बाबा कोविड की मंदी के पार क्या दिख रहा है? 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज की पहली किस्त (6 लाख करोड़) सुनने के बाद उलझे भक्त ने पूछा. बाबा ने शून्य में ताकते हुए कहा, लाखों परेशान जमाकर्ता दिख रहे हैं जिनकी बचतों पर रिटर्न मिट्टी हो गया है. घाटे और फंसे हुए कर्जों से कराहते, डूबते बैंक दिख रहे हैं और दिख रहे हैं दर्जनों लोन घोटाले...
बाबा को गलत नहीं दिख रहा. कोविड ने वित्तीय तंत्र को जोखिम के रास्ते पर उतार दिया है. सरकार सीधी मदद देने की हालत में नहीं है. 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज की चार किस्तों (मार्च-अप्रैल की घोषणाओं को मिलाकर) से यह स्पष्ट हो चुका है कि अर्थव्यवस्था को उबारने की जिम्मेदारी बैंक कर्ज पर छोड़ दी गई है. इसके साथ ही कर्ज को लेकर नीतियों का अंतरविरोध विस्फोटक हो गया है. एक साल के भीतर एक नया कर्ज संकट दस्तक दे सकता है.
कोविड से पहले
• बैंकों और कंपनियों की सबसे बड़ी मुसीबत करीब 9.9 लाख करोड़ के फंसे हुए कर्ज हैं. कुछ कर्जों को दीवालिया कानून के सहारे खत्म करने की कोशिश में बैंकों ने खासी चोट खाई
• रिजर्व बैंक की सख्ती के बाद डूबे कर्ज निबटाने के लिए बैंकों ने अपने मुनाफे व पूंजी (प्रॉविजनिंग) लगाई
• बैंकों को बजट से पूंजी मिली, फिर भी बात नहीं बनी तो बैंकों का विलय किया गया, जो आधे रास्ते में है
• यहां तक आते-आते रिजर्व बैंक की सख्ती, घाटे और घोटालों से परेशान बैंक कर्ज बांटने को लेकर बेहद सतर्क हो चुके थे
कोविड के दौरान
■ सस्ता बैंक कर्ज, पहली विटामिन थी जो लॉकडाउन के बाद बांटी गई थी. रिजर्व बैंक से बैंकों को मिलने वाला कर्ज (रेपो रेट) इतना सस्ता (4.4 फीसद) कभी नहीं हुआ. बाजार में भी ब्याज दर 2009 के बाद न्यूनतम स्तर पर है
■ रिजर्व बैंक ने 3.74 लाख करोड़ रु. छोड़े. म्युचुअल फंड, एनबीएफसी को सस्ता कर्ज पहुंचाने के लिए खास रास्ते बनाए गए
■ लेकिन दवा काम न आई. बैंक कर्ज की मांग 27 साल के न्यूनतम स्तर पर है. रिजर्व बैंक के पैकेजों का एक-तिहाई इस्तेमाल भी नहीं हुआ
■ नतीजतन बैंकों ने (4 मई तक) करीब 8.54 लाख करोड़ रु. रिजर्व बैंक को लौटा (रिवर्स रेपो) दिए हैं और अब रिजर्व बैंक को उलटा बैंकों को ब्याज देगा
■ राहत पैकेज से पहले तक बैंक कर्ज वसूली टालने और नए बकाया कर्ज से निबटने में लगे थे, लाभांश भुगतान बंद कर रहे थे
राहत की आफत
बैंकों को अंदाज नहीं था कि 20 लाख करोड़ रु. के पैकेज की अगली किस्त उनके नाम नया कर्ज बांटने का फरमान होगी. अब उन्हें कर्ज में डूबे उद्योगों, घटिया एनबीएफसी को सरकार की गारंटी पर कर्ज देना होगा. कल उनसे बड़ी कंपनियों को बेल आउट (बिजली कपनियों की तरह) के लिए भी कहा जा सकता है.
जो सरकार एक महीने पहले तक उद्योगों को कर्ज की किस्त टालने की छूट दे रही रही थी, वह एक महीने बाद उनसे नया कर्ज लेने के लिए कह रही है!
• मार्च 2020 तक कुल 93.8 लाख करोड़ रु. बैंक कर्ज बकाया था इनमें 56 लाख करोड़ रु. उद्योगों पर (इसका 83 फीसद बकाया कर्ज बड़े उद्योगों पर) 12 लाख करोड़ रु. खेती और लगभग 26 लाख करोड़ रु. के पर्सनल लोन हैं
• छोटे उद्योग 10 लाख करोड़ रु. के बकाये में हैं. वे कर्ज के पुनर्गठन और माफी की मांग कर रहे हैं. वे नया कर्ज क्यों लेंगे?
• कॉर्पोरेट परिदृश्य दो हिस्सों में बंट चुका है. बेहतर साख वाली रिलायंस जैसी कंपनियां कर्ज समाप्त कर रही हैं जबकि जो कंपनियां कर्ज में दबी हैं वे वसूली रोकने की मांग कर रही हैं. कारोबारी भविष्य पर पूरी तरह अनिश्चितता है, तो नया कर्ज कौन लेगा?
• बेकारी, वेतन में कटौती के बाद ऑटो, होम लोन की मांग आने की उम्मीद नहीं है. बैंकों को तो डर है अब किस्तें टूटेंगी.
तो आगे क्या?
कर्ज सस्ता करने में डिपॉटिजर अधमरे हो गए. एफडी और छोटी बचत स्कीमों पर ब्याज बुरी तरह कम हुआ. महंगाई है छह फीसद और बचत खाते पर ब्याज है तीन फीसद से भी कम. यानी बचत पर रिटर्न, जिंदगी जीने की लागत में बढ़ोतरी का आधा हो गया है. रोजगार-कमाई में गिरावट के बीच बचत आखिरी उम्मीद थी, वह भी टूट रही है.
मंदी के बीच जबरन बांटे गए लोन जल्दी वापस नहीं होंगे, यह एक साल के भीतर घोटालों और बैंक संकट के तौर पर सामने आएंगे. भारतीय अर्थव्यवस्था का बुनियादी संकट तो कर्ज और बैंकिंग का ही है. ब्लैक स्वान वाले तालेब ठीक कहते थे कर्ज संकट का समाधान नया कर्ज कैसे हो सकता है. लेकिन सरकार पिशाचग्रस्त, वात रोग और बिच्छू के जहर से पीडि़त का इलाज दारू पिलाकर करना चाहती है.
ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार
ताहि पियाइय वारुणी कहहु काह उपचार –
अयोध्याकांड, रामचरितमानस