कोविड से पहले ही आ गई थी इसलिए
प्रमुख कंपनियों में नई नियुक्तियों में दो फीसद गिरावट दर्ज की गई. 2018-2019 में प्रमुख कंपनियों ने करीब 2.55 लाख कर्मचारी रखे थे जबकि वित्त वर्ष
2020 में केवल 1.38 लाख नई भर्तियां हुईं.
उपरोक्त पांच उद्योग और सेवाओं के
अलावा उपभोक्ता उत्पाद, बीमा, रिटेल, स्टील, भवन निर्माण व रियल एस्टेट, केमिकल और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स
कॉर्पोरेट नौकरियों वाले अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं. इनमें केवल बैंक और उपभोक्ता
उत्पाद कंपनियों ने 2018-2019 की
तुलना में 2019-20 ज्यादा भर्तियां की. अन्य सभी
क्षेत्रों में नए रोजगारों की संख्या घट गई थी.
बैंकिंग-वित्तीय सेवाएं, अचल संपत्ति, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र लोगों की
आय व खपत मांग पर केंद्रित हैं. मंदी के बाद मांग खत्म होने से इनमें नए अवसर बनते
नहीं दिख रहे हैं. बैंकिंग में कोविड से पहले तक नए रोजगार बन रहे थे, वहां फंसे हुए कर्ज, सरकारी बैंकों का विलय और निजीकरण
रोजगारों की बढ़त पर भारी पड़ने वाला है.
इसके बाद सूचना तकनीक, उपभोक्ता उत्पाद (एफएमसीजी) और स्वास्थ्य सेवाएं बचती हैं जहां कोविड लॉकडाउन के दौरान 'गए' रोजगारों की एक सीमा तक वापसी हो सकती है. हालांकि यहां भी कोविड के बीच नई तकनीक के सहारे श्रम लागत में कटौती के नए रास्ते अपनाए जा रहे हैं इसलिए बड़े पैमाने पर नए रोजगार आने की उम्मीद नहीं दिखती.
2008-9 की मंदी ने यूरोप और अमेरिका में जो तबाही मचाई थी वही भारत में होता दिख रहा है. उस मंदी के बाद वित्तीय सेवाएं, भवन निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग, बिजनेस सर्विसेज, मझोले स्तर के रोजगार बड़े पैमाने पर खत्म हो गए थे. इसलिए ही कोविड के दौरान वहां की सरकारों ने रोजगार बचाने में पूरी ताकत झोंक दी. भारत में भी मझोले स्तर के रोजगार खत्म हुए हैं.
कोविड वाला वित्तीय वर्ष बीतते महसूस हो रहा है कि बीते एक साल में जितना आर्थिक उत्पादन पूरी तरह खत्म हुआ है उसका अधिकांश नुक्सान संगठित क्षेत्र के रोजगारों के खाते में गया है.
सनद रहे कि
कॉर्पोरेट और संगठित नौकरियों की संख्या पहले से बहुत कम थी. कोविड से ऐसे
कामगारों कुल तादाद 47
करोड़ थी, जिसमें केवल पांच करोड़ पीएफ (भविष्य
निधि) और करीब तीन करोड़ कर्मचारी बीमा के तहत हैं.
नौकरियों का अर्थशास्त्र बताता है कि
अर्थव्यवस्था मंदी से भले ही उबर जाए पर लंबी बेकारी असंख्य लोगों को रोजगार के
लायक नहीं रखती. भारत में बेरोजगारी में 2018 में (एनएसएसओ) ही 45 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुकी
थी. मंदी के बाद यह सूखा अब और लंबा हो रहा है.
कंपनियों को नौकरियां बचाने और बढ़ाने पर बाध्य करने और खाली सरकारी पदों को भरने की दूर, हमारी सरकारें बेरोजगारी पर बात भी नहीं करना चाहतीं. अमेरिकी उप राष्ट्रपति हर्बट हंफ्रे कहते थे कि अगर भूख, गरीबी, खराब सेहत और तबाह जिंदगियां अस्वीकार्य हैं तो बेरोजगारी का कोई न्यूनतम स्तर कैसे स्वीकार हो सकता है!
बेरोजगारी
जीवन का अपमान है, यह
राष्ट्रीय शर्म है लेकिन भारत में यह शर्म केवल बेरोजगारों को आती है, सरकारों को नहीं. हम अजीब दौर में हैं, जहां सरकार कारोबारों को फॉर्मल यानी
संगठित बनाने की मुहिम में लगी है लेकिन रोजगार बाजार में अस्थायी (असंगठित) नौकरी
और कम वेतन अब नया नियम होने वाले हैं.