चाईनीज चेकर (An Artharth E-xclusive)
और फ्रांस हार गया !!.... बात फीफा वर्ल्ड कप की नहीं है। .. वह तो मैदान का खेल है। हम उस खेल की बात कर रहे हैं जिसमें आज जीतने वाला एक दशक बाद सिकंदर होगा। जंग है दुनिया की सबसे अहम पीली धातु हथियाने की ! .... बिल्कुल सही समझे आप, हम सोने की नहीं यूरेनियम ( यूरेनियम को यलोकेक भी कहते हैं। अयस्क से पीले रंग का यूरोनियम कंसट्रेट पाउडर बनता है, जिसे बाद में यूरेनियम ईंधन में बदला जाता है) की बात कर रहे हैं। यूरेनियम की होड़ में चीन ने फ्रांस के दांत खट्टे कर दिये हैं और वह भी उसके अपने इलाके में। दुनिया जब अफ्रीका में बुवुजेला बजाने की तैयारी कर रही थी या मैक्सिको की खाड़ी में बीपी का कीचड़ साफ कर रही थी तब चीन ने फ्रांस को उसके अफ्रीकी आंगन में पटक दिया। चीन ने पश्चिम अफ्रीका में फ्रांस के पुराने उपनिवेश नाइजर में यूरेनियम की एक बड़ी खान हथिया ली। यह सौदा फ्रांस को हिला गया है।
नाइजर और पेरिस से दूर बैठे या यूरेनियम को लेकर दुनिया में चल रही होड़ से बेखबर लोग इस सौदे को हल्के में ले सकते हैं मगर फ्रांस के लिए यह सीधी हार है। साम दाम दंड भेद की सभी कलाओं में माहिर चीन ने नाइजर में फ्रांस का पूरा खेल ही पलट दिया है। चीन की सिर्फ कुछ वर्ष की मेहनत से चीनी कंपनियां गृह युद्ध के कारण चिथड़ा हो रहे नाइजर के सत्ता प्रतिष्ठानों की नाक का बाल बन गई हैं। नाइजर की एजिलेक नामक खान को हथियाकर चीन ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े यूरेनियम उत्पादक देश नाइजर में फ्रांस और उसकी मशहूर यूरेनियम ऊर्जा कंपनी अरेवा का चालीस साल पुराना एकाधिकार तोड़ दिया है।
नाइजर पर चर्चा बाद में.... पहले एक जायजा, चीन की यूरेनियम भूख का। जिसके कारण वह फ्रांस जैसे पुराने खिलाडि़यों को उनके उपनिवेश में धूल चटा रहा है। चीन अपने भविष्य को बहुत नपे तुले ढंग से ऊर्जावान कर रहा है। आणविक हथियारों की बहस से परे पूरी दुनिया जानती है कि आबो हवा को साफ सुथरा रखने वाली ऊर्जा भविष्य में यूरेनियम से ही निकलेगी। आणविक ऊर्जा में दुनिया में सबसे बड़ा देश बनना चीन का नया सपना है। चीन अपने डॉलरों की गठरी लेकर पूरी दुनिया में यूरेनियम खोदने, खरीदने व हथियाने निकल पड़ा है। चीन में आणविक ऊर्जा की ताजा क्षमता दस गीगावाट के करीब है। लेकिन 2020 तक यह 40 गीगावाट पहुंच जाएगी। चीन में 11 न्यूक्लियर ( भारत में रिएक्टर तो 19 हैं मगर चीन भारत से पांच गुना ज्यादा नाभिकीय बिजली बनाता है।) रिएक्टर काम कर रहे हैं। 24 बन रहे हैं और 150 बनने वाले हैं। इसके बाद दुनिया में सबसे ज्यादा रिएक्टर चीन के पास होंगे और 2050 तक 1000 गीगावाट की नाभिकीय बिजली बना रहा होगा। चीन को मालूम है कि अगले दो दशक में उसे वर्तमान से दस गुना ज्यादा यूरेनियम चाहिए। वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिशन इस पर मुहर लगाती है जिसके मुताबिक अगले दो दशक में चीन दुनिया में इस पीली धातु का सबसे अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता होगा।
चीन के पास डॉलरों से भरा भंडार है, जिसके बूते वह अफ्रीका से लेकर आस्ट्रेलिया तक हाथ मार रहा है। चीन की दोनों नाभिकीय ऊर्जा कंपनियां चाइना नेशनल न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन और चाइना गुआनडांग न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन पूरी दुनिया में यूरेनियम की खाने बटोरने के अभियान पर निकली हैं। चाइना गुआनडांग, कजाकस्तान ( दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक), उज्बेकिस्तान, आस्ट्रेलिया और नामीबिया में यूरेनियम खोद कर चीन का भंडार भर रही हैं तो चाइना नेशनल न्यूक्लियर, मंगोलिया व नाइजर में सक्रिय है। चाइना गुआनडांग ने पिछले साल एक यूरेनियम खान हथियाकर आसट्रेलिया के पूरे खनन उद्योग को हैरत में डाल दिया था। चीन की निगाह दक्षिण आस्ट्रेलिया में सिथत ओलंपिक के विशाल भंडार ओलंपिक डैम माइन पर भी हैं।
...... मगर चीन की चालों से आस्टे्लिया से ज्यादा फ्रांस परेशान है। नामीबिया व नाइजर जैसे अपने पुराने गुलाम देशों की जमीन के नीचे भरे यूरेनियम के सहारे फ्रांस की अरेवा दुनिया की सबसे बड़ी यूरेनियम उत्पादक बन गई। 1.2 बिलियन डॉलर के कारोबार वाली अरेवा को चीन का मिशन यूरेनियम मुश्किल में डाल रहा है। अरेवा नाइजर की पुरानी बाशिंदा है। उसकी इमोयूरारेन खान तैयार हो रही है जिससे 2013 तक 5000 टन यलोकेक निकलेगा। लेकिन अपने दशकों की मौजूदगी अरेवा चीन की कंपनी को एजिलेक खान लेने से नहीं रोक सकी। दरअसल अफ्रीका की भ्रष्ट राजनीति को चीन की दोस्ती रास आ रही है। भारी बोनस , नेताओं को हर तरह की सुविधा, देश में सड़कें पुल और गृह युद्ध में जरुरत के मुताबिक मदद.... चीन ने एक तरह से नाइजर को फ्रांस से काट सा दिया है। हिंसा और संघर्ष से भरे पूरी तरह स्थलीय (लैंडलॉक्ड) नाइजर में चीनी कंपनियां के पास तेल रिफाइनरी है, एक तेल ब्लॉक है और ....... यूरेनियम भी है। यानी बात पश्चिम अफ्रीका में फ्रांस के दबदबे पर बन आई है।
गृह युद्धों और हथियारबंद गिरोहों से भरे अधिकांश अफ्रीका में चीन खुलकर खेल रहा है। यूरेनियम हथियाने के लिए वह बोत्सवाना में जापान को पीछे धकेल रहा है तो नाइजर में फ्रांस को। ...... इस बेहद संवेदनशील धातु की बिसात पर चीन के पैंतरे बड़े नपे तुले हैं। एक दशक बाद चीन की नाभिकीय उत्पादन क्षमता दुनिया के लिए ईर्ष्या का सबब बन जाएगी।
और फ्रांस हार गया !!.... बात फीफा वर्ल्ड कप की नहीं है। .. वह तो मैदान का खेल है। हम उस खेल की बात कर रहे हैं जिसमें आज जीतने वाला एक दशक बाद सिकंदर होगा। जंग है दुनिया की सबसे अहम पीली धातु हथियाने की ! .... बिल्कुल सही समझे आप, हम सोने की नहीं यूरेनियम ( यूरेनियम को यलोकेक भी कहते हैं। अयस्क से पीले रंग का यूरोनियम कंसट्रेट पाउडर बनता है, जिसे बाद में यूरेनियम ईंधन में बदला जाता है) की बात कर रहे हैं। यूरेनियम की होड़ में चीन ने फ्रांस के दांत खट्टे कर दिये हैं और वह भी उसके अपने इलाके में। दुनिया जब अफ्रीका में बुवुजेला बजाने की तैयारी कर रही थी या मैक्सिको की खाड़ी में बीपी का कीचड़ साफ कर रही थी तब चीन ने फ्रांस को उसके अफ्रीकी आंगन में पटक दिया। चीन ने पश्चिम अफ्रीका में फ्रांस के पुराने उपनिवेश नाइजर में यूरेनियम की एक बड़ी खान हथिया ली। यह सौदा फ्रांस को हिला गया है।
नाइजर और पेरिस से दूर बैठे या यूरेनियम को लेकर दुनिया में चल रही होड़ से बेखबर लोग इस सौदे को हल्के में ले सकते हैं मगर फ्रांस के लिए यह सीधी हार है। साम दाम दंड भेद की सभी कलाओं में माहिर चीन ने नाइजर में फ्रांस का पूरा खेल ही पलट दिया है। चीन की सिर्फ कुछ वर्ष की मेहनत से चीनी कंपनियां गृह युद्ध के कारण चिथड़ा हो रहे नाइजर के सत्ता प्रतिष्ठानों की नाक का बाल बन गई हैं। नाइजर की एजिलेक नामक खान को हथियाकर चीन ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े यूरेनियम उत्पादक देश नाइजर में फ्रांस और उसकी मशहूर यूरेनियम ऊर्जा कंपनी अरेवा का चालीस साल पुराना एकाधिकार तोड़ दिया है।
नाइजर पर चर्चा बाद में.... पहले एक जायजा, चीन की यूरेनियम भूख का। जिसके कारण वह फ्रांस जैसे पुराने खिलाडि़यों को उनके उपनिवेश में धूल चटा रहा है। चीन अपने भविष्य को बहुत नपे तुले ढंग से ऊर्जावान कर रहा है। आणविक हथियारों की बहस से परे पूरी दुनिया जानती है कि आबो हवा को साफ सुथरा रखने वाली ऊर्जा भविष्य में यूरेनियम से ही निकलेगी। आणविक ऊर्जा में दुनिया में सबसे बड़ा देश बनना चीन का नया सपना है। चीन अपने डॉलरों की गठरी लेकर पूरी दुनिया में यूरेनियम खोदने, खरीदने व हथियाने निकल पड़ा है। चीन में आणविक ऊर्जा की ताजा क्षमता दस गीगावाट के करीब है। लेकिन 2020 तक यह 40 गीगावाट पहुंच जाएगी। चीन में 11 न्यूक्लियर ( भारत में रिएक्टर तो 19 हैं मगर चीन भारत से पांच गुना ज्यादा नाभिकीय बिजली बनाता है।) रिएक्टर काम कर रहे हैं। 24 बन रहे हैं और 150 बनने वाले हैं। इसके बाद दुनिया में सबसे ज्यादा रिएक्टर चीन के पास होंगे और 2050 तक 1000 गीगावाट की नाभिकीय बिजली बना रहा होगा। चीन को मालूम है कि अगले दो दशक में उसे वर्तमान से दस गुना ज्यादा यूरेनियम चाहिए। वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिशन इस पर मुहर लगाती है जिसके मुताबिक अगले दो दशक में चीन दुनिया में इस पीली धातु का सबसे अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता होगा।
चीन के पास डॉलरों से भरा भंडार है, जिसके बूते वह अफ्रीका से लेकर आस्ट्रेलिया तक हाथ मार रहा है। चीन की दोनों नाभिकीय ऊर्जा कंपनियां चाइना नेशनल न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन और चाइना गुआनडांग न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन पूरी दुनिया में यूरेनियम की खाने बटोरने के अभियान पर निकली हैं। चाइना गुआनडांग, कजाकस्तान ( दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक), उज्बेकिस्तान, आस्ट्रेलिया और नामीबिया में यूरेनियम खोद कर चीन का भंडार भर रही हैं तो चाइना नेशनल न्यूक्लियर, मंगोलिया व नाइजर में सक्रिय है। चाइना गुआनडांग ने पिछले साल एक यूरेनियम खान हथियाकर आसट्रेलिया के पूरे खनन उद्योग को हैरत में डाल दिया था। चीन की निगाह दक्षिण आस्ट्रेलिया में सिथत ओलंपिक के विशाल भंडार ओलंपिक डैम माइन पर भी हैं।
...... मगर चीन की चालों से आस्टे्लिया से ज्यादा फ्रांस परेशान है। नामीबिया व नाइजर जैसे अपने पुराने गुलाम देशों की जमीन के नीचे भरे यूरेनियम के सहारे फ्रांस की अरेवा दुनिया की सबसे बड़ी यूरेनियम उत्पादक बन गई। 1.2 बिलियन डॉलर के कारोबार वाली अरेवा को चीन का मिशन यूरेनियम मुश्किल में डाल रहा है। अरेवा नाइजर की पुरानी बाशिंदा है। उसकी इमोयूरारेन खान तैयार हो रही है जिससे 2013 तक 5000 टन यलोकेक निकलेगा। लेकिन अपने दशकों की मौजूदगी अरेवा चीन की कंपनी को एजिलेक खान लेने से नहीं रोक सकी। दरअसल अफ्रीका की भ्रष्ट राजनीति को चीन की दोस्ती रास आ रही है। भारी बोनस , नेताओं को हर तरह की सुविधा, देश में सड़कें पुल और गृह युद्ध में जरुरत के मुताबिक मदद.... चीन ने एक तरह से नाइजर को फ्रांस से काट सा दिया है। हिंसा और संघर्ष से भरे पूरी तरह स्थलीय (लैंडलॉक्ड) नाइजर में चीनी कंपनियां के पास तेल रिफाइनरी है, एक तेल ब्लॉक है और ....... यूरेनियम भी है। यानी बात पश्चिम अफ्रीका में फ्रांस के दबदबे पर बन आई है।
गृह युद्धों और हथियारबंद गिरोहों से भरे अधिकांश अफ्रीका में चीन खुलकर खेल रहा है। यूरेनियम हथियाने के लिए वह बोत्सवाना में जापान को पीछे धकेल रहा है तो नाइजर में फ्रांस को। ...... इस बेहद संवेदनशील धातु की बिसात पर चीन के पैंतरे बड़े नपे तुले हैं। एक दशक बाद चीन की नाभिकीय उत्पादन क्षमता दुनिया के लिए ईर्ष्या का सबब बन जाएगी।
यही तो है चाइनीज चेकर !!!!!!
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