कहते हैं कि अमेजन वाले जेफ बेजोस और चीन के पास बदलती दुनिया
की सबसे बेहतर समझ है. वे न
सिर्फ यह जानते हैं कि क्या बदलने वाला है बल्कि यह भी जानते हैं कि क्या नहीं बदलेगा.
बेजोस ने एक बार कहा था कि कुछ भी बदल जाए लेकिन कोई उत्पादों को महंगा करने या डिलिवरी
की रफ्तार धीमी करने को नहीं कहेगा. लगभग ऐसा ही ग्लोबलाइजेशन
के साथ है जिससे आर्थिक तरक्की तो क्या, कोविड का इलाज भी असंभव
है. चीन ने यह सच वक्त रहते भांप लिया है.
दुनिया जब तक यह समझ पाती कि डोनाल्ड ट्रंप की विदाई
उस व्यापार व्यवस्था से इनकार भी है जो दुनिया को कछुओं की तरह अपने खोल में सिमटने
यानी बाजार बंद करने के लिए प्रेरित कर रही थी,
तब तक चीन ने विश्व व्यापार व्यवस्था का तख्ता पलट कर ग्लोबलाइजेशन के
नए कमांडर की कुर्सी संभाल ली.
चीन,
पहली बार किसी व्यापार समूह का हिस्सा बना है. आरसीईपी (रीजन कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप)
जीडीपी के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक (30 फीसद आबादी) गुट है, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशिया (आसियान) के देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड
के अलावा एशिया की पहली (चीन),
दूसरी (जापान) और चौथी
(कोरिया) सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं.
आरसीईपी अगले दस साल में आपसी व्यापार में 90 फीसद
सामान पर इंपोर्ट ड्यूटी पूरी तरह खत्म कर देगा.
आरसीईपी के गठन का मतलब है कि
•चीन जो विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में सबसे देर से दाखिल हुआ था, उसने उदारीकरण को ग्लोबल कूटनीति की मुख्य
धारा में फिर बिठा दिया है. मुक्त व्यापार की बिसात पर आरसीईपी
चीन के लिए बड़ा मजबूत दांव होने वाला है.
•अमेरिका के नेतृत्व में ट्रांस पैसिफिक
संधि, (ट्रंप ने जिसे छोड़ दिया था) को
दुनिया की सबसे बड़ा आर्थिक व्यापारिक समूह बनना था.
आरसीईपी के अब अमेरिका, लैटिन अमेरिका,
कनाडा और यूरोप को अपनी संधि खड़ी करनी ही होगी.
छह साल तक वार्ताओं में शामिल रहने के बाद, बीते नवंबर में भारत ने अचानक इस महासंधि
को पीठ दिखा दी. फायदा किसे हुआ यह पता नहीं लेकिन
सरकार को यह जरूर मालूम था कि आरसीईपी जैसे बड़े व्यापारिक गुट का हिस्सा बनने पर भारत
के जीडीपी में करीब एक फीसद, निवेश में 1.22 फीसद और निजी खपत में 0.73 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती थी (सुरजीत भल्ला समिति 2019). वजह यह कि आरसीईपी
में शामिल आसियान, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ
भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हैं.
इन समझौतों के बाद (आर्थिक समीक्षा
2015-16) इन देशों से भारतीय व्यापार 50 फीसद बढ़ा.
निर्यात में बढ़ोतरी तो 25 फीसद से ज्यादा रही.
आत्मनिर्भरता के हिमायती स्वदेशी ‘चिंतक’ मान रहे
थे कि भारत के निकलने से आरसीईपी बैठ जाएगा पर किसी ने हमारा इंतजार नहीं किया.
यही लोग अब कह रहे हैं कि धीर धरो, आरसीईपी में
शामिल देशों से भारत के व्यापार समझौतों पर इस महासंधि का असर
नहीं होगा. जबकि हकीकत यह है कि आरसीईपी के सदस्य दोतरफा और बहुपक्षीय
व्यापार में अलग-अलग नियम नहीं अपनाएंगे. दस साल में यह पूरी तरह मुक्त व्यापार (ड्यूटी फ्री)
क्षेत्र होगा. भारत को चीन से निकलने वाली कंपनियों
की अगवानी की उम्मीद है लेकिन तमाम प्रोत्साहनों के चलते वे अब इस समझौते के सदस्यों
को वरीयता देंगी. यानी कि भारत के और ज्यादा अलग-थलग पड़ने का खतरा है.
आरसीईपी के साथ उदार बाजार (ग्लोबाइलाइजेशन) पर भरोसा लौट रहा है. कारोबारी हित जापान और चीन को एक
मंच पर ले आए हैं. नई व्यापार संधियां
बनने में लंबा वक्त लेती हैं इसलिए आरसीईपी फिलहाल अगले एक दशक तक दुनिया में बहुपक्षीय
व्यापार का सबसे ताकतवर समूह रहेगा.
भविष्य जब डराता है तो लोग सबसे अच्छे दिन वापस पाना
चाहते हैं. जीडीपी में बढ़त,
गरीबी में कमी, नई तकनीकें, अंतरराष्ट्रीय संपर्क ताजा इतिहास में सबसे अच्छे दिन हैं जो ग्लोबलाइजेशन
और उदारीकरण ने गढ़े थे. आज कोविड वैक्सीन और दवा पर अंतरराष्ट्रीय
विनिमय इसी की देन है.
बीते दो दशक में मुक्त व्यापार और ग्लोबलाइजेशन ने भारत
की विकास दर में करीब पांच फीसद का इजाफा किया.
यानी गरीबी घटाने वाली ग्रोथ का ‘चमत्कार’
दुनिया से हमारी साझेदारी का नतीजा था. इसे दोहराने
के लिए अब हमें पहले से दोहरी मेहनत करनी होगी.
आरसीईपी को भारत की नहीं बल्कि भारत को दुनिया के बाजार की ज्यादा जरूरत है. कोविड की मंदी के बाद घरेलू मांग के
सहारे 6 फीसद की विकास दर भी नामुमकिन है. अब विदेशी बाजारों के लिए उत्पादन (निर्यात) के बिना अर्थव्यवस्था खड़ी नहीं हो सकती.
एशिया में मुक्त व्यापार का कारवां, भारत को छोड़कर चीन की अगुआई में नई
व्यवस्था की तरफ बढ़ गया है. भारत को इस में अपनी जगह बनानी होगी,
उसकी शर्तों पर व्यवस्था नहीं बदलेगी.