भव्य, जगमगाती या तेज रफ्तार दुविधा क्या होती है, इसे समझने के लिए बुलेट ट्रेन में बैठकर, भीमकाय बांध और परमाणु बिजली घर की यात्रा कर आइए.
तीनों ही बुनियादी ढांचा वंश की कामयाब लेकिन विवादित संतानें हैं.
बुलेट ट्रेन की मेट्रो से तुलना असंगत है. नगरीय व उपनगरीय रेल परिवहन की तीन पीढिय़ां (ट्राम—मुंबई लोकल—दिल्ली रिंग रेलवे—कोलकता मेट्रो) भारत में पहले से हैं. दिल्ली की मेट्रो इनका नया संस्करण है. हालांकि मेट्रो राजनीति पर सवार होकर ऐसे शहरों में भी पहुंच गई जहां इसकी आर्थिक सफलता संदिग्ध है.
बुलेट ट्रेन भारत में अंतर्देशीय परिवहन की नीति के लिए असमंजस की चिट्ठी है. यह असमंजस रफ्तार और विस्तार के बीच समन्वय का है. यूरोप का विमानन उद्योग भी (1970 से 2003) रफ्तार की दीवानगी में सुपरसोनिक कांकॉर्ड विमान सेवाएं लेकर आया. सन् 2000 की जुलाई में एयरफ्रांस की कांकॉर्ड दुर्घटना के बाद यह सेवा बंद हुई और विमानन उद्योग ने एक नई करवट ली. अब होड़ रफ्तार की नहीं, बल्कि विस्तार की थी. नए शहरों के लिए सस्ती उड़ानें शुरू हुईं.विमानों का आकार (एयरबस 380) बढ़ाया गया. विस्तार व सस्ती सेवा से यात्री बढ़े और एविएशन उद्योग को सफलता के सुपरसोनिक पंख लग गए.
भारत की बुलेट ट्रेन को अंतर्देशीय परिवहन के अंतरराष्ट्रीय प्रयोगों के संदर्भ में देखना जरूरी हैः
- अमेरिका में बुलेट ट्रेन नहीं हैं. भौगोलिक विशालता के कारण रेलवे को माल परिहवन पर केंद्रित यात्रियों के लिए निजी वाहनों और विमान सेवा को वरीयता दी गई. इसलिए ऑटोमोबाइल और विमानन उद्योग विकसित हुआ.
- यूरोपीय देशों ने छोटे भूगोल के मुताबिक रेलवे (कुछ देशों में हाइ स्पीड रेल भी) को यात्री और सड़कों को माल परिवहन का जरिया बनाया, हालांकि सस्ती विमान सेवएं अंतरयूरोपीय यात्राओं में रेलवे के लिए चुनौती हैं.
- बेहद घनी बसावट वाले छोटे जापान (केवल 20 फीसदी भूगोल रहने लायक) 'शिकानसेन' (भारत की बुलेट ट्रेन का आधार) ने और छोटा कर दिया. जापानी बुलेट ट्रेन आम लोगों के लिए खासी महंगी है. कर्मचारी अपनी कंपनियों के खर्च पर शिंकानसेन के जरिए बड़े शहरों तक आते-जाते हैं. जापान की विमान सेवाएं, बाजार के लिए बुलेट ट्रेन से लड़ रहीं हैं.
- चीन ने पिछले दो दशकों में दुनिया का सबसे बड़ा हाइ स्पीड ट्रेन नेटवर्क (दुनिया से 40 फीसदी कम लागत पर) बना लिया है लेकिन बुलेट ट्रेन के कारण तीनों सरकारी विमान सेवाओं का मुनाफा पिघल रहा है.
बुलेट ट्रेन अपनी लागत लाभ (कॉस्ट बेनीफिट) असंगति को लेकर खासी विवादित हैं. चीन व जापान सरकारें निजी जमीन लेने को स्वतंत्र हैं, प्रोजेक्ट को खूब सब्सिडी भी देती हैं. यूरोप में महंगी जमीन के कारण हाइ स्पीड रेल की लागत ऊंची है. अमेरिका में लॉस एंजेलिस-सैन फ्रांसिस्को और डलास-ह्यूस्टन के हाइ स्पीड रेल प्रोजेक्ट जमीन अधिग्रहण के झगड़ों और लागत बढऩे के कारण लंबित हैं.
हम बुलेट ट्रेन को चुनावी शोशा नहीं बल्कि एक गंभीर परियोजना मानते हैं जो अंतर्देशीय परिवहन नीति और रेलवे के पुनर्गठन का संदेश होनी चाहिए.
1. माल परिवहन के कारोबार में रेलवे, सड़क से हार चुकी है. रेलवे की ढुलाई कोयला, लोहा, सीमेंट तक सीमित है. रेलवे का कारोबार अब यात्री परिवहन से ही चलेगा. डेडिकेटेड फ्रेट (माल) कॉरिडोर को लंबी दूरी के हाइ स्पीड यात्री परिवहन कॉरिडोर में बदलना चाहिए जबकि पुराना नेटवर्क माल परिवहन के लिए इस्तेमाल होना चाहिए. रेलवे को यात्री परिवहन के नए राजस्व मॉडल की जरूरत है जिसे निजी भागीदारी के साथ विकसित किया जा सकता है.
2. पिछले दशकों में सड़कों पर रेलवे से ज्यादा निवेश हुआ है. यहां अब हाइ स्पीड फ्रेट कॉरिडोर बनाने की जरूरत है ताकि बड़े ट्रक बगैर रुके लंबी यात्रा कर सकें. फायदा ऑटोमोबाइल उद्योग को होगा.
3. भारत में नगरों की बहुतायत है. छोटी दूरियों को परिवहन को बेहतर सड़कों और निजी वाहनों पर केंद्रित किया जा सकता है.
4. सस्ती विमान सेवाएं और लंबी दूरी की हाइ स्पीड ट्रेनें मिलकर अंतर्देशीय परिवहन को आधुनिक बना सकती हैं.
रेलवे के सामाजिक और वणिज्यिक दायित्वों को अलग करना होगा. सामाजिक दायित्वों को बजट से वित्त पोषण मिलना चाहिए. बुलेट ट्रेन के साथ भारत की अंतर्देशीय परिवहन नीति बदलना जरूरी है. नहीं तो यह महंगी (रेलवे के सालाना बजट का ढाई गुना) परियोजना जापान के कर्ज से, अगर बन भी गई तो यह पर्यटकों के लिए हाइ स्पीड पैलेस ऑन व्हील्स हो जाएगी. आम रेल यात्रियों की जिंदगी में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.