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Monday, February 20, 2012

गफलत का टैक्‍स

टैक्‍स की दुनिया का ताजा और सबेस बड़ा सबक क्‍या है, एक नौसिखुए वकील ने अपने सीनियर से पूछा। कोर्ट कोर्ट का पानी पिये घाघ वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता ने अपना मोटा चश्‍मा पोंछते हुए कहा कि डियर, जब सरकार बोदी और सुस्‍त हो और बाजार तेज, तो टैक्‍स की दु‍निया में गफलत कीमत 11000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। वोडाफोन जब अदालत में जीत कर भारी राजस्‍व चुग गई तब वित्‍त मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के सामने फैसला बदलने के लिए पछता और गिड़गिड़ा रहा है। तेजी से बदलते बाजार में टैक्‍स कानूनों को बदलने में देरी विस्‍फोटक और आत्‍मघाती हो चली है। पुराने कर कानूनों की तलवार हमें तीन तरफ से काट रही है कंपनियां अस्थिर टैक्‍स प्रणाली से हलाकान हैं। कानूनों के छेद सरकारी राजसव की जेब काट रहे हैं और टैक्‍स हैवेन से लेकर फर्जी कंपनियों तक, स्‍याह सफेद धंधों वाले हर तरफ चांदी कूट रहे हैं, क्‍यों कि टैक्‍स में सुधार का पूरा एजेंडा (प्रत्‍यक्ष कर कोड और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स) बैठकों में घिसट रहा है। इस बजट से यह पता चल जाएगा कि सरकार व सियासत टैक्‍स सुधार को कब तक टालेगी और कितनी कीमत चुकायेगी।
देरी की दर
डायरेक्‍ट टैक्‍स (आयकर, कंपनी आयकर आदि) कोड यानी नया कानून लागू हो गया होता तो वोडाफोन के मुकाबले सरकार की इतनी बडी अदालती हार नहीं होती। डायरेक्‍ट टैक्‍स कोड में यह प्रावधान है कि यदि भारत में काम करने वाली कोई कंपनी अपनी हिस्‍सेदारी (इक्विटी) की खरीद बिक्री विदेश में करती है तो उस पर भारतीय टैकस कानून लागू होगा। मगर कानून अधर में लटका है और लुटा पिटा आयकर विभाग अब डायरैकट टैक्‍स कोड का इंतजार किये बगैर इस साल के बजट में ही यह छेद बंद करने को मजबूर हो गया है। वक्‍त पर कानून बदलने में देरी बहुत महंगी पड़ी है। क्‍यों कि यह फैसला केवल एक वोडाफोन हच इक्विटी सौदे पर नहीं बलिक इसी तरह के कई और लेन देन को प्रभावित करेगा। दो साल से तैयार डायरेक्‍ट टैकस कोड जिस तरह केंद्र सरकार में नीतिगत फैसलों के शून्‍य का शिकार हुआ हुआ है ठीक उसी तरह अप्रत्‍यक्ष करो में सुधार का अगला चरण यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स कमजोर केंद्र और ताकतवर राज्‍यों की राजनीति