क्या नोटबंदी का मकसद राजस्व लाना था या फिर इससे हमें
चीन जैसे नतीजों की उम्मीद करनी चाहिए थी
चीन का सौवां भ्रष्टाचारी ''टाइगर" मंगोलिया की सीमा पर स्थित चीफेंग सिटी से मार्च 2015 में पकड़ा गया था. कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ने बाकायदा इसका ऐलान भी किया. चीन में, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दुर्दांत ऐंटी करप्शन एजेंसी सीसीडीआइ (सेंट्रल कमिशन फॉर डिस्पिलिन ऐक्शन) का निशाना बन रहे वीआइपी लोगों को टाइगर ऐंड क्रलाइज (शेर और मक्खी) वर्गों में बांटा जाता है. टाइगर का मतलब है कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े राजनेता व वरिष्ठ सरकारी अफसर (भारत में मुख्यमंत्री, मंत्रियों, राजनैतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों, सरकारी सचिवों समकक्ष) और मक्खियां हैं छोटे सियासी कार्यकर्ता या अफसरान. सीसीडीआइ पिछले करीब छह साल में 1,800 बड़े निशाने लगा चुका है जिनमें 180 राजनैतिक और 139 प्रशासनिक ''टाइगर" पकड़े गए हैं.
नोटबंदी से हमें भी चीन जैसे नतीजों की उम्मीद करनी चाहिए थी. जाहिर है कि काले धन के खिलाफ अभियानों की सफलता इस बात से तय होती है कि कितनी बड़ी मछलियां सजा के जाल में फंसाई गईं.
कालिख सफाई के अभियान राजस्व बढ़ाने के लिए नहीं होते क्योंकि कमाई के लिए सरकार के पास विकल्पों का कोई कमी नहीं है.
नोटबंदी के जाल का मकसद सरकार के लिए राजस्व लाना नहीं बल्कि उन बड़ी राजनैतिक, प्रशासनिक व कारोबारी मछलियों को पकडऩा था जिनके सामने कानूनी जाल छोटे पड़ जाते हैं.
इस मामले में नोटबंदी से बड़ी उम्मीदें जायज हैं कि क्योंकिः
- भारत में काले धन को लेकर कोई बड़ा और संगठित अभियान पहली बार चलाया गया.
- काले धन और भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में हसन अली से लेकर रामलिंग राजू तक जांच एजेंसियों के पास नाकामियों का ढेर लगा है.
अलबत्ता, हाइ प्रोफाइल मामलों में नोटबंदी का अब तक का नतीजा इस प्रकार हैः
- बड़े भ्रष्टाचारियों को तकलीफ के दावों के विपरीत नोटबंदी के तहत न तो बहुत बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई और न ही बड़ी धर-पकड़. चीन में ''शेर व मक्खी" मिलाकर तीन लाख से ज्यादा लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है. मलेशिया में भी बीते बरस सरकारी अधिकारियों के बड़े घोटाले मिले व भारी नकदी की बरामदगी हुई.
- नोटबंदी के बाद बैंकों में जमा के जरिए आयकर विभाग को जानकारियां जरूर मिली हैं लेकिन काले धन को लेकर इस तरह के सूत्र जांच एजेंसियों को पहले भी मिलते रहे हैं, मुश्किल उन्हें अदालत में साबित करने की है. इस मामले में मोदी सरकार का रिकॉर्ड पिछली किसी दूसरी सरकार जैसा ही है. सभी बड़े घोटालों में आरोपी जमानत पर रिहा हो चुके हैं.
- नोटबंदी, भ्रष्टाचारियों और काले धन वालों में वह चीन या मलेशिया जैसा खौफ पैदा क्यों नहीं कर सकी?
बड़ी मछलियां अब तक जाल से बाहर क्यों हैं?
नोटबंदी को अन्य देशों के ऐसी ही अभियानों की रोशनी में देखने पर इस असमंजस का मर्म हाथ लग सकता हैः
- भारत के समकक्ष अन्य देशों में भ्रष्टाचार निरोधक अभियान मौसमी नहीं थे. वे सधे, नपे-तुले और लक्षित थे जो लगातार चल रहे हैं और नतीजे दे रहे हैं.
- दुनिया के किसी भी देश ने भ्रष्टाचारियों को पकडऩे से पहले उन्हें माफी देने से शुरुआत हरगिज नहीं की. भारत नोटबंदी से पहले और इसके दौरान काले धन रखने वालों को दो मौके दिए गए.
- चीन, मलेशिया और दक्षिण अफ्रीका की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों ने सीधे बड़े भ्रष्टाचारियों पर हाथ डाला. आम लोगों को कतार में नहीं लगा दिया गया.
- भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने में सफल देशों में इन अभियानों का नेतृत्व एक बेहद ताकतवर एजेंसी ने किया, जिसे स्पष्ट कानूनी अधिकार मिले थे जैसे कि दक्षिण अफ्रीका की ऐंटी करप्शन एजेंसी तो राष्ट्रपति जैकब जुमा को ही घेर रही है. भारत में लोकपाल कहां बैठता है, कभी पता चले तो बताइएगा?
- भ्रष्टाचार निरोधक अभियानों के साथ जरूरी कानूनों और जांच एजेंसियों में पारदर्शिता का पूरा ढांचा तैयार किया गया. मसलन, चीन का सीसीडीआइ भ्रष्टाचार में लिप्त अपने अधिकारियों को भी पकड़ रहा है. मलेशिया की ऐंटी करप्शन एजेंसी अफसरों की आय घोषणाओं को खंगाल कर यह जानने की कोशिश कर रही है कि इनकी शानो-शौकत भरी जिंदगी का राज क्या है.
पता नहीं भारत में बड़ी मछलियां जाल में कब फंसेंगी?
काले धन के खिलाफ आम लोगों के त्याग-बलिदान से गढ़ा गया भारत का सबसे बड़ा अभियान इतिहास में यूं ही गुम तो नहीं हो जाएगा?
क्या देश याद रख पाएगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के बाद 8 फरवरी, 2017 को राज्यसभा में कहा था, ''बेईमानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई से ईमानदारों को ताकत मिलेगी"?