क्या
आपको 1980 की प्रसिद्ध विज्ञान फंतासी फिल्म बैक टु द फ्युचर याद है. रॉबर्ट जेमिक्स
के निर्देशन वाली यह फिल्म कैलीफोर्निया
के कस्बाई किशोर मार्टी मैकफ्लाई की कहानी है, जिसका वैज्ञाानिक दोस्त डॉक्टर
ब्राउन गलती से एक डेलॉरयेन कार को टाइम मशीन में बदल देता है. इसमें बैठकर मार्टी
50 साल पहले के युग में चला जाता है जहां उसे अपने युवा मां बाप मिलते हैं
यदि
आपको यह फिल्म याद है तो याद होगा मिस्टर फ्यूजन भी. एक छोटा सा न्यूक्लियर
एनर्जी रिएक्टर, पुराने जमाने के लालटेन
और आज के इमर्जेंसी लाइट जैसा एक उपकरण जिसकी मदद से मार्टी की डे लॉरेयन कार को 1.21
गीगावाट की ऊर्जा की ताकत मिलती है और यह कार समय और स्थान से परे
पचास साल पीछे चली जाती है. डॉ ब्राउन के इस
न्यूक्लियर रिएक्टर में प्लूटोनियम का नहीं बल्कि घरेलू कचरे का इस्तेमाल
होता है.
वह
अस्सी के दशक का मध्य था एक तरफ लोग इस फिल्म से न्यूक्लियर फ्यूजन तकनीक का फंतासी करिश्मा देख
रहे थे तो दूसरी तरफ 1985 में अमेरिका और रुस मिलकर न्यूक्लियर फ्यूजन के परीक्षण की तैयारी कर रहे थे. तब से
लंबा वक्त बीत गया. वैज्ञानिकों ने प्रयोग पर प्रयोग कर डाले लेकिन न्यूक्लियर फ्यूजन की कामयाबी मिलने में 20 वीं और 21 वीं
सदी के करीब तीन दशक बीत गए.
2022
का साल बीतते बीतते विज्ञान के एक बड़े सपने के सच होने की उम्मीद को जगा गया.
कैलफोर्निया फेडरल लॉरेंस लिवरमोर लैबरोटरी ने हाइड्रोजन प्लाजा और लेजर की मदद
से फ्यूजन तकनीक से ऊजा प्राप्त करने का सफल परीक्षण कर लिया. विज्ञान की दुनिया
इस सफलता से झूम उठी. न्यूक्लियर ऊर्जा
मौजूदा तकनीक फिजन पर आधारित है जिसे रेडियोधीर्मी तत्वों का इस्तेमाल
होता है न्यूक्लियर फ्यूजन की दीवानगी इसलिए है क्यों कि इसके जरिये हाइड्रोजन
हीलियम जैसे तत्वों के साथ फिजन की तुलना में कई गुना ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की
जा सकती है. इससे न तो रेडियोएक्टिवटी का डर है और न कार्बन उत्सर्जन का. पर्यावरण
के सुरक्षित ऊर्जा को लेकर बदहवास दुनिया के यह खोज किसी वैक्सीन से कम नहीं
है.
आप
कहेंगे कि इकोनॉमिकम में हम न्यूक्लियर तकनीक का यह आल्हा पंवारा क्यों ले आए
लेकिन दरअसल यह युगबदल खोज ऊर्जा बाजार में एक नई करवट की अगवानी का गीत जैसा है.
रुस
के राष्ट्रपति की युद्ध लिप्सा से ऊर्जा बाजार में जो बडे बदलाव कर रही है उसका
एक और नया पन्ना जापान में खुल रहा है
लौटने
लगी हिम्मत
वाकया
इस साल सितंबर का है. सुर्खियों में रुस और यूक्रेन का युद्ध था इस बीच जापान के
प्रधानमंत्री फुइमो कशिदा ने चौंका दिया. उन्होंने ऐलान किया कि जापान नाभिकीय या
परमाणु ऊर्जा में फिर से निवेश करेगा. परमाणु संयत्र शुरु किये जाएंगे नए परमाणु
रिएक्टर भी लगाये जाएंगे. यह घोषणा होने तक दुनिया में तेल की कीमतें खौल रही
थीं. कोयले के भाव तपने लगे थे. ऊर्जा की आपूर्ति के लिए रुस पर निर्भर जापान की
इस करवट से ऊर्जा की दुनिया में उलट फेर शुरु हो गया.
बात
सिर्फ यही नहीं थी कि जापान की सरकार नाभिकीय ऊर्जा की तरफ लौट रही थी बल्कि
एनएचके सर्वेक्षण के अनुसार जापान के करीब 48 फीसदी लोग नाभिकीय ऊर्जा के पक्ष
में थे. यह घोषणा होते ही यूरेनियम बाजार के तेजड़िये अपने अपने टर्मिनल के आगे
आ जमे.
नाभिकीय
ईंधन के बाद बाजार में मंदी का मौसम हवा हो गया. सितंबर में यूरेनियम की कीमत ने
ऊंची उडान भरी. जनवरी 2021 में इसकी कीमत 30 डॉलर प्रति पौंड थी जो इस साल 64 डॉलर तक दौड़ गई. तब से यूरेनियम 50
डॉलर के आसपास है. क्यों कि जापान ही नहीं बल्कि यूरोप के मुल्क भी न्यूक्लियर
ऊर्जा की तरफ लौटने वाले हैं
हम
भी इन तैयारियों की चर्चा पर लौटेंगे लेकिन पहले कुछ पीछे चलते हैं और समझते हैं
कि नाभिकी ऊर्जा की करवट में जापान की हृदय परिवर्तन इतना महत्वपूर्ण क्यों है
सेंडाई
का साया
सेंडाई
2011 - यह दूसरी सुनामी थी जो
सेंडाई में जमीन डोलने और पगलाये समुद्र की प्रलय लीला के ठीक सात दिन बाद उठी थी.
फुकुशिमा के नाभिकीय बिजली संयत्र में आग लग गई. जलते संयंत्र पर हेलीकॉप्टर से
पानी गिराने के दृश्य दुनिया को दहलाने लगे. फटी हुई धरती ( भूगर्भीय दरारें), ज्वालामुखियों की कॉलोनी और भूकंपों की प्रयोगशाला
वाले जापान में तब तक 55 न्यूक्लियर रिएक्टर थे यानी जोखिम के बावजूद
तेल व गैस पर निर्भरता सीमित रखने और ऊर्जा की लागत घटाने के लिए जापान ने नाभिकीय
ऊर्जा पर दांव लगाया था
फुकुशिमा के धमाके साथ न्यूक्लियर ऊर्जा से दुनिया का विश्वास
भी हिल गया. लगभग पूरे विश्व में परमाणु ऊर्जा की योजनायें फाइलों में बंद हो
गईं. पुराने संयंत्रों में उत्पादन सीमित कर दिया गया. 1986 में रुस के चेर्नोबेल
हादसे के बाद
यूरेनियम का बाजार करीब दस साल लंबी मंदी में चला गया. पूरी दुनिया
में ऊर्जा की ले दे मची थी लेकिन फुकुशिमा के खौफ से सहमी दुनिया ने नाभिकीय
ऊर्जा से तौबा कर ली. सनद रहे कि इस हादसे से पहले भारत ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर
समझौते के साथ बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की थी. मगर 2011 के बाद इस बाजार में अचानक
सब कुछ बदल गया था
सेंडाई के हादसे का साया इतना लंबा था कि दुनिया की ऊर्जा में न्यूक्लियर
बिजली का हिस्सा कम होने लगा. वल्ड न्यूक्लियर एनर्जी स्टेटस रिपोर्ट 2022
बताती है कि 2021 में विश्व ऊर्जा उत्पादन ने नाभिकीय ऊर्जा हिस्सा चार दशकों
पहली बार दस फीसदी से नीचे आ गया. 1996 में यह करीब 18 फीसदी की ऊंचाई पर था.
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के आंकड़ो में गोता लगाने पर पता चलता है कि
दुनिया के करीब 449 सक्रिय रिएक्टर या बिजल घरों ने 2018 में अपनी अधिकतम क्षमता
छू ली थी जो 397 गीगावाट थी इसके बाद न क्षमता बढी और न रिएक्टर. 2010 के बाद
अगले तीन साल में 23 रिएक्टर में उत्पादन बंद हो गया. 2022 के मध्य तक बिजली
बना रहे रिएक्टर की संख्या घटकर 411 रह गई थी. 2018 के बाद चीन को छोड़ कर ज्यादातर
विश्व में रिएक्टर बंद होने की संख्या बढती गई है.
सेंडाई की दुर्घटना का असर इतना गहरा था कि दुनिया में क्रमश: न्यूक्लियर
पॉवर प्रोग्राम धीमे पड़ने लगे. न्यूक्लियर स्टेटस रिपोर्ट बताती है कि 2021
में 33 देशों नाभिकीय ऊर्जा प्रोग्राम थे जिनमें तीन बंद हो चुके हैं. 8 को सीमित
कर दिय गया. 10 पर काम रोक दिया गया. केवल 15 कार्यक्रम सक्रिय हैं. नाभिकीय ऊर्जा
से किनारा करने के कारण पुराने रिएक्टरों का आधुनिकीकरण भी नहीं हुआ और न नई
तकनीकों का इस्तेमाल किया गया.
नाभिकीय ऊर्जा से इस मोहभंग के बीच केवल चीन सक्रिय ऊर्जा
कार्यक्रपर आएगे बढता रहा. 2021 में दुनिया नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन 3.9 फीसदी
बढा लेकिन चीन 11.1 फीसदी. चीन से बाहर नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में बढ़त केवल
2.8 फीसदी थी.
अगर युद्ध न होता ..
सितंबर 2022 से अचानक दुनिया में नाभिकीय ऊर्जा को लेकर होड़ जैसी
शुरु हो गई. कोयला, गैस और
पेट्रोल की महंगाई से बचने के लिए ही तो इस ऊर्जा का आविष्कार हुआ था अलबत्ता
हादसों और खतरों के कारण इसेस किनारा करना पड़ा. करीब 55 रिएकक्टर के सथ ऊर्जा की बड़ी ताकत रहे जापान ने नए रिएक्टर
लगाने का एलान किया तो यूरेनियम ऊर्जा की उभरती ताकत चीन ने अगले 15 साल में 150
नए रिएक्टर बनाने का एलान कर दिया.
नाभिकीय ऊर्जा की नई होड शुरु होने से पहले निमाणाधीान रिएक्टर में
चीन पहले नंबर पर था.
गैस की महंगाई से तप रहे यूरोप ने भी अब नाभिकीय ऊर्जा की वापसी का
खाका बनाना शुरु कर दिया है. फ्रांस अपने सभी रिएक्टर दोबारा शुरु करने वाला है.
जर्मनी जिसने 2011 के बाद नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन पूरी तरह बंद करने का निर्णय
लिया था वह भी प्रतिबंध हटाकर नए सिरे यह सस्ती ऊर्जा बनाने के संकेत दे रहा है.
सत्ता से बाहर से होने से पहले ब्रिटेन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसान
ने न्यूक्लियर ऊर्जा की फाइल फिर खोल दी थी. पिछली सरकारों को इस ऊर्जा
कार्यक्रम को विकालांग बना देने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री जॉनसन से साइजवेल
810 मिलियन डॉलर सरकारी निवेश का वादा भी किया था.
अमेरिका की रुस वाली ऊर्जा
नाभिकीय ऊर्जा का ताजा होड में अमेरिका का मामला गजब का दिलचस्प
है. अमेरिका अपने ऊर्जा कार्यक्रम के तहत कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए नाभिकीय
ऊर्जा का उत्पादन दोगुना करने की योजना पर काम कर रहा है. रुस यूक्रेन युद्ध के
कारण इस कार्यक्रम को बड़ा झटका लगा है.
अमेरिका के रिएक्टर जिस यूरेनियम का इस्तेमाल करते हैं वह दुनिया
में केवल एक कंपनी बेचती है और वह रुस की सरकारी कंपनी रोसाटोप यानी रशियन स्टेट
अटॉमिक एनर्जी कार्पोरेशन. हैरत होगी जानकर कि इस कंपनी पर प्रतिबंध नहीं लगाये गए
हैं क्यों कि यह ग्लोबल न्यूक्लियर सप्लाई चेन का हिस्सा है
नए हलेयू (हाई एसे लो इनरिच्ड यूरेनियम) रिएक्टर अमेरिका के ऊर्जा
कार्यक्रम की नई पीढी का सबसे बड़ा किरदार हैं. बिडेन प्रशासन इन नए रिएकटरों रुस
पर निर्भरता खत्म करना चाहता है वह यूरेनियम नए सप्लायर की तलाश में हैं.
खतरों को सीमित कर लिय जाए तो न्यूक्लियर दुनिया का सबसे अनोखा
ऊर्जा संसाधन है. यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और इससे बहुत बड़ी क्षमता के
बिजली घर लगाये जा सकते हैं. तो अब हम
वापस लौटते हैं मि. फ्यूजन की तरफ यानी बैक टु फ्यूचर वाली कार की तरफ. यह संयोग
ही कि पूरी दुनिया जब नाभिकीय ऊर्जा की तरफ लौटने को मजबूर हुई तो इसी बीच आणविक
ऊर्जा उद्योग की सबसे बडी तकनीकी तलाश भी पूरी हो रही है. फ्यूजन रिएक्टर बनने
में समय लगेगा अब परमाणुओं का जटिल विज्ञान नई तकनीकों के साथ वापसी को तैयार है.
मर्चेंट बैंकरों और निवेशक नाभिकीय ऊर्जा को अगले कुछ वर्षों का सबसे बड़ा निवेश
मौका मान रहे हैं
एक युद्ध ने कितना कुछ बदला दिया है