Showing posts with label India stock market. Show all posts
Showing posts with label India stock market. Show all posts

Sunday, June 19, 2022

हम थे जिनके सहारे



 

राज्‍यों के अगले चुनाव दिल्‍ली के लिए अगला रोमांच हैं. लेक‍िन मुंबई गहरी मुश्‍क‍िल में है या यानी  कैच 22 में . मुंबई से मतलब है शेयर बाजार, सेबी, रिजर्व बैंक कंपनियों के न‍िवेश की दुनिया. जो दिल्‍ली जैसा कुछ नहीं देख पा रही है.

युद्धों की चर्चा ज़बानों की नोक पर है तो सनद रहे कैच 22 यानी गहरे अंतरविरोध का परिचय देने वाला मुहावरा दरअसल जंग की कथा से न‍िकला था. अमेरिकी उपन्‍यासकार जोसेफ हेलर ने दूसरे विश्‍व युद्ध की पृष्‍ठभूमि में जंग और नौकरशाही पर 1961 में कैच 22 नाम एक व्‍यंग्‍यात्‍मक उपन्‍यास लिखा था

यह कहानी योसेर‍ियन नाम एक लड़ाकू पायलट की थी जो जंग में तैनाती से बचने के लिए खुद को पागल घोष‍ित कर देता है. डॉक्‍टर उसकी जांच करते हैं और रिपोर्ट देते हैं कि युद्ध नहीं करना चाहता तो वह पागल है ही नहीं क्‍यों कि युद्ध के लिए पागलपन पहली शर्त है. यानी कि योसेर‍ियन को अगर खुद को पागल साबित करना है तो उसे जहाज से बम बरसाने थेलेकिन अगर यही करना है तो खुद को    पागल कहलाने से क्‍या फायदा ?

 

क्‍या है कैच 22 मुंबई का

मुंबई यानी व‍ित्‍तीय बाजारों और नियामकों का कैच 22 क्‍या है ?

भारत की ताजा मुसीबतों की जड़ शेयर बाजार है

जिनकी उम्‍मीदें थीं कि कोविड तो गया. अब भारत  तूफान से बाहर निकल आया है उन्‍हें अब यह बाजार एक एसे दुष्‍चक्र का प्रस्‍थान बिंदु लग रहा है  जहां कृपा अटक गई है

आप कहेंगे कुछ ज्‍यादा नहीं हो गया यह आकलन. इतनी विराट  अर्थव्‍यवस्‍था और छोटा सा शेयर बाजार ? भारत के लोगों की कुल बचतों में शेयरों का हिस्‍सा तो केवल 4.8 फीसदी है, एसा जेफ्रीज की एक ताजा रिपोर्ट ने कहा है

यही तो है वह रोमांचक बटरफ्लाई इफेक्‍ट यानी केऑस थ्‍योरी जिसमें एक छोटी सी घटना या बदलाव बड़े तूफान उठा देती है.  एक दूसरे में गहराई से गुंथी बुनी वित्‍तीय दुनिया इस इफेक्‍ट का शानदार नमूना है. शेयर बाजार के छोटे से आकार पर गफलत में रहना ठीक नहीं है बात तित‍िलयों की है तो यहां से कुछ ति‍त‍िलयां पतंगों की उड़ान ने कुछ एसा तूफान उठा दिया है कि दूर जालंधर में मोबाइल रिपेयर वाले परमजीत पुर्जे महंगे होने के कारण दुकान बंद करनी पड़ रही है  

आपका आश्‍चर्य बनता हैं सांसत में तो वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमन भी रहीं हैं, आरबीआई गवर्नर तो बेबाक चौंक रहे हैं

बटरफ्लाई इफेक्‍ट

बटरफ्लाई एफेक्‍ट को समझने के लिए इसकी सूक्ष्‍म शुरुआत को नहीं बल्‍क‍ि बल्‍क‍ि महासागरीय आकार के प्रभाव को देखना चाहिए. जड़ शेयर बाजार में तेज गिरावट, मंदी वाले बाजार की आहट और विदेशी निवेशकों के प्रवास से है लेक‍िन हम रुख करते है भारत की सबसे खतरनाक दरार की ओर. वह है डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया जो 78 के करीब है, 80 की मंज‍िल दूर नहीं है. और भारत का टूटता विदेशी मुद्रा भंडार जो अब केवल एक साल के आयात के लिए पर्याप्‍त है.

भारत में विदेशी मुद्रा के प्रमुख स्रोत सामान सेवाओ निर्यात, शेयर बाजार में निवेश और विदेशी पूंजी निवेश (पीई स्‍टार्ट अप) हैं. एक छोटा सा हिससा विदेशी व्‍यक्‍त‍िगत धन प्रेषण आदि का है.   

स्‍टैंडर्ड चार्टर्ड ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि विदेशी मुद्रा भंडार नौ माह के आयात की जरुरत के स्‍तर तक घट सकता है. गिरावट में 45 फीसदी हिस्‍सा डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी का है, 30 फीसदी गिरावट रुपये को बचाने में रिजर्व बैंक तरफ झोंके गए डॉलर के कारण आई है जबकि 25 फीसदी कमी आयात की लागत बढने से आई है

चार्ट .. भारत का विदेशी मुद्रा भंडा गिरावट

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 27 मई 2022 को समाप्‍त सप्‍ताह में करीब 597 अरब डॉलर था. वित्‍त वर्ष 2022  भारत का कुल आयात करीब 610 अरब डॉलर रहा और निर्यात करीब 418 अरब डॉलर. यही वजह है कि भारत ने 2022 के वित्‍त वर्ष की समाप्‍ति‍ रिकार्ड 192 अरब डॉलर व्‍यापार घाटे (आयात और निर्यात का अंतर) से की. आयात के बिल की रोशनी में विदेशी मुद्रा भंडार साल भर के आयात से कम है. बाजार से निकलने वाली विदेशी पूंजी और विदेशी कर्ज के भुगतान की जरुरतें अलग से

विदेशी मुद्रा भंडार के हिसाब को एक और बड़ी तस्‍वीर में फिट किया जाता है. ताकि समग्र अर्थव्‍यवस्‍था की ताकत कमजोरी मापी जा सके. यह करेंट अकाउंट डेफश‍िट या सरप्‍लस है. यह किसी देश में विदेशी मुद्रा की आवक निकासी का सबसे बड़ा हिसाब होता है और देश बाहरी मोर्चे पर ताकत कमजोरी का पैमाना. इस घाटे की गणना में सामानों के निर्यात आयात के अलावा, सेवाओं का निर्यात, शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी पूंजी न‍िवेश, विदेश से भेजे गए धन आद‍ि शामिल होते हैं .

कोविड के वर्षों में तो भारत ने इस घाटे को खत्‍म कर दिया था क्‍यों कि आयात बंद थे लेक‍िन अब यह नौ साल की ऊंचाई पर है. यानी करीब 23 अरब डॉलर. दस साल का सबसे ऊंचा स्‍तर दूर नही है.

आयात की तुलना में निर्यात तो कम हैं हीं इसके साथ ही विदेशी निवेश (प्रत्‍यक्ष, स्टार्ट अप, पीई व शेयर बाजार) में जोरदार गिरावट आई. रिजर्व बैंक के आंकड़े के अनुसार अप्रैल फरवरी 2021-22 में यह केवल 24.6 अरब डॉलर रहा हो जो बीते साल इसी अवध‍ि में 80.1 अरब डॉलर था.

ध्‍यान रखना जरुरी है कि विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्‍तता यानी एक साल के आयात के बराबर होने तक रुपये का गिरना निर्यात को प्रतिस्‍पर्धी बनाता है लेक‍िन यदि भंडार घटने लगे तो रुपये की गिरावट मुसीबत बन जाती है.

रुपये की ताकत का सीधा रिश्‍ता विदेशी मुद्रा भंडार से है. व्‍यापार घाटा और करेंट अकाउंट डेफश‍िट ज‍ितना बढ़ेगा यह भंडार उतना ही घटेगा और रुपये की ताकत छीजती जाएगी. बीते एक करीब छह माह से यही हो रहा है

अब कमजोर रुपये ने कच्‍चे तेल कोयले सहित धातुओं में महंगाई का तूफान ला दिया है. रिजर्व बैंक डॉलर की मांग पूरा करने के लिए विदेशी मुद्रा झोंक रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार गिरे रहा है और रुपये पर दबाव बढ़ रहा है. यही है कैच 22 का पहला हिस्‍सा जिसे देखकर मुंबई को ड‍िप्रशन हो रहा है

अब दूसरा हिस्‍सा

 

शुरु से शुरु करें

लौटते हैं शेयर बाजार की तरफ यानी त‍ितल‍ियों की तरफ जो शेयर बाजार से जुड़ी हैं. नोटबंदी से लेकर कोविड की बंदी और मंदी तक

भारत के शेयर बाजार में विदेशी निवेशक रीझ रीझ कर उतरते रहे. उनका निवेश बढ़ता गया और शेयर बाजार चढ़ता गया. क्‍या ही हैरत थी जब कोविड में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था गहरी मंदी में थी, मौतें हो रही थीं तब विदेश‍ियों का भरोसा बढ़ता गया.

यकीनन शेयर बाजार से बहुतेरे लोगों को बहुत फर्क नहीं पड़ता, पड़े भी क्‍यों लेक‍िन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को इससे बड़ा फर्क पड़ा. अर्थव्‍यवस्‍था में तरह तरह की उठापटक के बीच शेयर बाजार में विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा में बढ़ोत्‍तरी में एक सीधा रि‍श्‍ता दिखता है.

बीते अक्‍टूबर से जब भारत में हालात सुधरने शुरु हुए तब से इन निवेशकों ने बाजार में बेचना शुरु कर दिया. इनकी निकासी के बाद रुपये में गिरावट शुरु हो गई. विदेशी मुद्रा भंडार छीजने लगा. बची हुई कसर महंगे तेल और रिकार्ड व्‍यापार घाटे ने पूरी कर दी.

त‍ितल‍ियो की बेरुखी

विदेशी निवेशक केवल डॉलर नहीं लाते. वे लाते हैं अरबो डॉलर का भरोसा. इसलिए क्‍यों कि वे भारत की आर्थि‍क भव‍िष्‍य पर दांव लगा रहे थे. महमारी की घोर मंदी में भी उनका निवेश सूखा नहीं क्‍यों कि वापसी की उम्‍मीद थी.

तो अब क्‍या हो रहा है?

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर पैमाना बदल रहा है. पूंजी की लागत बढ रही है जबकि भारत की विकास दर के आकलन गिर रहे हैं. यदि अगले कुछ साल में भारत की महंगाई रहित शुद्ध विकास दर  5-6 फीसदी रहती है तो इक्‍व‍िटी पर 10-11 फीसदी से ज्‍शदा रिटर्न मुश्‍क‍िल है. शेयर बाजार में कुछ अच्‍छी कंपनियां रहेंगी अलबत्‍ता लेक‍िन वह महंगी भी होंगी. अर्थव्‍यवस्‍था जब तक 13-14 फीसदी की महंगाई सहित दर विकास दर दर्ज नहीं करती भारत की एक तिहाई आबादी की कमाई और मांग नहीं बढ़ेगी और न ही उत्‍पादों का बाजार और कंपनियों के मुनाफे

रुपया विदेशी मुद्रा भंडार और महंगाई के साझा समाधान के लिए अगर सरकार को कोई एक दुआ मांगनी हो तो  वह यही होनी चाहिए कि क‍िसी तरह शेयर बाजार दौड़ने लगे.  विदेशी निवेशक वापस कर लें. उनकी पूंजी आई तो रुपये की ढलान रुकेगी. आयाति‍त मंहगाई कम होगी. अर्थव्‍यवस्‍था में भरोसा आएगा. घरेलू निवेशकों के छोटे निवेश बाजार को ढहने नहीं देंगी लेक‍िन बाजार को दौड़ाने की दम इस निवेश में नहीं है. लेक‍िन इसके भारत की सरकार को सब कुछ छोड़ कर अर्थव्‍यवस्‍था को ढलान रोकने का अनुष्‍ठान करना होगा जो जैसा कि 1991 में या 2008 के लीमैन संकट के वक्‍त हुआ था. विदेशी ताकत के मोर्च पर भारत या श्रीलंका पाकिस्‍तान में सबसे बड़ा फर्क यह है कि गैर इमर्जिंग अर्थव्‍यवस्‍थाओं में विकास दर भले ही तेज हो लेक‍िन यहा कैपिटल मार्केट नहीं है, निर्यात के अलावा गैर कर्ज वाली विदेशी पूंजी के स्रोत नहीं है इसलिए यह हमेशा खतरे में होंती हैं और आईएमएफ की मोहताज हैं

भारत इ‍मर्ज‍िंग इकोनॉमी इसलिए है क्‍यों क‍ि यहां डॉलरों की एक और पाइपलाइन खुलती है जो शेयर बाजार में आती है और हमें सुरक्षि‍त करती है. यह पूंजी भविष्‍य पर ग्‍लोबल भरोसे का प्रमाण है.

शेयर बाजार में बेयर ट्रैप या मंदी की भविष्‍यवाण‍ियां तैर रही हैं. अर्थव्‍यवस्‍था विदेशी निवेशकों की वापसी बर्दाश्‍त नहीं कर सकता. क्‍यों कि  आयात निर्यात वाले मुद्रा भंडार के मामले में दुन‍िया से बहुत फर्क नहीं है

 

 


Thursday, September 30, 2021

कसौटियों की कसौटी

 


 यद‌ि आप भारत की सरकार को जिद्दी, नकचढ़ा और लापरवाह बच्चा मान लें तो यह बच्चा अब दुनिया के सबसे सख्त स्कूल में भर्ती होने जा रहा है. 2022 की शुरुआत में भारत सरकार के बॉन्ड ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स का हिस्सा हो जाएंगे. यह 1993 में भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों के प्रवेश से कम क्रांतिकारी नहीं है, जिनके आने से शेयर बाजार की सूरत, सीरत और तबियत पूरी तरह बदल गई.

ग्लोबल बॉन्ड बाजार सरकारों का कमांडो ट्रेनिंग स्कूल है. सरकारों लिए यह बाजार इतना बेमुरव्वत क्यों है, इसके लिए हमें जेम्स कार्वाइल से मिलना होगा. बिल क्लिंटन को राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाने वाले दुनिया के सबसे मशहूर राजनैतिक और चुनावी रणनीतिकार (प्रशांत किशोर के पेशे के स्टीव जॉब्स), कार्वाइल अब 76 साल के हो चले हैं. उन्होंने कहा था कि पहले मैं पोप या कि बेसबाल हिटर के तौर पर पुनर्जन्म लेना चाहता था लेकिन अब मैं बॉन्ड मार्केट के तौर पर वापस आना चाहूंगा, जो सरकारों को हमेशा डराता रहता है.

कार्वाइल बजा फरमाते हैं. इस स्कूल में बने रहने के लिए सरकारों को बुरी आदतें छोड़नी होती हैं. इस दिशा में पहला कदम बीते साल बजट में उठाया गया था जब सरकारी बॉन्ड और ट्रेजरी बिल में विदेशी निवेशकों के निवेश को खोल (फुली एक्ससेबल रूट) ‌दिया गया.

भारत में सरकारी बॉन्ड का बाजार करीब एक ट्रिलियन डॉलर का है. अधिकांश निवेश सरकारी बैंकों (38%), सरकारी बीमा कंपनियां (25%), रिजर्व बैंक (16%), म्युचुअल फंड आदि, अन्य निवेशक (13%) प्रॉविडेंट फंड (4%) और कोऑपरेटिव (2%) का है. विदेशी निवेशक केवल दो फीसद हिस्सा रखते हैं.

भारत के सरकार के बॉन्ड को ग्लोबल सूचकांकों में शामिल कराने का रास्ता यूरोक्लियर (अंतरराष्ट्रीय क्लियरिंग हाउस डिपॉजिटरी) की मंजूरी यानी ग्लोबल सेटलमेंट नियमों के भारतीय बॉन्डों के प्रवेश से होकर जाता है. मोर्गन स्टेनले की एक ताजा रिपोर्ट बता रही है कि भारत सरकार के बॉन्ड को जेपीएम जीबीआइ-ईएम ग्लोबल डाइवर्सिफाइड इंडेक्स और ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में जगह मिलेगी. प्रवेश का ऐलान अगले साल की पहली तिमाही में संभव है.

इन सूचकांकों के जरिए विदेशी निवेशक सरकारी बॉन्ड खरीद सकेंगे. ऊंचे ब्याज दर के कारण भारत का बाजार खासा आकर्षक है. मोर्गन का मानना है कि 2022 में करीब 40 अरब डॉलर की अतिरिक्त विदेशी पूंजी भारत सकती है. आगे भी सालाना करीब 18-20 अरब डॉलर आते रहेंगे. 2031 तक सरकारी बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेशक करीब 9 फीसद (वर्तमान 2%) का हिस्सा से ले सकते हैं, जिसका मूल्य 190 अरब डॉलर होगा.

भारत का अल्पविकसित बॉन्ड बाजार इस सुधार का इंतजार लंबे वक्त से कर रहा था. फायदों की सूची छोटी नहीं है.

यह विदेशी निवेश सरकार के कर्ज कार्यक्रम का हिस्सा होगा, इसलिए सरकार के पास बजट बढ़ाने और घरेलू बैंकों के कर्ज को सीमित करने का विकल्प होगा

इसके बाद सरकारें निवेश बढ़ाने और टैक्स कम करने का विकल्प चुन सकती हैं

यह पूंजी बाजार में आकर ब्याज दरें कम रखने में मदद करेगी.

रुपए में क्रमश: मजबूती स्थिरता आने की संभावना है, जिसकी वजह यही पूंजी होगी जो विदेशी मुद्रा भंडार में आएगी

सरकारी बॉन्ड बाजार में विदेशी सक्रियता के सहारे घरेलू कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में निवेश बढ़ेगा

शेयर बाजार पहले ही विदेशी निवेशकों से गुलजार है, बॉन्ड बाजार में बढ़ी साख इसे और ताकत देगी. भारत को संप्रभु रेटिंग अब बेहतर हो सकती है जो कबाड़ दर्जे से (जंक) से बस एक पायदान ऊपर है

लेकिन डायनासोरी सरकारी खर्च के लिए कर्ज देने वाला बॉन्ड मार्केट सरकारों की हेकड़ी छुड़ा देता है. यह कड़ा अनुशासन मांगता है. लापरवाही कुप्रबंध पर आग बबूला निवेशक, बॉन्ड बेचने लगते हैं.

यही वजह है कि ग्लोबल इंडेक्स में भारत सरकार के बॉन्ड का प्रवेश, मौद्रिक और राजकोषीय व्यवस्था का नया प्रस्थान बिंदु है. यह बदलाव सरकार बैंकों की आदतें हमेशा के लिए बदल देगा. अब सरकार को...

महंगाई थाम कर रखनी होगी. खासतौर पर महंगा कच्चा तेल और जिंङ्क्षज सबसे बड़ी कमजोरी हैं. बॉन्ड ईल्ड और महंगाई के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. अगर महंगाई बढ़ी तो बॉन्ड निवेशक भड़केंगे

टैक्स के नियम मौसम तरह नहीं बदलने होंगे. सरकारी बॉन्ड में विदेशी निवेश को लेकर टैक्स अनिश्चितता सबसे बड़ी उलझन है

घाटे पर काबू रखकर अर्थव्यवस्था में तेज विकास दर बनाए रखनी होगी

शेयर बाजार के मिजाज की अनदेखी हो सकती है लेकिन बॉन्ड बाजार सीधे देश की संप्रभु साख का पैमाना है, यहां सरकार का कर्ज बिकता है, यह भड़कता है तो बड़े-बड़े देशों को लेने के देने पड़ जाते हैं. कम महंगाई, तेज विकास दर, सरकारी खर्च और घाटे में कमी, बॉन्ड बाजार भी वही मांगेगा जो भारत के आम लोगों को भी चाहिए. बस फर्क यह है कि लोग अक्सर ठगे जाने पर मन मसोस कर रह जाते हैं लेकिन बॉन्ड निवेशक सरकारों को माफ नहीं करते.