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Tuesday, January 2, 2018

'इंसाफ' के सबक

नए साल की दस्तक बड़ी सनसनीखेज है. 2017 के ठीक अंत में एक अनोखे न्याय ने हमें उधेड़कर रख दिया है.

2जी घोटाले को लेकर अदालत को बिसूरने से क्या फायदाउसने तो हमें हमारी व्यवस्था की सड़न दिखा दी है. 2जी घोटाले में सभी को बरी करने का फैसला उसी कच्चे माल का उत्पाद है जो हमारी जांच एजेंसियों ने अदालत के सामने रखा था.

भारत घोटालों में कभी दरिद्र नहीं रहा लेकिन 2जी जैसे घोटाले दशकों में एक बार होते हैं. इस पर हजार बोफोर्स और सौ राष्ट्रमंडल घोटाले कुर्बान. इस घोटाले से राजनीति तो जो बदली सो बदलीइसने भारत में प्राकृतिक संसाधन आवंटन की नीतियां बदल दीं और 2जी का मारा दूरसंचार उद्योग अब तक उठ कर खड़ा नहीं हो पाया.

2जी पर अदालती फैसले के दो निष्कर्ष बड़े दो टूक हैं:

- जांच एजेंसियांआरोपों के पक्ष में सबूत और दस्तावेज पेश नहीं कर पाईं.
जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार या वित्तीय लेनदेन साबित नहीं कर सकीं. 

'लेनदेन' के नए तरीकों मसलनफैसला लेने वालों व लाइसेंस लेने वालों के बीच कारोबारी रिश्तों पर अदालत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.

इन निष्कर्षों ने भ्रष्टाचार से लड़ाई के मौजूदा तरीकों की चूलें हिला दी हैं.

सबूतों और दस्तावेजों की सुरक्षाः सरकारों के बदलते ही फाइलों के जलने की खबरें बेसबब नहीं होतीं. वित्तीय घोटालों में सबूत खत्म करना एक बड़ा घोटाला बन चुका है. 2जी पर फैसला बताता है कि जिन फाइलों पर फैसले हुए थेउनको या तो सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सका या फिर आदेशों को बुरी तरह बिखरा या उलझा दिया गया. इसलिए जांच एजेंसियां चार्जशीट दाखिल करने के बाद आरोपों की कडिय़ां जोड़ने के लिए सबूत नहीं ला पाईं. अधिकारियों की उलझी गवाही और अलग-अलग  व्‍याख्‍याओं ने भारत के सबसे बड़े और पेचीदा घोटाले में सबके बरी होने का रास्ता खोल दिया.

आर्थिक घोटाले वैसे भी पेचीदा होते हैं और जांच एजेंसियों के पहुंचने तक सबूत अक्सर आरोपियों के नियंत्रण में रहते हैं. सबूतों का खात्मा न्याय की उम्मीद को तोड़ देता है. बची-खुची कसर गवाहों को खरीद कर पूरी हो जाती है. यदि कानूनी बदलावों के जरिए या अदालतों की पहल पर सरकारें बदलने के बाद जरूरी दस्तावेजों की सुरक्षा नहीं की गई तो आगे किसी भी घोटाले में सजा देना असंभव हो जाएगा.

भ्रष्टाचार के नए तरीकेः 2जी घोटाले में अदालत ने कलैगनार टीवी को डीबी रियल्टी से मिले पैसे को भ्रष्टाचार नहीं माना. वे दिन अब लद गए जब रिश्वतें नकद में दी जाती थीं और नेताओं के बिस्तर के नीचे नोट बरामद होते थे. आर्थिक घोटालों में लेनदेन के असंख्य तरीके हैंजिनमें अंतर कंपनी निवेशकर्जशेयरों के आवंटन से लेकर राजनैतिक पार्टी को चंदा तक शामिल हो सकता है. प्रत्यक्ष‍ रूप से ये भी लेनदेन वैध हैं लेकिन भ्रष्टाचार के कानून के तहत इनकी स्पष्ट व्‍याख्‍या चाहिए. 

2जी पर फैसले ने दिखाया है कि हमारा मौजूदा कानूनी तंत्र और जांच एजेंसियां लगातार बढ़ रहे इन जटिल घोटालों के आगे कितने बौने हैं.

ध्यान रखना जरूरी है कि इस फैसले को उन बदलावों (सार्थक या नुक्सानदेह) की रोशनी में देखा जाएगा जो इस घोटाले के बाद पिछले पांच साल में हुए. 

2जी घोटाले के बाद...

- आरोपियों पर फैसला आने से पांच साल पहले पीड़ितों को (122 कंपनियों के लाइसेंस रद्द) सजा दे दी गई. अरबों का निवेश डूबाहजारों की नौकरियां गईं. भारत की छवि बुरी तरह आहत हुई. इसके बाद कोई बड़ी विदेशी कंपनी भारत में दूरसंचार में निवेश के लिए आगे नहीं आई.

- भारत की दूरसंचार क्रांति का चेहरा बदल गया. इसके बाद स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू हुई. पारदर्शिता तो आई लेकिन महंगी बोलियां लगीं. दूरसंचार सेवाओं की दरें बढ़ींकंपनियों ने कर्ज लिया. उद्योग में मंदी आई और अब महंगे स्पेक्ट्रम की मारी और 4.85 लाख करोड़ रु. के कर्ज में दबी कंपनियां मदद के लिए सरकार के दरवाजे पर खड़ी हैं. 

- इससे दूरसंचार उद्योग में प्रतिस्पर्धा खत्म हो गई. आज 135 करोड़ लोगों का बाजार केवल तीन या चार ऑपरेटरों के हाथ में है. 

यह बदलाव अच्छे थे या बुरेइसका दारोमदार सिर्फ इस पर होगा कि 2जी वास्तव में घोटाला था या नहीं. शुक्र है कि यह फैसला अभी निचली अदालत से आया है. ऊपर की मंजिलों से उम्मीद बाकी है. लेकिन बीता बरस जाते-जाते हमें झिझोड़ कर यह बता गया है कि राजनैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कितनी कठिन होती जा रही है.

Monday, January 13, 2014

निजीकरण का ऑडिट

निजी कंपनियों का सीएजी ऑडिट,  निजीकरण से उपभोक्‍ताओं के लाभ की थ्‍योरी को सवालों में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है।

भारत के आर्थिक सुधार पुरुष बीते हफ्ते जब इतिहास से दया के लिए चिरौरी कर रहे थे तब तारीख डा. मनमोहन सिंह को केवल एक असफल प्रधानमंत्री के तौर पर ही दर्ज नहीं कर रहा था तारीख यह भी लिख रही थी कि भारत की दूसरी आजादी उसी व्‍यकित की अगुआई में दागी हो गई जिसे खुद  उसने ही गढ़ा था। अनोखा संयोग है कि मनमोहन सिंह का रिटायरमेंट सफर और देश के उदारीकरण दूसरा ऑडिट एक साथ शुरु हो रहे हैं। देश का संवैधानिक ऑडीटर निजी कंपनियों के खातों को खंगालेगा और जरुरी सेवाओं की कीमतें तय करने के फार्मूले परखेगा। इस पड़ताल में घोटालों का अगला संस्‍करण निकल सकता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की पहली जांच में देश को प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट व नेता कंपनी गठजोड़ का पता चला था जबकि दूसरा ऑडिट , निजीकरण से उपभोक्‍ताओं के लाभ की थ्‍योरी को सवालों में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है। भारत के सुधार पुरोधा का यह परम दुर्भाग्‍य है कि उनके जाते जाते भारत के खुले बाजार की साख कुछ और गिर चुकी होगी।

Monday, February 6, 2012

जीत की हार


कुछ लालची नेताओं का भ्रष्‍टाचार, चालाक कंपनियों की मौका परस्‍ती और गठबंधन के सामने बेबस सरकार की निष्क्रियता!!! क्‍या इतने से हो गया विशाल 2जी घोटाला??? शायद नहीं। इस घोटाले का स्‍पेक्‍ट्रम (दायरा) इस कदर छोटा नहीं है। यह घोटाला एक ऐसे घाटे से उपजा है    जो किसी भी देश को व्‍यवस्‍था से अराजकता में पहुंचा देता है। आधुनिक कानूनों की अनुपस्थिति (लेजिस्‍लेटिव डेफशिट) ने देश की अनमोल साख को मुसीबत में फंसा दिया है। आकाश (स्‍पेक्‍ट्रम) और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों सहित कई क्षेत्रों में उचित कानूनों के शून्‍य के कारण घोटालेबाजों को लूट के मौके भरपूर मौके मिल रहे हैं। जिसके नतीजे उपभोक्‍ता, रोजगार व निवेशक चुकाते हैं। इसलिए अब सवाल घोटाले के दोषियों या बदहवास सरकार से नहीं बल्कि लोकतंत्र की सर्वशक्तिमान संसद से पूछा जाना चाहिए कि वह कानून बनाने या बदलने का असली काम आखिर कब शुरु करेगी, जिसके लिए वह बनी है। यकीनन 2जी लाइसेंस रद होने से पारदर्शिता और इंसाफ भारी जीत हुई है मगर व्‍यवस्‍था की साख हार गई है।
साख का स्‍पेक्‍ट्रम
निवेशकों की बेचैनी (122 दूरसंचार लाइसेंस रद होने पर) बेजोड़ है। उनके लिए तय करना मुश्किल है कि वह भारत के लोकतंत्र की जय बोलें और कानून के राज को सराहे या फिर सरकार को सरापें जिसकी दागी नीतियों के कारण उनकी दुर्दशा होने वाली है। अदालत से सरकारों को हिदायत, सुझाव, झिड़की और निर्देश मिलना नया नहीं है मगर इस अदालती इंकार ने लोकतंत्र की सर्वोच्‍च विधायिका और ताकतवर का कार्यपालिका की साख को विसंगतियों से भर दिया है। देश ने अपने इतिहास में पहली बार आर्थिक क्षेत्र में किसी बड़ी नीति की इतनी बडी, जो बेहद दुर्भाग्‍यपूर्ण है। कारोबार की दुनिया में किसी सरकार से मिला लाइसेंस एक संप्रभु सरकार की गारंटी है जिसके आधार पर निवेशक जोखिम उठाते हैं निवेश करते हैं। कारोबार शुरु होने के तीन साल बाद कारोबार का आधार में ही भ्रष्‍टाचार साबित हो और पूरी नीति ही अदालत में खारिज हो जाए तो किसका भरोसा जमेगा। 2जी का पाप दूरसंचार को ही पूरी सरकारी नीति प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है। अब सरकार के किसी फैसले पर भरोसा करने से पहले निवेशक सौ बार सोचेंगे कि क्‍यों कि पता नहीं कब कहां वह नीति दागी साबित हो और निवेशकों को अपना सामान समेटना पड़े। मगर इसके लिए अदालत फैसले को क्‍या बिसूरना, उसने तो कानूनों का गड्ढा दिखा दिया है।

Monday, December 6, 2010

पर्दा जो उठ गया !

अर्थार्थ
रा देखिये तो शर्म से लाल हुए चेहरों की कैसी अंतरराष्ट्रीय नुमाइश चल रही है। अमेरिका से अरब तक और भारत से यूरोप तक मुंह छिपा रहे राजनयिकों ने नहीं सोचा था कि विकीलीक्स ( एक व्हिसिल ब्लोइंग वेबसाइट) सच की सीटी इतनी तेज बजायेगी कि कूटनीतिक रिश्तों पर बन आएगी। दुनिया के बैंक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर सब उनकी कारोबारी गोपनीयता को उघाड़ क्यों देना चाहते हैं। कहीं (भारत में) कारोबारी लामबंदी बनाम निजता बहस की गरम है क्यों कि कुछ फोन टेप कई बड़े लोगों को शर्मिंदा कर रहे हैं। अदालतें सरकारी फाइलों में घुस कर सच खंगाल रही हैं। पूरी दुनिया में पारदर्शिता के आग्रहों की एक नई पीढ़ी सक्रिय है, जो संवेदनशीलता, गोपनीयता,निजता की मान्यताओं को तकनीक के मूसल से कूट रही है और सच बताने के पारंपरिक जिम्मेंदारों को पीछे छोड़ रही है। कूटनीति, राजनीति, कारोबार सभी इसके निशाने पर हैं। कहे कोई कुछ भी मगर, घपलों, घोटालों, संस्थागत भ्रष्टाचार और दसियों तरह के झूठ से आजिज आम लोगों को यह दो टूक तेवर भा रहे हैं। दुनिया सोच रही है कि जब घोटाले इतने उम्दा किस्म के हो चले हैं तो फिर गोपनीयता के पैमाने पत्थर युग के क्यों हैं ?
खतरनाक गोपनीयता
ग्रीस की संप्रभु सरकार अपने कानूनों के तहत ही अपनी घाटे की गंदगी छिपा रही थी। पर्दा उठा तो ग्रीस ढह गया। ग्रीस के झूठ की कीमत चुकाई लाखों आम लोगों ने, जो पलक झपकते दीवालिया देश के नागरिक बन गए । यूरोप अमेरिका की वित्तीय संस्थामओं ने नीतियों के पर्दे में बैठकर तबाही रच दी। अमेरिका लेकर आयरलैंड तक आम लोग अपने बैंकों के दरवाजे पीट कर यही तो पूछ रहे हैं कि यह कैसी कारोबारी गोपनीयता थी जिसमें उनका सब कुछ लुट