ग्लोबल इकोनॉमी के इमर्जेंसी वार्ड अर्थात यूरोप में चेतावनी के सायरन फिर बज उठे हैं। यूरोप जैसे कि इस इंतजार में ही था कि कब अमेरिका व चीन में सियासत की रैलियां खत्म हों और संकट के नए अध्याय शुरु किये जाएं। ग्रीस व स्पेन वेंटीलेटर पर थे ही इस बीच अधिकांश यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की महामारी आ जमी है। लेकिन यह सब कुछ पीछे है, सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि यूरोपीय संघ टूटने को तैयार है। ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर जाने की दहलीज पर है। यूरोप की बड़ी राजनीतिक व आर्थिक ताकत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच एक साल से चौडी हो रही दरार का नतीजा इस सप्ताह ब्रसेल्स की शिखर बैठक में सामने आ सकता है। 22 नवंबर की इस बैठक में यूरोपीय संघ का बजट पारित होना है। ग्लोबल बैंकिंग पर यूरोपीय संघ की सख्ती से उखड़ा ब्रिटेन बजट में किसी भी बढ़ोत्तरी को रोकने का ऐलान कर चुका है। बैंकिंग व वित्तीय सेवायें बर्तानवी अर्थव्यवस्था की जान हैं। इसलिए ब्रिटेन में यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में सियासत काफी गरम है।
ब्रिटिश समस्या
नवंबर के दूसर सप्ताह में अमेरिका में जब राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शिकागो से वाशिंगटन डीसी रवाना हो रहे थे और बीजिंग में चीन के नए मुखिया श्यी जिनपिंग की ताजपोशी शुरु हो रही थी ठीक उस दौरान लंदन की दस डाउनिंग स््ट्रीट में यूरोपीय संघ का विघटन रोकने की अंतिम कवायद चल रही थी। जर्मन चांसलर एंजला मर्केल लंदन में थीं और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन को यूरोपीय संघ के बजट में बढ़ोत्तरी पर राजी करने की कोशिश कर रही थीं। दावत अच्छी थी मगर बात नहीं बनी। फैसला इस सपताह ब्रसेल्स में होगा।
ब्रिटेन यूरो मुद्रा संघ का सदस्य नहीं है, यानी यूरोजोन से बाहर है वह यूरोपीय संघ की एकल वीजा शेंजन प्रणाली का हिस्सा भी नहीं है अर्थात वह संघ में आधा शामिल है। लेकिन इससे यूरोप की आर्थिक राजनीति में ब्रिटेन की अहमियत कम नहीं होती। जर्मनी और फ्रांस के बाद यूरोप की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन यूरोपीय संघ की एकजुटता