नेता केंद्रित गवर्नेंस के मॉडल का अवसान अब करीब है। स्वतंत्र नियामक यानी रेगुलेटर सत्ता के नए सुल्तान हैं
पांच साल बाद देश को शायद इससे बहुत फर्क न
पडे कि सियासत का ताज किसके पास है लेकिन यह बात बहुत बड़ा फर्क पैदा करेगी कि
संसाधनों के बंटवारे व सेवाओं की कीमत तय करने की ताकत कौन संभाल रहा है। यकीनन, कुर्सी के लिए मर खप जाने
वाले नेताओं के पास यह अधिकार नहीं रहने वाला है। भारत में एक बड़ा सत्ता हस्तांतरण
शुरु हो चुका है। स्वतंत्र नियामक यानी रेगुलेटर सत्ता के नए सुल्तान हैं जो
वित्तीय सेवाओं से बुनियादी ढांचे तक जगह जगह फैसलों में सियासत के एकाधिकार को
तोड़ रहे हैं। नियामक परिवार के विस्तार के साथ अगले कुछ वर्षों में अधिकांश
आर्थिक राजनीति, मंत्रिमंडलों से नहीं बल्कि इनके आदेश से तय
होगी। भारत में आर्थिक सुधार, विकास,
बाजार, विनिमयन के भावी फैसले, बहसें व
विवाद भी इन ताकतवर नियामकों के इर्द गिर्द ही केंद्रित होने वाले हैं जिनमें
राजनीति को अपनी जगह