सरकारें समस्याओं के ऐसे समाधान लेकर क्यों आती हैं जो समस्याओं से ज्यादा बुरे होते हैं?
नोटबंदी के बाद छापेमारी में जितने नए
गुलाबी नोट मिले हैं, नकद
निकालने की मौजूदा सीमाओं के तहत लाइनों में लगकर उन्हें जुटाने में कई दशक लग
जाएंगे. किसे अंदाज था कि बैंक ही काले धन की धुलाई करने लगेंगे, गली-गली में पुरानी करेंसी बदलने की
डील होने लगेंगी और जांच एजेंसियों को गली-कूचों की खाक छाननी पड़ेगी. पूरा
परिदृश्य सुखांत कथा में ऐंटी क्लाइमेक्स आने जैसा है. लगता है कि नोटबंदी से होना
कुछ था, जबकि कुछ और ही होने लगा है.
हो सकता है कि आप आयकर विभाग और अन्य
एजेंसियों की सक्रियता पर रीझना चाहें, लेकिन हकीकत यह है कि डिमॉनेटाइजेशन ने कोई अच्छा नतीजे देने से पहले
भारत में भ्रष्टाचार के बुनियादी कारणों को भारी ताकत से लैस कर दिया है.
1. कमी और किल्लत भ्रष्टाचार की सबसे
बड़ी वजह है. करेंसी किसी अर्थव्यवस्था की सबसे आधारभूत सेवा है. नकदी की किल्लत का
मतलब है हर चीज की कमी. यह ग्रांड मदर ऑफ शार्टेजेज है, जो हर तरह के भ्रष्टाचार के लिए माकूल
है.
2. भ्रष्टाचार की दूसरी सबसे बड़ी वजह
अफसरों व नेताओं के विवेकाधिकार हैं यानी कि कुर्सी की ताकत. इस ताकत का नजारा
नोटबंदी के साथ ही शुरू हो गया था जो अब तेजी से बढ़ता जाएगा.
मांग व आपूर्ति में अंतर भारत में भ्रष्टाचार का सबसे महत्वपूर्ण कारण है. देशी-विदेशी एजेंसियों और स्वयंसेवी संस्थाओं (ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ब्राइब पेयर्स और करप्शन इंडेक्स आदि) के तमाम अध्ययन बताते रहे हैं कि ज्यादातर रिश्वतें जिन विभागों, संस्थाओं, सेवाओं या संगठनों में दी जाती हैं, वहां सुविधाओं की मांग व आपूर्ति में बड़ा अंतर है. भारत की 70 फीसदी रिश्वतें इस किल्लत के बीच अपना काम निकालने के लिए दी जाती हैं. फोन, रसोई गैस, ऑटोमोबाइल, सीमेंट की आपूर्ति में किल्लत खत्म हो चुकी है, इसलिए उन्हें हासिल करने के लिए रिश्वत नहीं देनी पड़ती.
भारत में 90 फीसदी विनिमय का आधार नकदी है. यदि इसकी किल्लत हो जाए तो फिर भ्रष्टाचार के अनंत मौके खुल जाने थे. नोटबंदी के तहत 86 फीसदी करेंसी को बंद करने के बाद पूरा मुल्क, ताजा इतिहास की सबसे बड़ी किल्लत से जूझने लगा है.
नोटबंदी के पहले सप्ताह में ही पुराने
नोट बदलने के नए तरीके चल निकले. उसके अगले एक सप्ताह में तो गली-गली में डील शुरू
हो गई, क्योंकि बैंकों के पिछले दरवाजे से
निकाली गई नई करेंसी बाजार में पहुंचने लगी थी.
नोटबंदी का पहला पखवाड़ा बीतने तक भारत में खुदरा मनी लॉन्ड्रिंग का सबसे बड़ा आयोजन शुरू हो गया था जो अब तक जारी है. नोटबंदी और नोटों की किल्लत ने भारत में पुराने नए नोटों के विनिमय की कई अनाधिकारिक दरें बना दीं जैसा कि हाल में वेनेजुएला और जिम्बाब्वे में देखा गया है.
नकदी की कमी अन्य किल्लतों से ज्यादा भयानक है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में आपूर्ति का इकलौता रास्ता है, इसके इस्तेमाल से ही खरीद-बिक्री, उत्पादन, मांग और ग्रोथ आती है. बाजार मांग बुरी तरह टूट गई, उपभोक्ता खरीद ठप हो गई और जरूरी चीजों की आपूर्ति सीमित होने लगी. हो सकता है कि नवंबर में घटी महंगाई मांग टूटने का प्रमाण है. नकदी की किल्लत के बाद सभी क्षेत्रों में उत्पादन घटेगा, जिसके सामान्य होने में एक साल लग सकता है. इसके बाद किल्लत वस्तुओं और सेवाओं
की होगी जो महंगाई की वापसी कर सकती है.
किल्लत से उन अफसरों व नेताओं को अकूत ताकत मिलती है जिनके पास सामान्य सुविधाएं देने से लेकर हक और न्याय बांटने के अधिकार हैं. नकदी की कमी के दौरान बैंक अधिकारी वस्तुत:, देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह हो गए. उन्होंने अपने विशेषाधिकार का जमकर इस्तेमाल किया और इसके बाद जो हुआ, पूरे देश में नए नोटों की बरामदगी के तौर पर सामने आ रहा है.
अलबत्ता बात यहीं खत्म नहीं होती.
नोटबंदी के दौरान छापेमारी या खातों की जांच इंस्पेक्टर राज का नया दौर शुरू
करेगी. करीब 144 करोड़ खातों की जांच का काम महज 15 हजार आयकर अधिकारियों के जिम्मे
होगा. अगर हर खाते को कायदे से जांचा जाए तो दस साल लगेंगे. इसलिए थोक में नोटिसें
जारी होंगी. अधिकारी अपने तरीके से तय करेंगे कि किसका धन काला है और किसका सफेद.
इस प्रक्रिया में खूब गुलाबी धन बनने की गुंजाइश है. बताते चलें कि आयकर और
प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाइयां ही सिर्फ सुर्खियां बनती हैं, उनकी जांच और दोषियों को सजा देने का
रिकॉर्ड बताने लायक नहीं है.
नोटबंदी के एक सप्ताह बाद (मैले हाथों से सफाई http://artharthanshuman.blogspot.in/2016/11/blog-post_28.html) में हमने लिखा था कि इस नए स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी सबसे मैले विभागों को मिली है. एक माह बीतते-बीतते आशंकाएं सच हो गई हैं.
नोटबंदी के आर्थिक नुक्सान तो सरकार भी स्वीकार कर रही है. अब चुनौती इन नुक्सानों के सामने फायदे खड़े करने की है. यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद सरकार को तत्काल दो अभियान चलाने होंगे
1. जिन सेवाओं में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है, उनमें बुनियादी ढांचे और आपूर्ति की कमी दूर करनी होगी.
2. अफसरों और नेताओं के विवेकाधिकार
सीमित करने के लिए सरकार की ताकत कम करनी होगी और समाज व मुक्त बाजार की ताकत
बढ़ानी होगी.
मिल्टन फ्रीडमैन कहते थे कि सरकारें समस्याओं के ऐसे समाधान लेकर आती हैं जो समस्याओं से ज्यादा बुरे होते हैं. अगर नोटबंदी के बाद जरूरी सेवाओं व सुविधाओं की आपूर्ति नहीं बढ़ी और नेता-नौकरशाहों के अधिकार कम नहीं हुए तो नोटबंदी के बाद
उभर रहा भ्रष्टाचार न केवल नई ताकत से लैस होगा कि बल्कि पहले से ज्यादा पहले से ज्यादा चालाक व चौौकन्ना भी होगा।