स्वच्छ भारत सेस लगाने के ताजा तरीके ने
यह साबित किै कि सरकार में कुछ भी नहीं बदला है.
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जिस समय लंदन के वेंबले स्टेडियम में गरज रहे थे और भारत को कारोबार
के लिए आदर्श जगह बता रहे थे, ठीक उसी समय देश के उद्यमी और व्यापारी स्वच्छ भारत सेस
(उपकर) की गुत्थियों से उलझ रहे थे जो भारत में कारोबार को आसान बनाने को लेकर किए
गए ताजा दावों की चुगली खाता है. अपनी अपारदर्शिता के चलते सेस यानी उपकर टैक्सेशन
में सबसे निचले दर्जे के उपकरण हैं, ऊपर से इसे लगाने के ताजा तरीके ने यह साबित कर दिया है कि
सरकार में कहीं कुछ नहीं बदला है. राज्यों को नरेंद्र मोदी सरकार का “सेस राज्य चिंतित कर रहा है और रही बात उपभोक्ताओं
की तो उनके लिए तो समझ से ही परे है कि महंगाई की मार के बीच सरकार इनडाइरेक्ट
टैक्स बढ़ाकर क्या साबित और हासिल करना चाहती है.
सेस कभी भी ऐसे
नहीं लगाए गए जैसे कि एनडीए सरकार स्वच्छ भारत सेस लेकर आई. सेस लगाने के समय और
तरीके ने सरकार में सूझ की घोर कमी को साबित किया है. 6 नवंबर को सर्विस
टैक्स पर 0.5 फीसदी स्वच्छ
भारत सेस लगाने की अधिसूचना जारी हुई और 15 नवंबर से यह
लागू हो गया. यह पता नहीं कौन-सी कारोबारी सहजता थी जो महीने के बीच से एक नया कर
लगा दिया गया. उद्यमियों व व्यापारियों को बिलों व रिटर्न में इस सेस का अलग से
हिसाब करना होगा लेकिन त्योहारी छुट्टियों के बीच उनके पास नई एकाउंटिंग की तैयारी
का समय तक नहीं था, इस बीच स्वच्छ भारत सेस उनके सिर पर आकर खड़ा हो गया. इस सेस
को लेकर तीन अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की गईं जो बला की भ्रामक थीं. इसके बाद एक
लंबी प्रेस रिलीज जारी हुई और फिर आई एक विस्तृत प्रश्नोत्तरी. इस पूरी कवायद के
बाद किसी को यह मुगालता नहीं रहा कि केंद्रीय सीमा व उत्पाद शुल्क बोर्ड ने इस सेस
को लेकर कोई तैयारी नहीं की थी. शायद बिहार विधानसभा चुनाव खत्म होने का इंतजार था
जिसके बाद इसे अचानक थोप दिया गया. बेचारे व्यापारी सर्विस टैक्स की दर में ताजा
बढ़ोतरी के मुताबिक अपने बिल वाउचर ठीक कर पाते, इससे पहले ही
उनके लिए नया मोर्चा खुल गया है.
स्वच्छ भारत सेस
में स्वच्छता की बड़ी कमी है. इसे लगाने के बाद सर्विस टैक्स की दर करीब 14.50 फीसदी हो जाएगी.
बजट में जब सर्विस टैक्स (एजुकेशन सेस सहित) की दर 12.36 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी की गई थी
उसी वक्त इस सेस को जोड़ कर सर्विस टैक्स को 14.50 फीसदी किया जा
सकता था या फिर सरकार अगले बजट तक रुक सकती थी, जिसमें अब केवल
तीन माह बचे हैं. ध्यान रहे कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में 2 फीसदी की दर से
स्वच्छ भारत सेस लगाने का ऐलान किया है यानी अभी और सेस लगेगा या सर्विस टैक्स की
दर को बढ़ाकर 16 या 18 फीसदी किया
जाएगा. यदि सरकार जीएसटी के जरिए कारोबार को आसान करने का दावा कर रही है तो यह
सेस उन दावों का बिल्कुल उलटा है, क्योंकि एनडीए सरकार के इस नए सेस राज से कारोबारियों के
लिए कर नियमों के पालन की लागत (कंप्लायंस कॉस्ट) बुरी तरह बढऩे वाली है.
यह सेस राज नए
किस्म के अपारदर्शी इनडाइरेक्ट टैक्स सिस्टम की आहट है, जिसकी उम्मीद
मोदी सरकार से तो नहीं थी जो यह मानती रही है कि परतदार करों का मकडज़ाल, महंगाई की सबसे
बड़ी वजह है. प्राथमिक शिक्षा व उच्च शिक्षा सेस, पेट्रोलियम पर
रोड डेवलपमेंट सेस, निर्यातों पर सेस पहले कायम हैं. इसी बजट में सरकार ने
कोयले पर क्लीन एनर्जी सेस की दर दोगुनी कर दी है. इसके बाद स्वच्छ भारत सेस के
साथ वित्त मंत्री ने सेस
परिवार में नया सदस्य जोड़ दिया है. मोदी सरकार के पहले दो बजट अप्रत्यक्ष करों से
भरपूर रहे हैं. सरकार का अप्रत्यक्ष कर संग्रह बेहतर रफ्तार दिखा रहा है इसलिए नए
टैक्स टाले जा सकते थे. सरकार को यह सोचना पड़ेगा कि क्या मंदी से जूझती
अर्थव्यवस्था इनडाइरेक्ट टैक्स की इतनी मार झेल सकती है और क्या टैक्स राज के जरिए
महंगाई की आंच बढ़ाकर सरकार अपने लिए राजनैतिक मुसीबत नहीं न्योत रही है?
सरकार का सेस राज
जीएसटी पर सहमति की राह में भी बाधा बनने को तैयार है. मोदी सरकार ने केंद्रीय
करों में राज्यों का हिस्सा बढ़ाने की वित्त आयोग की सिफारिश मानने के बाद राजस्व
में कमी को पूरा करने के लिए सेस और सरचार्ज की बारिश कर दी है. सभी तरह के सेस व
सरचार्ज से केंद्र सरकार को करीब 1.15 लाख करोड़ रु. का राजस्व मिलने का अनुमान है. राज्य सरकारें
यह सवाल जरूर उठाएंगी कि केंद्र सरकार बुनियादी टैक्स ढांचे से किनारा करते हुए
सेस व सरचार्ज के जरिए राजस्व जुटा रही है जो वित्तीय संघवाद के
माफिक नहीं है. मोदी सरकार जब जीएसटी पर राज्यों को सहमत करने की कोशिश कर रही है
तो इस तरह की राजस्व चालाकी से बचना चाहिए था. यह सेस राज न केवल उद्योगों, उपभोक्ताओं की
मुसीबत है बल्कि राज्यों के बीच केंद्र की साख को भी कम करेगा.
टैक्सेशन को लेकर
मोदी सरकार के अठारह महीनों का कामकाज यह बताता है कि या तो सरकार में एक हाथ को
यह पता नहीं है कि दूसरा हाथ क्या कर रहा है अथवा फिर कहीं कोई योजना ही नहीं है
और व्यवस्था ज्यों की त्यों है. भारत में कारोबारी सहजता का परचम लेकर दुनिया में
घूम रहे प्रधानमंत्री इस तथ्य से अनभिज्ञ कैसे हो सकते हैं कि उनकी सरकार का टैक्स
प्रशासन भारत में धंधे को मुश्किल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. पहले इनकम
टैक्स, मैट के फैसलों ने
निवेशकों की उम्मीदें तोड़ी थीं और अब एक्साइज व सर्विस टैक्स की बारी है.
क्या
प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री कुछ ठहर कर यह जांचने की कोशिश करेंगे कि उनके
वादों और हकीकत के बीच अंतर नहीं बल्कि एक खाई तैयार हो चुकी है जो सरकार की साख
को हर दिन निगल रही है? उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि बदलाव के अवसरों की भी उलटी
गिनती शुरू हो चुकी है.