Showing posts with label India diversity. Show all posts
Showing posts with label India diversity. Show all posts

Monday, August 14, 2017

आजादी के बाद आजादी



आजादी के बाद क्या होता है?
देश के लोग अपनी सरकार बनाते हैं.
आजादी के बादआजादी को सबसे बड़ा खतरा किससे होता है?
सरकार से!

राजनीतिशास्त्र के एक प्रोफेसर ठहाके के साथ यह संवाद अक्सर दोहराते थे और सवालों का गुबार छोड़ जाते थे.

विदेशी ताकत की गुलामी से मुक्त होते हीकिसी भी देश के लिए आजादी के मतलब पूरी तरह बदल जाते हैं. गुलामी से निजात के बाद ''अपनीसरकारों को अपने लोगों की आजादी में लगातार बढ़ोतरी करनी होती है. लोगों की अपनी सरकारें उनकी आजादियों के जिस तरह सजाती संवारती है उसी अनुपात में नागरिकों का दायित्‍व बोध निखरता चला जाता है  

भारत के पास सामाजिकवैचारिक और आर्थिक स्वाधीनताओं की अनोखी परंपरा रही है उपनिवेशवाद ने जिसे सीमित किया था ताकि इस गतिमान देश पर शासन किया जा सके. अब जबकि हर प्रमुख राजनैतिक दल या विचारधारा की सत्ता में आवाजाही हो चुकी है तब आजादी के सत्तर साल के मौके पर यह देखना जरूरी है कि हमारे हाकिमों ने भारतीय समाज की ऐतिहासिक स्वाधीनताओं से क्या सीखा और उसे कितना बढ़ाया या संवारा है?

- भारत एक था मगर एकरूप नहीं. ब्रितानीअपने राज के लिए इस जटिल देश को पीट-पाटकर एकरूप करने की कोशिश में लगे रहे. आजादी के बाद भी सरकारों ने एकरूपता (एकता नहीं) की जिद नहीं छोड़ी. किसी को यह विविधताएं विकास में बाधक लगीं तो किसी को राष्ट्रवाद में. क्षेत्रीय व स्थानीय अपेक्षाओं से कटी और ऊपर से थोपी गई नीतियों के कारण भारत गवर्नेंस की गफलतों का अजायबघर है.

-1950 से 2010 के बीच करीब 250 से अधिक से  सरकारी कंपनियां बनीं. आधी तो उदारीकरण के दौरान प्रकट हुईं. मुगल और ब्रिटिश राज के बीच भी अपनी स्वतंत्र उद्यमिता को बचाकर रखने वाला देश कभी यह नहीं समझ सका कि सरकारें आखिर कारोबार की पूरी आजादी क्यों नहीं देतीं. वह क्यों कारोबार करते रहना चाहती है या फिर कुछ खास अपनों को कारोबारी सफलता के अवसर देने में भरोसा रखती हैं. 

- सरकार को बड़ा करते जाने की सूझ लंदन वालों की विरासत थी. उन्हें शासन में मददगार लोग चाहिए थे. पिछले कुछ दशकों में ब्रिटेन में नौकरशाही छोटी होती गई लेकिन भारत में सरकारें मोटी होती गईं. इतिहास बताता है कि अधिकांश भारत ने (संकटों को छोड़कर) जीविका के लिए कभी राजा या सत्ता की तरफ नहीं देखा था. लेकिन फैलती सरकारें अपनी मुट्ठी भर नौकरियां लेकर आरक्षण की सियासत में उतर गईं.

-ब्रिटेन के लिए भारत कमाई का स्रोत था इसलिए उत्पादन और खपत पर टैक्स लगाने का सिलसिला 19वीं सदी के अंत में नमक और कपड़े पर टैक्स से शुरू हुआ. बीसवीं सदी के अंत में सभी उत्पादनों पर एक्साइज ड्यूटी लग गई. अगले दशकों में जब यूरोप मांगखपतउत्पादन और रोजगार बढ़ाने के लिए टैक्स घटा रहा था तब भारत सेवाओं पर भी टैक्स लगा रहा था. बढ़ती सरकार को पालने के लिए लोगों की जिंदगी महंगा करना जरूरी हो गया. जीएसटी ने इस परंपरा को पूरी पवित्रता के साथ जारी रखा है. जितना टैक्स हम चुकाते हैं यदि उतनी ही बड़ी सरकार हमें मिलने लगे तो पता नहीं तो क्या हाल होगा.

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब पुराने कानूनों को खत्म कर रहे थे तो उनकी नजर उन बर्तानवी कानूनों पर भी गई होगी जो अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक के लिए बने थे. अपनी’ सरकारों ने इन्हें सत्तर सालों मे सहेजा और बढ़ाया है. सरकार अपने नागरिकों की निजता के अधिकार पर बुरी तरह असहज है. सवाल पूछते लोग हुक्मरानों को डराने लगे तो सूचना का अधिकार टिकाऊ साबित नहीं हुआ.

- ब्रिटिश शासकों को मालूम था कि भारत ऐतिहासिक तौर पर ताकतवर समाज वाला देश हैइस समाज के सभी पुराने आख्यान राजाओं की ताकत सीमित करने के संदेश देते हैं. ताकतवर और स्वतंत्र समाज से मुकाबले के लिएबर्तानवी शासकों ने सत्ता को अकूत शक्तियों से लैस किया था. आजादी के बाद आई सरकारों ने सत्ता की ताकत बढ़ाने का मौका नहीं चूका. सरकारें फैलती चली गईं और संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव भारत का स्थायी भाव बन गया.

आजादी को सिर्फ बचाना ही नहींबढ़ाना भी होता है. अमेरिका ने गुलामी से मुक्ति के बाद आजादियां बढ़ाने के नए प्रयेाग किए जो दुनिया के लिए आदर्श बने. भारत के हुक्मरान अगर अमेरिका नहीं तो कम से कम अपने भव्य अतीत से तो सबक ले ही सकते हैं .  

रोनाल्ड रीगन कहते थे सरकारें भौतिकी के क्रिया-प्रतिक्रिया नियम की तरह होती हैं. सरकार जितनी बड़ी होती जाती है आजादी उतनी ही छोटी होती जाती है.
---