नोट के बदले वोट! सियासत में जीत का यह सबसे लोकप्रिय ग्लोबल फार्मूला है, जो परोक्ष रुप से दुनिया के हर देश में काम करता है। भारत में इसका प्रत्यक्ष और सरकारी अवतार एक जनवरी से प्रकट हो जाएगा। जनता को सीधे नकद पैसा देने की स्कीम यानी डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर पर जमीनी तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। आम जनता को सुविधाओं के बजाय बड़े पैमाने पर संगठित रुप से नकद पैसा देने की इस स्कीम में देश का सबसे विवादित राजनीतिक आर्थिक प्रयोग बनने की गुंजायश छिपी है। यह स्कीम राजनीतिक समर्थन के लिए बजट के खुले इस्तेमाल की एक ऐसी नई परंपरा शुरु कर सकता है जिसमें राज्य सरकारें लोककल्याणकारी राज्य को वोट कल्याणकारी राज्य में बदल देंगी। लोगों को नकद सब्सिडी देने के पैरोकार इस दो टूक निष्कर्ष के लिए माफ करेंगे लेकिन हकीकत यह है कि इससे सब्सिडी की बर्बादी रुकने और सही लोगों तक केंद्रीय स्कीमों का पैसा पहुंचने की कोई गारंटी नहीं है अलबत्ता इसका चुनावी इस्तेमाल होना शत प्रतिशत तय है।
कंडीशनल की जगह डायरेक्ट
जरुरतमंद लोगों को बडे पैमाने पर सरकारी बजट से नकद पैसा देने के प्रयोग पूरी दुनिया में विवादित और राजनीतिक तौर पर अस्वीकार्य रहे हैं। इस तरह के प्रयोगों में राजनीतिक लाभ का लेने का संदेह हमेशा छिपा होता है। यही वजह है कि दुनिया में कैश ट्रांसफर हमेशा इस शर्त पर होते हैं कि लाभार्थी स्वास्थ्य व शिक्षा की संस्थागत सुविधाओं को