ब्रिटेन ने आधा दर्जन टैक्स हैवेन पर नकेल डाल दी है। लक्जमबर्ग व आस्ट्रिया कर गोपनीयता बनाये रखने की जिद छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। यह पारदर्शिता के ग्लोबल आग्रहों की पहली बड़ी जीत है।
समाज यदि जागरुक व
संवेदनशील है तो संकट सुधारों को जन्म देते हैं। सितंबर 2011 में अमेरिका पर
अलकायदा का हमला न हुआ होता तो दुनिया आतंक को पोसने वाले वित्तीय तंत्र से गाफिल
ही रहती। डब्लूटीसी के ढहने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर फाइनेंशियल
एक्शन टास्क फोर्स जैसी संस्थाओं के नेतृत्व में आतंक की ग्लोबल आर्थिक नसें
काट दी गईं और आतंक की रीढ़ काफी हद तक टूट गई। ठीक इसी तरह अगर कर्ज संकट न आया
होता तो शायद यूरोप टैक्स हैवेन को हमेशा की तरह पालता रहता। यूरोप की सरकारें खुद ब खुद काली कमाई के जमाघरों के
पर्दे नोच रही है। ब्रिटेन ने आधा दर्जन टैक्स हैवेन पर नए नियमों की नकेल डाल दी
है और यूरोपीय संघ ने अपने दिग्गज सदस्यों लक्जमबर्ग व आस्ट्रिया को कर गोपनीयता
बनाये रखने की जिद छोड़ने पर मजबूर किया है। यह पारदर्शिता के ग्लोबल आग्रहों की
पहली बड़ी जीत है।
यूरोप में नैतिक दबावों
और वित्तीय गोपनीयता के बीच के निर्णायक रस्साकशी शुरु हो चुकी है। टैक्स हैवेन,
यूरोप की सरकारों को एक गहरी ग्लानि में धकेल रहे हैं। कर्ज संकट के कारण जनता की
सुविधायें काटते और टैकस लादते हुए यूरोप के हाकिमो को यह स्वीकार करना पड़ा है कि काले धन के टैक्स
फ्री जमाघरों को संरंक्षण और जनता पर सख्ती एक साथ नहीं चल सकतीं, क्यों कि ताजे
आंकडों के मुताबिक इन जन्नतों में करीब 32 खरब डॉलर की काली कमाई जमा है। टैक्स
हैवेन यूरोपीय वित्तीय तंत्र के अतीत व वर्तमान
का मजबूत हिस्सा हैं। स्विटजरलैंड
ने टैक्स हैवेन का धंधा, 1930 की मंदी से डर कर शुरु किया था। ऑस्ट्रिया
व स्विटजरलैंड के बीच मौजूदा छोटी सी रियासत लीचेंस्टीन भी तब तक अपने कानून बदल
कर टैक्स हैवेन बन चुकी थी। ज्यूरिख-जुग-लीचेंस्टीन की तिकड़ी को