खरे असत्य से कहीं ज्यादा मारक होते हैं, सच जैसे दिखने वाले झूठ. सरकारों की टकसाल इस तरह के उत्पादों के लिए विख्यात हैं. बजट से ठीक पहले से जितनी बार हमें यह सुनाई पड़े कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद बहुत मजबूत है उतनी बार पलटकर हमें सरकारी आंकड़ा तंत्र (एनएसएसओ) की ताजा रिपोर्ट पढ़नी चाहिए.
दरअसल, अब तो भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद ही दरक रही है. इस अभूतपूर्व मंदी ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी है. एनएसएसओ (ताजा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी का आकलन) के आंकड़ों में भारत की विकास दर 42 साल के (1978 के बाद) न्यूनतम स्तर पर है. यह आकलन महंगाई सहित विकास दर पर आधारित है जो सबसे व्यावहारिक पैमाना है. इसी के आधार पर पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का ख्वाब देखा गया है. स्थायी मूल्यों पर भी विकास दर 11 साल के न्यूनतम स्तर पर है.
जीडीपी की विकास दर (महंगाई मिलाकर और स्थायी मूल्य पर) निवेश-बचत, मांग-खपत, महंगाई, रोजगार दर, विदेशी मुद्रा भंडार, ब्याज दरें आदि देश की आर्थिक सेहत के बुनियादी पैमाने माने जाते हैं. जाहिर है, आर्थिक विकास के सफर में एक-दो तिमाही की सुस्ती से भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था की बुनियाद ही नहीं दरक सकती. एनएसएसओ का आंकड़ा बता रहा है कि दरअसल हुआ क्या है!
l इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निवेश की सालाना वृद्धि दर 15 साल
के न्यूनतम स्तर (0.97 फीसद) पर
आ गई, जो 2004-08 के
बीच में 18 फीसद
और 2008-18 के
बीच 5.5 फीसद
की दर से बढ़ रहा था. पूंजी
निवेश (वर्तमान
मूल्यों पर जीडीपी के अनुपात में) 1960 के
बाद से लगातार बढ़ता रहा है. 2008 में 38 फीसद और 2018 में 33 फीसद के बाद अब यह केवल 29 फीसद
पर है.
क्या हुआ राज्यों के महंगे उद्योग मेलों में आए निवेश का, स्टार्ट अप की पूंजी और भारी विदेशी निवेश, सब कहां खो गया जो निवेश का इतना बुरा हाल हुआ है. निवेश के आंकडे़ बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की बुनियादी कमजोरी के कारण उद्योग जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं. 2019 में रिकॉर्ड बेरोजगारी दर, निवेश में गिरावट का सबसे बड़ा आईना है.
l इस साल उपभोक्ताओं का खपत खर्च बढ़ने की गति 5.8 फीसद (बीते साल 8 फीसद) रह गई. पिछले बीस साल में उपभोग (जीएसटी के पहले तक) और आय पर टैक्स बढ़ने के बावजूद खपत की दर कमाई बढ़ने से ज्यादा तेज रही है इसलिए जीडीपी ने तेज छलांग लगाई थी.
कर्मचारियों को वेतन आयोग, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, किसानों को नकद भुगतान, जीएसटी दरों में कमी और महंगाई दर में कमी के बाद भी खपत इस कदर टूट गई कि वह जीडीपी (57.4 फीसद हिस्सा) को ले डूबी.
l भारत में बचत घटने की दर आय में गिरावट से भी तेज है. आय और बचत में गिरावट 2012 से एक साथ शुरू हुई थी लेकिन बाद में बचतें ज्यादा तेजी से गिरी हैं. जीडीपी के अनुपात में बचत जो 2006 से 2010 के बीच 23.6 फीसद थी अब 17.9 फीसद रह गई. वित्तीय बचतें और ज्यादा तेजी से घटी हैं.
l हैरत नहीं कि एनएसएसओ ने भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की दर को नौ साल के सबसे निचले स्तर पर पाया है. यह गरीबी बढ़ने का सीधा सबूत है. संयुक्त राष्ट्र के विकास लक्ष्यों पर नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 22 राज्यों में 2018 के बाद गरीबी, 24 राज्यों में भुखमरी और 25 राज्यों में आय में असमानता में इजाफा हुआ है.
ताजा आंकड़ों की रोशनी में यह देखना मुश्किल नहीं है कि—
l भारत में निवेश की दर में जल्द तेजी लौटने की उम्मीद नहीं है. कई उद्योग तो मांग टूटने के कारण कीमतें बढ़ाने की ताकत भी खो चुके हैं. उन्हें नीतियों में स्थिरता और अच्छे रिटर्न की उम्मीद चाहिए.
l अगर आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ती है तो इससे शुरुआती महीनों में खपत और घटेगी.
- आय और बचत में एक साथ गिरावट जटिल समस्या है, जिसे ठीक होने में तीन-चार साल लगेंगे. कम आय-कम खपत का दुष्चक्र टूटने के बाद ही बचत बढे़गी.
l अगर अगले पांच साल तक विकास दर (महंगाई सहित) 8-9 फीसद पर ही रहनी है तो फिर कंपनियों की कमाई में दहाई के अंकों की बढ़त नहीं होगी. इस सूरत में भारत का शेयर बाजार ग्लोबल निवेशकों के लिए कितना आकर्षक रह जाएगा!
आंख बंद कर लेने से नजारे बदल नहीं जाते! अर्थव्यवस्था की नींव चरमराने की वजह से ही पिछले छह माह में मंदी से निबटने की सभी सरकारी कोशिशें औंधे मुंह गिरी हैं. तेज विकास दर तो जल्दी लौटने से रही, अब तो बुनियाद को पूरी तरह बिखर जाने से बचाने की कोशिश होनी चाहिए. लेकिन इसके लिए आने वाले बजट को सच में बजट ही होना होगा, भुलावे का इश्तिहार नहीं.