आनंद भाई का घनघोर कमाई वाट्स अप ग्रुप उदास रहता है अब घाटे कवर करने की सिफारिशों ही तैरती रहती हैं
लंबे
वक्त तक शांति के बाद ग्रुप पर भूपेश भाई का संदेश चमका.
क्रेडिट
सुइस ने भारत के शेयर बाजार में निवेश घटाकर चीन आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया
में बढ़ाने का फैसला किया था
जेपी
मोर्गन ने भी इंडिया का डाउनग्रेड कर दिया. यानी अब दूसरे बाजारों को तरजीह दी
जाएगी.
आश्चर्य, असमंजस वाली इमोजी बरस पड़ी ग्रुप में
आनंद
भाई ने पूछा यह विदेशी भारत से क्यों भाग रहे हैं
भूपेश
भाई ने कहा ... लंबा किस्सा छोटे में किस तरह सुनाना
शाम
को कॉफी पर मिलकर तलाशते हैं कि विदेशी निवेशक कहां जा रहे हैं यह चीन पर रीझने का
नया मामला क्या है ?
शाम को लगी बैठकी ...
बात
शुरु होते ही आनंद ने चुटकी ली कौन कमॉडिटी ट्रेडिंग शुरु कर रहा है अब ? देखिये 911 अरब डॉलर की एसेट संभालने वाला और 2.8 अरब
के मुनाफे वाला स्विस बैंकर क्रेडिट सुई इक्विटी बाजारों का लालच छोड़ कमॉडिटी
वाली अर्थव्यवस्थाओं आस्ट्रेलिया चीन और इंडोनेशिया पर दांव लगा रहा है.
यह बाजार है पेचीदा
भूपेश
भाई बोले कि कमॉडिटी वाले इन्हीं दिनों के इंतजार में थे कहते है कमॉडिटी ट्रेडिंग
कमजोर दिल वालों का कारोबार नहीं हैं यहां बड़ा फायदा कम ही होता है. खनिज,तेल, कृषि जिंस की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ती है
इसलिए दुनिया में कोई कमॉडिटी या जिंस की महंगाई नहीं चाहता.
1970 से 2008 तक करीब चालीस साल में शेयर बाजार और प्रॉपर्टी कहां से कहां पहुंच गए लेकिन बकौल रसेल इंडेक्स कमॉडिटी पर सालाना रिटर्न 6.24 फीसदी ही रहा. 2008 से 2021 के बीच दरअसल यह रिटर्न नकारात्मक -12.69 फीसदी रहा लेकिन उतार-. चढाव बहुत तेज हुआ यानी भरपूर जोखिम और नुकसान.
क्रूड
ऑयल, नेचुरल गैस, सोना चांदी,
कॉपर, निकल, सोयाबीन, कॉर्न, शुगर और कॉफी सबसे सक्रिय कमॉडिटी हैं.
जनवरी 2022 में जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 साल यह बाजार
पूरी ग्लोबल वजहों से खौलता है. पांच दशक में करीब 39 कमॉडिटी कीमतों बढ़ने वजह
अंतरराष्ट्रीय रही हैं. यह कॉमन ग्लोबल फैक्टर मेटल और एनर्जी पर यह समान कारक
ज्यादा ज्यादा असर करता है. कृषि और उर्वरक पर कम.
1990
के बाद से तो कीमतों पर इस कॉमन फैक्टर का असर 30 से 40 फीसदी हो गया. यानी कि मेटल व एनर्जी की कीमतों में बदलाव और उथल
पुथल पूरी दुनिया में एक साथ होती है
मनी की नई गणित
कमॉडिटी
में उतार चढाव नए नहीं लेकिन एसा कया हुआ कि विदेशी निवेशकों को इक्विटी की जगह
कमॉडिटी में भविष्य दिखने लगा.
दरअसल
रुस का विदेशी मुद्रा भंडार जब्त होने के बाद यह अहसास हुआ कि जिस करेंसी रिजर्व
को प्रत्येक संकट का इलाज माना जाता है वही बेकार हो गया है.
क्रेडिट
सुई के विशेषज्ञ जोलान पोत्जार ने इस नए परिदृश्य को ब्रेटन वुड्स थ्री की
शुरुआत कहा है. पहला ब्रेटन वुड्स की पहली मौद्रि क व्यवस्था में अमेरिकी डॉलर
की कीमत सोने के साथ के समानांतर तय हुई थी. अमेरिकी राष्ट्रपति
रिचर्ड निक्सन 1971 में इसे खत्म कर डॉलर की सोने परिवर्तनीयता
रद्द कर दी. इसके बाद आई इनसाइड मनी जो जो दअरसल बैंकों का कर्ज लेन देन है. इसमें
मनी एक तरफ जमाकर्ता की एसेट है तो दूसरी तरफ बैंक व कर्ज लेने की देनदारी.
मनी
की चार कीमतें होती हैं एक अंकित मूल्य यानी फेस वैल्यू, दूसरा टाइम वैल्यू यानी ब्याज, तीसरा दूसरी मुद्रा
से विनिमय दर कि और चौथी प्राइस वैल्यू यानी किसी कमॉडिटी के बदले उसका मूल्य.
जोलान
पोत्जार कह रहे हैं कि अब यह चौथी कीमत के चढ़ने का दौर है. दुनिया के देश और
केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडारों को सोने व धातुओं से बदल रहे हैं. यही
वजह है कि रुस का संकट बढ़ने के साथ
कमॉडिटी कीमत और फॉरवर्ड सौदे नई ऊंचाई पर जा रहे हैं.
करेंसी
और कमॉडिटी का यह नया रिश्ता दुनिया उन देशों को करेंसी को मजबूत कर रहा है जिनके पास धातुओं ऊर्जा के भंडार
है जिनके पास यह नहीं है वे विदेशी मुद्रा भंडार के डॉलर को जिंसो से बदल रहे हैं.
इनमें चीन सबसे आगे है जिसके पास 3000 अरब डॉलर का भरपूर विदेशी मुद्रा भंडार है
इसलिए
क्या अचरज कि क्रेडिट सुई जैसे निवेशक चीन पर दांव लगायेंगे.
चीन की तैयारियां
भूपेश
भाई पानी पीने के लिए रुके तो आनंद चीन के आंकड़े लेकर आ गए
चीन
का दुनिया का सबसे बड़ा जिंस उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. सीमेंट, निकल, स्टील, कॉटन, अल्युमिनियम, कॉर्न, सोयाबीन,
कॉपर, जिंक, कच्चा तेल
और कोयला के आयात व खपत में दुनिया या पहले या दूसरे
नंबर पर है.
2021
में जब दुनिया कोविड की उबरने की कोशिश मे थी तब मंदी के बावजूद चीन ने कमॉडिटी
आयात का अभियान शुरु किया. आस्ट्रेलिया की वेबसाइट स्टॉकहेड के मुताबिक 2021
में चीन में कोयला ,ऑयरन ओर, सोयाबीन का आयात 2020 की तुलना में 6 से 18 फीसदी तक बढ़ा. कॉपर व स्क्रैप
के आयात में 80 फीसदी इजाफा हुआ. नेचुरल गैस, कोबाल्ट और कोयले के आयात भी नई ऊंचाई पर
था.
2021 में नैसडाक की एक रिपोर्ट, फूड प्रोसेसिंग उद्योग के आंकड़े और स्वतंत्र अध्ययन बताते हैं कि 2020 में डॉलर की कमजोरी के कारण चीन ने बीते साल तांबा और कृषि उत्पादों का आयात बढ़ाकर भारी भंडार तैयार किया है.
चीन कमॉडिटी के गोपनीय रणनीतिक रिजर्व बनाता हैं. रायटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि चीन में करीब 15 से 20 लाख टन तांबा , 8-9 लाख टन अल्युमिनियम, 4 लाख टन जिंक, 700 टन कोबाल्ट का रिजर्व है. निकल, मॉलबेडनम, इंडियम आदि के रिजर्व भी बनाये हैं. 200 मिलियन बैरल का तेल और 400 मिलियन टन का कॉमर्शियल कोल रिजर्व है और गेहूं, सोयाबीन व कॉर्न के बडे भंडार हैं.
चीन का सोना भंडार
गोल्ड अलायंस की एक रिपोर्ट चौंकाती
है 2021 में हांगकांग के जरिये चीन का शुद्ध सोना आयात 40.9 टन से बढ़कर 334.3 टन
हो गया हो गया. यह आंकड़ा स्विस कस्टम से जुटाया गया है जहां से चीन का अधिकांश
सोना आता है. इसके बदले अमेरिका को चीन का सोना निर्यात 508 टन से घटकर 113 टन रह
गया.
इसके अलावा चीन दुनिया का सबसे बड़ा
सोना उत्पादक भी है. गोल्ड अलायंस के अनुसान बीते 20 साल में चीन में 6500 टन
सोना निकाला गया.. चीन इस सोने का निर्यात नहीं करता. चीन की कंपनियां दुनिया के
देशों में जो सोना निकालती हैं, शंघाई गोल्ड एक्सचेंज से उसका कारोबार होता है.
ढहता रुस किसका?
रुस
के संकट के बाद अब चीन की नजर वहां की खनन व तेल कंपनियों पर है. ब्लूमबर्ग की एक
रिपोर्ट बताती है कि चीन की विशाल सरकारी तेल, ऊर्जा, अल्युमिनियम कंपनियां रुस की गैजप्रॉम,
यूनाइटेड, रसेल आदि के संपर्क में हैं क्यों
यूरोपीय कंपनियों रुसी दिग्गजों से रिश्ते तोड़ लिये हैं.
क्रेडिट
सुई के पोल्जार ठीक कहते हैं. रुसी कमॉडिटी सब प्राइम सीडीओ जैसी हैं जिनमें
डिफाल्ट हो रहा है जबकि कमॉडिटी में अमीर अन्य देश अब अमेरिका के ट्रेजरी बिल
जैसें जिनकी साख चमक रही है.
युद्ध
खत्म होने तक कमॉडिटी चीन की बादशाहत और मजबूत हो जाएगी. डॉलर अभी मजबूत है क्यों
कि वह दुनिया की केंद्रीय मुद्रा है लेकिन बाजार यह मान रहा है कि युद्ध के बाद
डॉलर कमजोर होगा और तब कमॉडटी की ताकत के साथ चीन का युआन कहीं ज्यादा मजबूत
होगा.
जेपी
मोर्गन और क्रेडटि सुई को देखकर आनंद और भूपेश भाई कि एक कमॉडिटी का सुपरसाइकिल
शुरु हो रहा है. जहां कमॉडिटी की महंगाई लंबे वक्त चलती है.
पहला
सुपरसाइकिल 1890 में अमेरिका के औद्योगीकरण से लेकर पहले विश्व युद्ध
तक चला. दूसरी सुपरसाइकिल दूसरे विश्वयुद्ध से 1950 तक और तीसरी
1970 से 1980 तक और तीसरी 2000 में शुरु हुई जब चीन डब्लूटीओ में आया था लेकिन
2008 के बैंकिंग संकट ने इसे बीच में रोक दिया.
उत्पादन
बढ़ने व मांग आपूर्ति का सुधरने में वक्त लगता है इसलिए कमॉडिटी के सुपरसाइकिल
लंबी महंगाई लाते हैं. यदि धातुओं उर्जा की तेजी एक सुपरसाइकिल है तो भारत के लिए
अच्छी खबर नहीं है. भारत को सस्ता कच्चा माल और सस्ती पूंजी चाहिए और भरपूर
खपत भी. नीति निर्माताओं को पूरी गणित ही बदलनी पडेगी. शायद यही वजह है भारत की
विकास दर को लेकर अनुमानों में कटौती शुरु हो गई है