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Wednesday, December 22, 2021

ये क्‍या हुआ, कैसे हुआ !


 कंपन‍ियां, बैकों का कर्ज चुका कर हल्‍की हो रही हैं और आम परिवार कर्ज में डूब कर जिंदगी खत्‍म कर रहे हैं. छोटे उद्यमी आत्‍महत्‍या चुन रहे हैं और बड़ी कंपन‍ियां अधिग्रहण कर रही हैं गुरु जी अखबार किनारे रखकर कबीर की उलटबांसी बुदबुदा उठे ... एक अचंभा देखा भाई, ठाढ़ा सिंघ चरावे गाई... 

इसी बीच उनके मोबाइल पर आ गि‍री वर्ल्‍ड इनइक्‍व‍िल‍िटी रिपोर्ट, जिसे मशहूर अर्थविद तोमा प‍िकेटी व तीन अर्थव‍िदों ने बनाया है. रिपोर्ट चीखी, आय असमानता में भारत दुन‍िया में सबसे आगे न‍िकल रहा है. एक फीसदी लोगों के पास 33 फीसदी संपत्‍ति‍ है सबसे नि‍चले दर्जे वाले  50 फीसदी वयस्‍क लोगों की औसत सालाना कमाई केवल 53000 रुपये है.

गुरु सोच रहे थे कि काश, भारतीय पर‍िवारों, को कंपन‍ियों जैसी कुछ नेमत मिल जाती !

यद‍ि आपको कंपन‍ियों और पर‍िवारों की तुलना असंगत लगती है तो  याद  कीजिये भारत में आम लोग कोविड के दौरान क्‍या कर रहे थे और क्‍या हो रहा था कंपनियों में? लोग अपने जेवर गिरवी रख रहे थे, रोजगार खत्‍म होने से बचत खा रहे थे या कर्ज उठा रहे थे और दूसरी तरफ कंपन‍ियों को स‍ितंबर 2020 की तिमाही में 60 त‍िमाहियों से ज्‍यादा मुनाफा हुआ था

महामारी की गर्द छंटने के बाद हमें दि‍खता है क‍ि भारत की  कारपोरेट और परिवार यानी हाउसहोल्‍ड अर्थव्‍यवस्थायें एक दूसरे की विपरीत दि‍शा में चल रही हैं. यानी असमानता की दरारों में पीपल के नए बीज.

किसने कमाया क‍िसने गंवाया

वित्‍त वर्ष 2020-21 में जब जीडीपी, कोवडि वाली मंदी के अंधे कुएं में गिर गया तब शेयर बाजार में सूचीबद्ध भारतीय कंपन‍ियों के मुनाफे र‍िकार्ड 57.6 फीसदी बढ़ कर 5.31 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए. जो जीडीपी के अनुपात में 2.63 फीसदी है यानी (नकारात्‍मक जीडीपी के बावजूद) दस साल में सर्वाध‍िक.

यह बढत जारी है. इस साल की पहली छमाही का मुनाफा बीते बरस के कुल लाभ 80% है. कंपन‍ियों के प्रॉफ‍िट मार्ज‍िन 10.35 फीसदी की रिकार्ड ऊंचाई पर हैं.

पर‍िवारों की अर्थव्‍यवस्‍थाओं के ल‍िए बीता डेढ़ साल सबसे भयावह रहा. रिकार्ड बेरोजागारी की मार से लगभग 1.26 करोड़ नौकर‍ीपेशा काम गंवा बैठे. भारत में लेबर पार्टीस‍िपेशन दर ही 40 से नीचे चली गई यानी लाखों लोग रोजगार बाजार से बाहर हो गए. जबक‍ि 2020-21 के पहले छह माह में सभी (शेयर बाजार सहितकंपनियों के मुनाफे करीब 24 फीसद बढ़े अलबत्ता वेतन में बढ़ोतरी नगण्य थी (सीएमआईई)

सीएसओ के मुताबिक 2020-21 में प्रति व्यक्ति आय 8,637 रुपए घटी हैनिजी और  असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी और वेतन कटौती के कारण आयमें 16,000 करोड़ रुपए की कमी आई है. (एसबीआइ रिसर्च)

कमाई के आंकड़ों की करीबी पड़ताल बताती है क‍ि अप्रैल से अगस्‍त 2021 के बीच भी गांवों में गैर मनरेगा मजदूरी में कोई खास बढत नहीं हुई. 2020 का साल तो मजदूरी थी ही नहीं, केवल मनरेगा में काम मिला था.

इस बीच आ धमकी महंगाई. नोटबंदी के बाद से वेतन मजदूरी में बढ़ोत्‍तरी महंगाई से पिछड़ चुकी थी. कोव‍िड के दौरान लोगों ने उपचार पर न‍ियम‍ित खर्च के अलावा 66000 करोड़ रुपये किये. उपभोग खर्च में स्वास्थ्य का हिस्‍सा पांच फीसदी के औसत से बढ़कर एक साल में 11 फीसद हो गया. पेट्रोल डीजल की महंगाई के कारण सुव‍िधा बढ़ाने वाले उत्‍पाद सेवाओं पर खर्च बीते छह माह में करीब 60 फीसद घटा द‍िया (एसबीआइ रिसर्च)

किस्‍सा कोताह क‍ि बाजार में कहीं मांग नहीं थी. लेक‍िन इसके बाद भी कंपनियों ने रिकार्ड मुनाफे कमाये तो इसलिए क्‍यों क‍ि उन्‍हें 2018 में कर रियायतें मिलीं, खर्च में कमी हुई, रोजगारों की छंटनी और मंदी के कारण कमॉडिटी लागत बचत हुई इसलिए शेयर बाजारों में जश्‍न जारी है.

गुरु ठीक ही सोच रहे हैं क‍ि काश कम से कुछ आम भारतीय पर‍िवार इन कंपन‍ियों से जैसे हो जाते. 

कौन डूबा कर्ज में

बीते दो साल में जब सरकार के इशारे पर रिजर्व बैंक जमाकर्ताओं से कुर्बानी मांग रहा था यानी कर्ज सस्‍ता कर रहा था और जमा पर ब्‍याज दर घट रही थी तब मकसद यही था कि सस्‍ता कर्ज लेकर कंपन‍ियां नि‍वेश करेंगी, रोजगार मिलेगा और कमाई बढ़ेगी लेकिन हो उलटा हो गया.

कोविड कालीन मुनाफों का फायदा लेकर शीर्ष 15 उद्योगों की 1000 सूचीबद्ध कंपन‍ियों ने वित्‍त वर्ष 2021 अपने कर्ज में 1.7 लाख करोड़ की कमी की. इनमें भी रिफाइन‍िंग, स्‍टील, उर्वरक, कपड़ा, खनन की कंपनियों बड़े पैमानों पर बैंकों को कर्ज वापस चुकाये.. यहीं से सबसे ज्‍यादा रोजगारों की उम्‍मीद थी और जहां न‍िवेश हुआ ही नहीं.

कैपिटल लाइन के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 20 से मार्च 21 के बीच  भारत के कारपोरेट क्षेत्र का सकल कर्ज करीब 30 फीसदी घट गया. शुद्ध कर्ज में 17 फीसदी कमी आई.

तो फिर कर्ज में डूबा कौन ? वही पर‍िवार जिनके पास कमाई नहीं थी.

कोविड से पहले 2010 से 2019 में परिवारों पर कुल कर्ज उनकी खर्च योग्य आय के 30 फीसद से बढ़कर 44 फीसद हो चुका था (मोतीलाल ओसवाल रि‍सर्च)

कोव‍िड के दौरान 2020-21 में भारत में जीडीपी के अनुपात में पर‍िवारो का कर्ज 37.3 फीसदी हो गया जो इससे पहले साल 32.5 फीसदी था. जबकि जीडीपी के अनुपात में पर‍िवारों की शुद्ध वित्‍तीय बचत (कर्ज निकाल कर)  8.2 फीसदी पर है जो लॉकडाउन के दौरान तात्‍कालिक बढ़त के बाद वापस स‍िकुड़ गई.

 

कर्ज के कारण भोपाल में परि‍वार की खुदकुशी या छोटे उद्म‍ियों की बढ़ती आत्‍महत्‍या की घटनाओं को आंकड़ों में तलाशा जा सकता है. कई वर्ष में पहली बार एसा हुआ जब 2021 में वह कर्ज बढ़ा जिसके बदले कुछ भी गिरवी नहीं था. जाहिर है एसा कर्ज महंगा और जोखिम भरा होता है. बीते साल की चौथी तिमाही तक गैर आवास कर्ज में बढ़त 11.8 फीसदी थी जो मकानों के ल‍िए कर्ज से करीब चार फीसदी ज्‍यादा है. इस साल जून में गोल्‍ड लोन कंपन‍ियों ने 1900 करोड रुपये के  जेवरात की नीलामी की जो उनके पास गिरवी थे.

टैक्‍स की बैलेंस शीट

हमें हैरत होनी ही चाह‍िए कि भारत में अब कंपन‍ियां कम और लोग ज्‍यादा टैक्‍स देते हैं. इंडिया रेटिंग्‍स की रिपोर्ट बताती है क‍ि 2010 में केंद्र सरकार के प्रति सौ रुपए के राजस्व में  कंपन‍ियों से 40 रुपए  और  आम  लोगों  से  60  रुपए  आते  थे. अब 2020 में कंपनियां केवल 25 रुपए और आम परि‍वार 75  रुपए का टैक्‍स दे रहे हैं.  2018 में कॉर्पोरेट टैक्स में 1.45 लाख करोड़ रुपए की  रियायत दी गई है.

2010 से 2020 के बीच भारतीय परिवारों पर टैक्स (इनकम टैक्‍स और जीएसटी) का बोझ 60 से बढकर 75 फीसदी हासे गया. पिछले सात साल पेट्रो उत्‍पादों से टैक्स संग्रह 700 फीसद बढ़ा हैयह बोझ जीएसटी के बाद भी नहीं घटा. इस हिसाब में राज्‍यों के टैक्‍स शामि‍ल नहीं हैं जो लगातार बढ़ रहे हैं.

भारत और दुन‍िया में अब बड़ा फर्क आ चुका है. कोविड के दौरान भारतीय सबसे ज्‍यादा गरीब हुए. ताजा अध्‍ययन बताते हैं क‍ि अमेरिका, कनाडाऑस्ट्रेलिया व यूरोप में सरकारों ने सीधी मदद के जरिए परिवारों की कमाई में कमी नहीं होने दी. जबक‍ि भारत में राष्‍ट्रीय आय का 80 फीसद नुक्सान परिवार (और छोटी कंपन‍ियों) में खाते में गया.

कंपनियां कमायें और आम लोग गंवाये. कर्ज में डूबते जाएं. यह किसी भी आर्थि‍क मॉडल में चल ही नहीं सकता. परिवारों और कंपन‍ियों की अर्थव्‍यवस्‍थायें एक दूसरे के विपरीत दि‍शा चलना आर्थ‍िक बिखराव की शर्त‍िया गारंटी है. भारत के नी‍ति‍ नियामकों को यह समझने में ज‍ितनी देर लगेगी, हमारा भविष्‍य उतना ही ज्‍यादा अन‍िश्‍चित हो जाएगा

 


Thursday, July 1, 2021

बचेगी बचत !

 


सरकार क्या चाहती है लोग बचाएं या खर्च करें?

नेता-मंत्रियों के पास इस सीधे सवाल का जवाब नहीं है. जॉन मेनार्ड केंज का बचत अंतरविरोध (पैराडॉक्स ऑफ थ्रिफ्ट) नीतिगत सूझ को घेर कर बैठ गया है. बचत बढ़े तो खपत घटती है लेकिन अगर बचत घटे तो देश और लोगों, दोनों का भविष्य असुरक्षित! बचत ही बैंकों और बीमा आदि के जरिए कर्ज में बदलकर सरकारों और कंपनियों तक पहुंचती है. 

महामारी और मंदी में भारत के अधिकांश परिवार त्रिशंकु बन गए हैं. नौकरियां जाने, वेतन कटने, धंधे बंद होने से खपत-खर्च की कहानी ही खत्म हो गई है. तेल की कीमतों और महंगे इलाज ने 94 फीसद लोगों की आय सिकोड़ कर खर्च तोड़ दिया. 

ऐसे में बची बचत, लेकिन उसका बियाबान, खर्च के सूखे से कहीं ज्यादा जोखिम भरा है. 

2013-14 के बाद परिवारों की औसत कमाई (गांव और शहर) में तेज बढ़त नहीं हुई. इसलिए शुद्ध वित्तीय बचतें (कर्ज के बाद) जो 2005 में जीडीपी का 10.5 फीसद थीं, 2018-19 में 7.2 और 2019-20 में 8 फीसद रह गईं. महामारी और मंदी में बचतें टूटीं हैं यानी इस अनुपात में और कमी होनी है.

पांच साल में बचत दोगुनी!

सरकारी बैंक का ऐसा विज्ञापन आपने आखिरी बार कब देखा था?

सस्ते कर्ज के साथ बचतों के दुर्दिन शुरू हुए. सरकार समझ ही नहीं पाई कि सस्ता कर्ज लेने वाले बचत नहीं करते और बचत करने वाले कर्ज नहीं लेते. कोविड आने तक बचत खातों पर ब्याज तीन फीसद और फिकस्ड डिपॉजिट पर 5 से 6.5 फीसद (अलग-अलग जमा अवधि) गया था. बैंकों में जमा का अब 12 साल में भी दोगुना होना असंभव था. 

बचत के लिए टैक्स प्रोत्साहन खत्म हो चुके थे. फिकस्ड रिटर्न वाले बचत विकल्पों (बैंक जमा) में घाटा ही घाटा ही था. अब जोखिम के लिए बिना बचत को (महंगाई के मुकाबले) नुक्सान से बचाने का कोई रास्ता नहीं बचा था. 

इस बीच विदेश से आई सस्ती पूंजी ने शेयर बाजारों को चमका दिया था. किसी भी दूसरे निवेश (सोना, जमीन, मकान) से ज्यादा रिटर्न शेयर बाजार में था, सो परिवारों की छोटी बचतें म्युचअल फंड पर सवार होकर शेयर बाजारों में पहुंचने लगीं. मई 2014 से मई 2021 के बीच म्युचुअल फंड में निवेश (एसेट अंडर मैनेजमेंट) 10 से 33 लाख करोड़ रु. हो गया.  

वित्तीय बचतों का 51.7 फीसद हिस्सा अभी भी बैंकों में है लेकिन 6.7 फीसद बचतें म्युचुअल फंड या शेयर बाजार में हैं जो कोऑपरेटिव बैंकों में डिपॉजिट से 2.5 फीसद ज्यादा और घरों में रखी नकदी का आधा है.—आरबीआइ, मार्च 2021  

जोखिम की उलटी गिनती यहीं से शुरू होती है

बीते दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोई बड़ा ढांचागत चमत्कार नहीं किया, ‌इसके बावजूद शेयर बाजार झूमते रहे क्योंकि  

● 2008 (108 डॉलर प्रति बैरल) खासतौर पर 2014 के बाद कच्चा तेल सस्ता और भारत के लिए जोखिम कम होता गया. पेट्रो ईंधनों पर भरपूर टैक्स लगाकर सरकारों ने खूब कमाई की.  

● 2008 में बैंकिंग संकट के बाद पूरी दुनिया में ब्याज दरें घटीं. सस्ती पूंजी की पाइप खुल गई और शेयर बाजार नहाने लगे. विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता गया, जिससे रुपया डॉलर विनिमय दर नियंत्रण में रही.

● महंगाई कम होने (2014 से 2019 औसत सालाना 5 फीसद) से कर्ज भी सस्ता होता गया. 

● अर्थव्यवस्था का मूल ढांचा दरकने से कई छोटी कंपनियां बंद हुईं तो बड़ी कंपनियों के एकाधिकार बढ़े और इनके शेयर चमकते रहे. 

यही वजह थी कि नोटबंदी, बैंक कर्ज संकट, कई कंपनियों के डूबने और कोविड वाली मंदी के बावजूद शेयर बाजारों का उत्सव चलता रहा. छोटे निवेशक रीझते रहे. 

शेयर बाजार उम्मीदों पर दांव लगाते हैं, जहां जोखिम बढ़ रहा है. अमेरिका में 2023 से कर्ज महंगा होगा यानी सस्ती पूंजी सिमटेगी. सस्ते तेल की पार्टी खत्म हो रही है. अमेरिका सहित सभी उत्पादक फ्यूड ऑयल को 72-75 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रखना चाहते हैं  

कंपनियों के बढ़ते एकाधिकार की दम पर बाजार कहां तक खड़े हो पाएंगे जब अर्थव्यवस्था की बुनियादी ताकत (कमाई और खपत) टूट गई है.  

शेयर बाजार अब हर्षद या केतन पारेख वाले दौर में नहीं है. यह अब केवल सटोरियों या मोटी जेब वालों का शगल नहीं रह गया है. यहां लाखों परिवारों की बचत लगी है. याद रहे कि मार्च 2020 की एक गिरावट कई म्युचुअल फंड और उनके निवेशकों को डुबा गई.

बाजार का मिजाज संभालना सरकार के बस का नहीं है, अलबत्ता गैर शेयर बाजार बचतों को प्रोत्साहन देकर जोखिम संभाला जा सकता है. फिकस्ड रिटर्न वाले नए उपकरण और कम आय वालों लिए नए बचत विकल्प बनाने होंगे. 

कमाई में बढ़त और खपत में तेजी जल्दी नहीं लौटेगी. बचतों को मदद देकर ही गरीबी को और बढ़ने से रोका जा सकता है. हमारे कुछ सबसे अच्छे साल स्याह हो गए हैं लेकिन भविष्य तो है जिसे गढ़ने बचाने के लिए अब परिवारों और सरकारों, दोनों को बचतों का ही सहारा है.