स्वच्छता की प्रेरणाएं सर माथे, मगर सफाई, सीवेज और कचरा प्रबंधन रोजाना लड़ी
जाने वाली जंग है जिसमें भारी संसाधन लगते हैं.
नए हवाई अड्डों
पर लोग खुले में शंका-समाधान नहीं करते पर रेलवे
प्लेटफॉर्म पर सब चलता है. शॉपिंग मॉल्स के फूड कोर्ट में गंदगी होती तो है, दिखती नहीं.
अलबत्ता गली की रेहड़ी के पास कचरा बजबजाता है. सरकारी
दफ्तरों के गलियारे दागदार हैं, दूसरी ओर निजी
ऑफिस कॉम्प्लेक्स की साफ-सुथरी सीढिय़ां मोबाइल पर बतियाने का पसंदीदा ठिकाना हैं. स्वच्छता अभियानों का
अभिनंदन है लेकिन सफाई की बात, स्वयंसेवा की पुकारों
से आगे जाती है और स्वच्छता को बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी
समस्या बनाती है जो बुनियादी ढांचे की जिद्दी किल्लत से बेजार हैं. शहरों में अब
साफ और गंदी इमारतें, अस्पताल और
सार्वजनिक स्थल एक साथ दिखते हैं और यह फर्क लोगों की इच्छाशक्ति से
नहीं बल्कि सुविधाओं की आपूर्ति से आया है. सफाई, सरकार की
जिम्मेदारियों में आखिरी क्रम पर है इसलिए सरकारी प्रबंध वाले सार्वजनिक स्थल
बदबूदार हैं जबकि निजी प्रबंधन वाले सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता दैनिक
कामकाज का स्वाभाविक हिस्सा है. क्या खूब होता कि आम लोगों को झाड़ू उठाने के
प्रोत्साहन के साथ, कर्मचारियों की कमी, कचरा प्रबंधन की चुनौतियों, बुनियादी ढांचे के
अभाव और संसाधनों के इंतजाम की चर्चा भी शुरू होती, जिसके बिना सफाई
का सिर्फ दिखावा ही हो सकता है.
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