एपल
ने अपने नए मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम यानी आईओएस 14 में मोबाइल धारकों को जरा सी
आजादी क्या दी कि फेसबुक को एक साल में 10 अरब डॉलर की चपत लग गई यानी एक बायजूस
या स्विगी की कीमत के बराबर की रकम मेटा
(फेसबुक) को गंवानी पड़ी. फेसबुक को इतिहास में पहली बार यूजर्स संख्या में
गिरावट झेलनी पड़ी. शेयर बाजार उसकी गिरावट का इतिहास बन गया. फेसबुक के औंधे मुंह
गिरने से निवेशकों ने ट्विटर और पिनटरेस्ट जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को भी
कूट डाला.
एपल
ने सिर्फ इतना किया अपने नए ऑपरेटिंग सिस्टम में एक सुविधा दे दी, जिसे एप ट्रैकिंग ट्रांसपेरेंसी कहा जाता है. इसके जरिये आप अपने फोन
की प्राइवेसी मजबूत कर सकते हैं यानी कि किसी एप्लीकेशन को अपना डिजिटल व्यवहार
जानने और उसकी सूचना बेचने से रोक सकते हैं. मतलब यह कि अगर आपने इंटरनेट पर होटल
की तलाश की है तो अब यह आपके हाथ में है कि आप अपनी टाइम लाइन पर होटलों के
विज्ञापन बरसात चाहते हैं या नहीं.
वैसे
सनद रहे कि मोबाइल पर डिजटिल व्यवहारों का डाटा जुटाने कके लिए फेसबुक जैसे आइडेंटिफायर
फॉर एडवरटाइजर्स (आईडीएफ) नाम के जिस टूल
का इस्तेमाल करते हैं , एपल ही उसे 2012 में
लेकर आई थी. इसके जरिये सीधे उपयोगकर्ता को विज्ञापन दिखाया जाता है जिसे
टारगेटेड एडवरटाइजिंग कहते हैं. रिपोर्ट बताती हैं कि ज़करबर्ग की कंपनी की 90
फीसदी राजस्व इसी तरह से आता है
तो
फिर एसा क्या हुआ कि एपल को लोगों की निजता बचाने का विकल्प देना पड़ा, जिससे फेसबुक सहित पूरे सूचना आधारित
बाजार की चूलें हिल गईं.
बात
शुरु होती है कोविड के साल यानी 2020 से.
महामारी
की मार से जब दुनिया अचानक बेतहाशा डिजिटल हो रही थी उस समय यूरोपीय समुदाय से एक
बड़ा यूं कहें बहुत बड़ा झटका आया जिसने सूचना तकनीक और निजी सूचनाओं के कारोबार
को लेकर पूरे परिदृश्य को उलट पुलट दिया. कोर्ट ऑफ जस्टिस ऑफ द यूरोपियन यूनियन
के एक आदेश जारी किया. यह मामला डाटा प्रोटेक्शन कमिश्नर बनाम फेसबुक
आयरलैंड और मैक्समिलन स्क्रेम्स का था. अदालत ने आदेश दिया कि यूरोप की
डाटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी यूरोपीय समुदाय के निवासियों की निजी सूचनाओं या डाटा के अमेरकिा को हस्तांतरण की
व्यवस्था की पड़ताल करेंगे.
गौरतलब
है कि फेसबुक,अमेजन,एपल,ट्विटर जैसी कंपनियों के लिए अमेरिका के बाद यूरोप सबसे बड़ा बाजार है.
यूरोप व अमेरिका के बीच लोगों के निजी डाटा का हस्तांतरण काफी बड़ा है. दोनो
भूगोलों के बीच प्राइवेसी के नियम अलग अलग हैं. इस आदेश के पहले तक अमेरिकी कंपनियां
एक प्राइवेसी शील्ड या सेफ हार्बर अरेंजमेंट के जरिये खुद प्रमाणित करती थी और
सूचनाओं का संग्रह कर लेती थीं. यूरोपीय अदालत के आदेश के बाद यह प्रक्रिया अवैध
हो गई.
अदालती
फरमान के बाद के यूरोप के डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड का डंडा चलने लगा. यूरोप के
जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीडीआर) के तहत नए नियम जारी हो गए. जिनके
उल्लंघन का मतलब था कि कंपनी पर भारी जुर्माना जो उसके ग्लोबल रेवेन्यू का चार
फीसदी तक हो सकता है. इस आदेश के बाद दुनिया के प्रमुख सोशल नेटवर्क, ई कॉमर्स कंपनियों को को अब सूचनायें जुटाने, कारोबारियों
से बांटने और हस्तांतरित करने की पूरी व्यवस्था बदलनी पड़ी है. मेकेंजी के एक तारी रिपोर्ट
मानती है कि
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यह फैसला डेटा
प्राइवेसी का पूरा परिदृश्य बदल रहा है
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यह घटनाक्रम
अंतरराष्ट्रीय डाटा ट्रांसफर के लिए एक तरह से नज़ीर बन गया क्यों कि इसमें अपने
लोगों की सूचनाओं पर वहां की सरकारों का अधिकार प्रमाणित हो गया है. अभी तक कंपनियां सूचनाओं
का अपने तरह से कारोबारी इस्तेमाल करती थीं
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इस आदेश के बाद
रुस चीन,अमीरात और एशिया के देशों के साथ डाटा ट्रांसफर के नियम
भी बदलेंगे और यह देश डाटा लोकलाइजेशन के सख्त नियम बना सकेंगे जिसमें गूगल,
फेसबुक, अमेजन जैसी कंपनियों के सर्वर स्थानीय
स्तर पर लगाने होंगे
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यह कदम इन
कंपनियों के ऊपर टैक्स का रास्ता भी खोलेगा जिस पर ग्लोबल बहस जारी है. जी20 और
ओईसीडी की अगुआई में बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रत्येक देश में एक न्यूनतम
टैक्स का प्रस्ताव लागू होने वाला है.
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यूरोपीय समुदाय
ही नहीं कैलीफोर्निया एक्ट ऑफ कस्टमर प्राइवेसी और अमेरिका कई राज्यों में
डाटा प्राइवेसी को लेकर खासी सख्ती शुरु हो गई है.
अब
वापस लौटते हैं फेसबुक पर जिसकी मुसीबत इस कानूनी बदलाव के साथ शुरु हुई. फेसबुक
ही क्यों गूगल, अमेजन, एपल
यानी वे सभी जो लोगों की सूचनाओं को बाजार तक ले जाकर मोटी कमाई कर रहे थे उनके
बिजनेस मॉडल लड़खड़ाने लगे हैं
केवल
एपल अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बदला बल्कि जनवरी 2020 में गूगल एलान किया किया कि वह
अगले दो साल मं क्रोम पर थर्ड पार्टी कुकीज पूरी तरह खत्म कर देगा.एपल इसका एलान
पहले ही कर चुका है. क्रोम तीसरा ब्राउजर होगा जो थर्ड पार्टी कुकीज बंद करने जा
रहा है यानी ब्राउजर बाजार के 85 फीसदी हिस्से में कुकीज का धंधा बंद हो जाएगा.
सनद रहे कि इंटरनेट उपभोक्ताओं को बेहतर और लक्षित सूचनायें व कंटेट देने के लिए
कुकीज का जन्म 1994 में हुआ था अब इसका
अवसान करीब है.
यूरोप
अमेरिका और अन्य देशों में चार तरह के बड़े बदलाव आ रहे हैं
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पहला अमेरिका में अमेजन, गूगल, फेसबुक आदि के बाजार एकाधिकार पर निर्णायक
कार्रवाई शुरु हो गइ है.
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दूसरा- यूरोपीय
जीडीपीडीआर उपभोक्ताओं को राइट टू बी फॉरगॉटेन दे रहा है यानी उसकी सूचना सिस्टम
में नहीं रहनी चाहिए
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तीसरा- सूचना
तकनीक कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य किया जा रहा है वह उपभोक्ताओं को इस बात
का अधिकार दें कि उन्हें ट्रैक किया जा या नहीं
भारत
जब फिनटेक भविष्य की क्रांति बनाने का मृदंग बजा रहा है, वहां मोबाइल से लेकर अस्पताल तक डाटा चोरी के प्रतिष्ठान चल रहे
हैं. डाटा प्रोटेक्शन के कानून पर पूरी
तरह मौन है, भारत को कब यह समझ में आएगा कि हमारी निजतायें
भी उतनी ही कीमती हैं जितनी की यूरोपीय और अमेरिकियों की
बहरहाल
न्यू इकोनॉमी दुनिया बदल रही है. टारगेटेड विज्ञापन जो डाटा मार्केटिंग की
बुनियाद है अब वही डगमगा गई है. मेकेंजी का मानना है कि कुकीज और
आइडेंटिफायर फॉर एडवरटाइजर्स (आईडीएफ) के बंद होने के बाद, इस सेवाओं का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को मार्केटिंग पर 10 से 20
फीसदी ज्यादा खर्च करना होगा.
फेसबुक
या अमेजन जैसी कंपनियों के लिए वक्त मुश्किल हो रहा है. डिजटिल अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा तो हमारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, खरीदने-बेचने, तलाशने-मिटाने, सुनने कहने की खरबों की सूचनाओं पर केंद्रित है.
इन्हीं को बेचकर तो अमेजन, गूगल, जोमाटो, पेटीएम, फेसबुक हमें उस लोक में ले जाते हैं जहां
सेवा तो मुफ्त है लेकिन हम बेचे जा रहे हैं.
लेकिन
अगर निजता के आग्रह मजबूत होते गए तो इंटरनेट पर मुफ्त सेवाओं का एक पूरा संसार
बदल नहीं जाएगा जिसकी आदत हमें पड़ चुकी है. न्यू इकोनॉमी के इस नए बदलाव की आहट
हमें फेसबुक के राजस्व में गिरावट से मिल चुकी है
क्या अब
गूगल, इस्टा, अमेजन,
फेसबुक की सेवाओं का मुफ्त युग खत्म होने के करीब है..
उलटी
गिनती शुरु हो रही है