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Saturday, July 8, 2017

जीएसटी का चीन कनेक्शन


चीन के लिए जीएसटी अच्‍छी खबर नहीं है लेकिन भारतीय उद्योगों के लिए क्‍या यह खुश खबरी है ?


इस साल दीपावली पर चीन में बने बल्‍ब और पटाखे अगर कम नजर आएं तो जीएसटी को याद कीजिएगा. चीन से जीएसटी का अनोखा रिश्‍ता बनने वाला है. यह सस्‍ते चीनी सामान के आयात पर भारी पड़ेगा. रिएक्‍टरमशीनेंटरबाइन जैसे बड़े आयात बेअसर रहेंगे लेकिन जीएसटी के चलते सस्‍ते उत्‍पादों की अंतरदेशीय बिक्री थम सकती है जिससे तात्‍कालिकमहंगाई नजर आएगी.

चीन से आने वाले सस्‍ते खिलौनेछोटे इलेक्‍ट्रॉनिक्‍समोबाइल एसेसरीजबिजली के सामानटाइल्‍सक्रलोरिंगस्‍टेशनरी व प्‍लास्टिकके कारण दिल्‍ली के गक्रफार मार्केटनेहरू प्‍लेस या मुंबई का मुसाफिर खाना मनीष मार्केट और देशभर में फैले ऐसे ही दूसरे बाजार गुलजार रहते हैं. इन बाजारों में अगले कुछ महीनों के दौरान सन्‍नाटा नजर आ सकता है.

चीन के सस्‍ते करिश्‍मे आम लोगों तकपहुंचने की शुरुआत भारतीय आयातकों के यिवू (सस्‍ते सामानों का दुनिया में सबसे बड़ा बाजार) पहुंचकर माल चुनने और ऑर्डर देने से होती है. इन आयातों पर 14 से 28 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती है. 

चीन में उत्‍पादन पर सब्सिडी के चलते ज्‍यादातर सामान बेहद सस्‍ते होते हैं इसलिए कई उत्‍पादों पर काउं‍टर‍वेलिंग या ऐंटी डंङ्क्षपग ड्यूटी (0 से 150 फीसदी तकभी लगाई गई है ताकि देशी उत्‍पादको संरक्षण मिल सके. हाल में ही सरकार ने सेरमिकक्रॉकरी और सिलाई मशीन के पुर्जों पर ऐंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई है.

सस्‍ते चीनी माल का आयात थोकमें (पूरा कंटेनर) होता है. अंतरराज्‍यीय वितरण तंत्र इनकी बिक्री की रीढ़ है‍ जिसके जरिए पलकझपकते चीन माल शहरों से कस्‍बों और गांवों तकफैल जाता है. ज्‍यादातर बिक्री नकद में होती है जो टैक्‍स नेटवर्क से बाहर है.

छोटे व्‍यापारी थोकविक्रेताओं से उपभोक्‍ताओं की तरह माल खरीदते हैं. टैक्‍स व ट्रांसपोर्ट अधिकारियों की मुट्ठी गरमाते हुए उपभोकताओं तकमाल पहुंचाते हैं. चीनी उत्‍पादों की लागत इतनी कम है कि ऊंची इंपोर्ट ड्यूटीरि‍श्‍वतों और सबके मार्जिन के बावजूद सामान बेहद सस्‍ता बिकता है।

जीएसटी चीनी सामान की अंतराज्‍यीय बिक्री के लिए बुरी खबर है

कोई गैर रजिस्‍टर्ड कारोबारी अंतरराज्‍यीय बिक्री नहीं कर सकेगा। राज्‍यों के बीच चीनी सामान की आवाजाही टैक्‍स राडार पर होगी। ई वे बिल लागू होने के बाद गैर रजिस्‍टर्ड ट्रांसपोर्ट लगभग बंद हो जाएगा

जीएसटी की छूट सीमा (20 लाख के टर्नओवर पर  छूट और 75 लाख तक कारोबार पर कंपोजीशन स्‍कीम) वाले कारोबारी भी अंतरराज्‍यीय कारोबार नहीं कर सकेंगे। यानी कि सस्‍ते चीनी माल को स्‍थानीय बाजार में ही बेचना होगा इससे  आपूर्ति सीमित हो जाएगी

खुदरा कारोबारियों के जरिये चोरी छिपे अंतरराज्‍यीय बाजारों में पहुंचने वाले सामान की मात्रा कम ही होगी

जीएसटी नेटवर्कमें पंजीकरण के बाद बिकने वाला चीनी सामान टैक्‍स के कारण खासा महंगा होगा

सरकार ने जीएसटी के तहत कई एसे सामानों पर ऊंचा टैक्‍स (18 और 28 फीसदी) लगाया है जो आमतौर पर चीन से आयात होते हैं

जीएसटी का यह तात्‍कालिक 'फायदाशुरुआत में दर्द लेकर आने वाला है

1. चीन से आना वाला सस्‍ता मांग भारत में कई चीजों की महंगाई रोकने में बड़ी भूमिका निभाता है इनमें प्‍लास्टिकइलेक्‍ट्रॉनिक्‍सलाइटिंगक्रॉकरी आदि प्रमुख हैं। इन कारोबारों में किल्‍लत और कीमतें बढऩा लगभग तय है। कीमतों में ज्‍यादा तेजी दूरदराज के बाजारों में दिखेगी जहां सीधे आयात नहीं होता।

2. भवन निर्माणइलेक्‍ट्रानिक्‍स रिपयेरिंग जैसे कई उद्योग व सेवायें चीन से सस्‍ते माल पर निर्भर हैं । देशी उत्‍पादन इनकी कमी पूरी नहीं कर सकता इसलिए कई बाजारों में लंबे समय तकसन्‍नाटा रह सकता है

3.छोटे शहरों में चीनी माल की बिक्री के कारोबार और रोजगार में खासी कमी आ सकती है

अलबत्‍ताअगर आप इसे भारतीय उद्योगों के लिए मौके के तौर पर देख रहे हैं तो  उत्‍साह को संभालिये। चीन से आयात होने वाले सामान के बदले भारत में उत्‍पादन की जल्‍दी शुरुआत मुश्किल है।

इसकी भी वजह जीएसटी ही है।

जीएसटी में उन उत्‍पादों पर ऊंचा टैक्‍स लगा है जो  छोटे व असंगठित क्षेत्र में बनते हैं और चीनी माल का विकल्‍प बन सकते हैं इसके अलावा जीएसटी नियमों को लागू करने की भी खासी ऊंची होगी। ईंधन यानी पेट्रोल डीजलबिजलीकर्ज और जमीन की महंगाई के कारण परेशान छोटे उद्योगों के लिए जीएसटी चैत की कड़ी धूप की मानिंद है

भारतीय उद्योग इतनी बड़ी मात्रा में इतने सस्‍ते सामान नहीं बना सकतेइसलिए सस्‍ते चीनी माल की आपूर्ति लौटेगी अलबत्‍ता इस बार चीनी उत्‍पाद जीएसटी के नेटवर्कमें दर्ज होकर आएंगे। उपभोक्‍ताओं के लिए कीमतें और चीनी सामान का इस्‍तेमाल करने वालों की लागत बढेगी लेकिन सरकार का राजस्‍व भी बढेगा।

क्‍या देशी उद्योग चीनी माल से टक्‍कर ले पाएंगे?

उसके लिए सरकारों को कमाई का लालच छोड़ कर टैक्‍स कम करने होंगे
जीएसटी से फायदा है या नुकसान! फिलहालयह फैसला हम आप छोड़ते हैं   गुड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स का सफर तो अभी बस शुरु ही हुआ है




Monday, October 24, 2016

मेड इन चाइना

चीन की भारत में पैठ पटाखों से कहीं ज्यादा गहरी और व्यापक है. देश भक्ति का उच्‍छवास ठीक है लेकिन चीन के दबदबे की हकीकत सख्‍त, कड़वी,  तल्‍ख है  

ब पिछले हफ्ते मेड इन चाइना सामान पर फेसबुक/वॉट्सऐप निर्मित गुस्सा बरस रहा थापटाखों-बल्बों की खरीद रोककर चीन की इकोनॉमी को मटियामेट करने के आह्वान टीवी चैनलों की सुर्खियों में पहुंचने लगे थे. ठीक उसी समय मुंबई में रिजर्व बैंक के अधिकारी यह गणित लगा रहे थे कि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार का कितना हिस्साकैसे युआन (चीन की करेंसी) में बदला जाना है.

पाक समर्थित आतंकियों पर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के तीन दिन बाद ही युआन दुनिया की पांचवीं सबसे ताकतवर करेंसी बन गया था. अक्तूबर का पहला हफ्ता लगते ही युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के एसडीआर (स्पेशल ड्राइंग राइट्स) में जगह मिल गई. यह मुद्राओं का आभिजात्य क्लब है जिसमें अमेरिकी डॉलरजापानी येनब्रिटिश पाउंड और यूरो के बाद सिर्फ युआन को जगह मिली है. विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार एसडीआर के फॉर्मूले पर बनते हैं इसलिए भारत सहित दुनिया के सभी देश अब विदेशी मुद्रा खजाने में डॉलरपाउंडयूरोयेन के साथ युआन को भी सहेजेंगे.

भारतीय बाजार में चीन के दबदबे को लेकर हम पिछली सरकारों को कोसकर अपनी कुंठा मिटा सकते हैं लेकिन वित्तीय बाजारों के मजाकिये यूं ही नहीं कहते कि भगवान ने दुनिया बनाई और इसमें जो भी बना वह मेड इन चाइना है. जब कोई देश दुनिया के आधे से अधिक पर्सनल कंप्यूटरदो तिहाई डीवीडीअवनखिलौने बनाता हो तो मेड इन चाइना दुनिया के सभी बाजारों के लिए भारत जैसी ही तल्ख हकीकत है. चीनी जलवे को ग्लोबल अर्थव्यवस्था के ऐसे बदलावों ने गढ़ा है जिन्हें रोक पाना शायद किसी के बस में नहीं था.

ग्लोबल अर्थव्यवस्था में चीन के शिखर पर पहुंचने से पहले के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता.जब कोई एक देश पूरी दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस बनकर दुनिया भर के बाजारों पर काबिज हो जाए. यह कतई नामुमकिन नहीं है कि चीनी सामान के बहिष्कार के मोबाइल संदेश जिस फोन से भेजे या देखे जा रहे हैंवह फोन या उसके पुर्जे चीन में बने हों. संदेश ले जाने वाला मोबाइल नेटवर्क चीनी कंपनियों जीटीई या हुआवे ने बनाया हो या फिर सिम कार्ड चीन से आए हों. अगर फोन कोरिया या जापान का है तो भी उसमें चीन शामिल होगा क्योंकि दोनों देश चीन से 70 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करते हैं. हो सकता हैजिस बिजली से यह फोन चार्ज हुआ हैउसे बनाने वाली इकाई में चीनी टरबाइन लगे हों.

चीन की भारत में पैठ पटाखों से कहीं ज्यादा गहरी और व्यापक है. पटाखों का आयात बमुश्किल 10 लाख डॉलर भी नहीं होगा. विदेश व्यापार के आंकड़ों के मुताबिकचीन से भारत का सबसे बड़ा आयात इलेक्ट्रॉनिक्स (20 अरब डॉलर)न्यूक्लियर रिएक्टर और मशीनरी (10.5 अरब डॉलर)केमिकल्स  (6 अरब डॉलर)फर्टिलाइजर्स  (3.2 अरब डॉलर)स्टील (2.3 अरब डॉलर) का है. 2015-16 में भारत ने चीन से 61 अरब डॉलर का आयात किया जिसमें शीर्ष दस आयात का हिस्सा 48 अरब डॉलर था.

चीन के बाद भारत का सबसे बड़ा आयात अमेरिकासऊदी अरब और अमीरात से होता है. चीन से होने वाला आयात इन तीनों से ज्यादा है. फिर भी पटाखा क्रांतिकारियों को ध्यान रखना होगा कि दुनिया को 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के चीनी निर्यात में भारत का हिस्सा तीन फीसदी से भी कम है! चीन की चुनौती को भावुक नहीं बल्कि तर्कसंगत ढंग से लेना होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था में चीन के दबदबे का ताजा आधिकारिक अध्ययन उपलब्ध नहीं है. आखिरी कोशिश 2011 में हुई थी जब तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में चीन के दखल का गोपनीय आकलन किया. निष्कर्ष चौंकाने वाले थेः

1. चीन अपने उत्पादों की कीमतें भारत के मुकाबले 40 फीसदी तक सस्ती कर सकता है. बाजार इस हकीकत की तस्दीक करता है.
2. भारत के टेलीकॉम आयात में चीन का हिस्सा 2011 में ही 62 फीसदी था. अब यह 75 फीसदी से ऊपर होगा.
3. चीन दुनिया का सबसे बड़ा बल्क ड्रग (दवा) निर्माता है और एपीआइ (एक्टिव फॉर्मा इनग्रेडिएंटस) और बल्क ड्रग की आपूर्ति के लिए भारत चीन पर शत प्रतिशत निर्भर है.
4. बिजली संयंत्र और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के लिए भारत के अधिकांश सामान की जरूरत चीन से पूरी होती है. और सबसे महत्वपूर्ण
5. भारत के मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में चीन का हिस्सा 2011 में 26 फीसदी था जो अगले पांच साल में 75 फीसदी होना था. यह आकलन सही साबित हुआ है.

पूरी दुनिया दशक भर पहले यह मान चुकी है कि चीन जो खरीदेगा वह महंगा होगा और जो बेचेगावह सस्ता. दुनिया के देश इस समीकरण को स्वीकारते हुए रणनीतियां बना रहे हैं. भारत को भी इस वास्तविकता की रोशनी में बहिष्कार के बजाए उत्पादन लागत घटाने के तरीकों पर काम करना होगा और छोटी इकाइयोंतकनीकशोध पर फोकस करना होगा जो कम लागत वाले चीनी आयात का विकल्प खड़े कर सकते हैं.

चीन-पाकिस्तान गठजोड़ की तरफ लौटते हैंपटाखे जहां से फूटना शुरू हुए हैं. पिछले साल इस्लामाबाद दौरे से पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान को भविष्य का एशियाई टाइगर (पाकिस्तान के डेली टाइम्स में छपा लेख) कहा था. दुनिया की किसी भी महाशक्ति ने उसमें यह संभावना कभी नहीं देखी. चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर में चीन का निवेश 46 अरब डॉलर है जो पाकिस्तान के जीडीपी का 20 फीसदी है. जाहिर हैअमेरिका ने कई दशकों तक साथ रहकर भी पाकिस्तान को ऐसी आर्थिक ताकत नहीं दी जो चीन लेकर पहुंचा है.



हमें समझना होगा कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. उसके इतने बड़े होने के बाद से सुरक्षा का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य सिरे से बदल गया है. चीन के साथ खड़ा पाकिस्तान दरअसल अमेरिका के साथ छह दशक तक रहे पाकिस्तान से कहीं ज्यादा स्थिर और सक्षम है. चीन अमेरिका की तरह पाकिस्तान से मीलों दूर नहीं बल्कि उसकी अपनी जमीन पर कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है. चीन का रणनीतिक रसूख उसकी आर्थिक शक्ति से निकला है. देशभक्ति के भावुक उच्छवास ठीक हैं लेकिन भारत को अपनी आर्थिक ताकत बढ़ानी होगीक्योंकि दुनिया में रणनीतिक शक्ति का झंडा अब कार्गो शिप लेकर चलते हैंबैटल शिप नहीं.