यदि कोई बंदर कंप्यूटर के की बोर्ड को लंबे वक्त तक लगातार मनचाहे ढंग से पीटता रहे तो वह कभी न कभी अक्षरों का ऐसा पैटर्न बना लेगा जो शेक्सपियर की कविता के करीब होगा.
बीसवीं सदी की शुरुआत में फ्रांस के गणितज्ञ जब ‘इनफाइनाइट मंकी थ्योरी’ बना रहे थे (जिसे 2011 में अमेरिकी कंप्यूटर प्रोग्रामर ने वर्चुअल बंदरों की मदद से सही सिद्ध कर दिया) तब उन्हें यह कतई अंदाज नहीं रहा होगा कि 21वीं सदी में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा टैक्स सुधार इस थ्योरी का उदाहरण बन जाएगा.
प्रधानमंत्री का गुड ऐंड सिंपल टैक्स, सरकार और कारोबारियों के लिए इनफाइनाइट मंकी थ्योरी की साधना बन गया है. तीन महीने बाद पहला रिटर्न भरने के तरीकों पर शोध जारी है. आए दिन बदलते नियमों से जीएसटी की गुत्थी और उलझ जाती है.
वन नेशन, वन टेंशन
भारत का सबसे बड़ा टैक्स सुधार गहरी मुश्किल में है जीएसटी खुद बीमार हो गया है और इससे कारोबार में भी बीमारी फैल गई है।
- जीएसटी के सूचना तकनीक नेटवर्क (जीएसटीएन) के बिना जीएसटी लागू होना नामुमकिन है. यह नेटवर्क असफल साबित हो गया है. रिटर्न भरने की भी तारीखें आगे बढ़ा दी गई हैं. इस नेटवर्क के भरोसे लाखों इनवॉयस मिलाने, टैक्स क्रेडिट, माल ले जाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक परमिट देने, केंद्र और राज्य के बीच राजस्व बंटवारे का काम मुश्किल दिख रहा है.
- जीएसटीएन की असफलता की पड़ताल के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति बनानी पड़ गई है. सनद रहे कि इस नेटवर्क की तैयारी को लेकर देश को लगातार गुमराह किया गया. शनिवार को बंगलौर में जीएसटी 'उपचार' समिति की बैठक के बाद सरकार ने स्वीकार किया कि नेटवर्क में समस्यायें हैं जिन्हें दूर करने की कोशिश हो रही है.
- उत्पादों और सेवाओं को विभिन्न दरों में बांटने वाली जीएसटी (फिटमेंट) कमेटी ने पर्याप्त तैयारी, शोध और उद्योगों से संवाद नहीं किया. इसी गफलत के चलते जुलाई के तीसरे सप्ताह में सिगरेट कंपनी आइटीसी का शेयर एक दिन में 13 फीसदी टूट गया यानी निवेशकों को करीब 50,000 करोड़ रुपए का नुक्सान. यह हुआ सिगरेट पर जीएसटी लगाने की गलती से. पहले सिगरेट पर जीएसटी की दर कम रखी गई फिर गलती समझ में आई तो उसे बढ़ा दिया गया. यह पहला मामला नहीं था इसके बाद जीएसटी काउंसिल लगातार उत्पादों और सेवाओं पर टैक्स की दरें बदल रही है.
- नेटवर्क की विफलता और नियमों के फेरबदल से राजस्व संग्रह पर खतरा बढ़ गया है. राज्यों ने केंद्रीय जीएसटी में हिस्सा न मिलने की शिकायत की है. नाराज व्यापारी अदालतों से गुहार लगाने लगे हैं.
विफलता के नतीजे
- ऑनलाइन नेटवर्क की असफलता के कारण नियम पालन और टैक्स चोरी रोकने का मॉडल लडख़ड़ा गया है. अब अधिकांश कारोबार नकद और कच्चे बिल में हो रहा है.
- जटिलता और नेटवर्क की उलझनों के कारण जीएसटी, कारोबारी सहजता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) पर आतंकी हमले की तरह सामने आया है.
- उत्पादन और बिक्री बेहद सुस्त है. जीडीपी में गिरावट गहरी और लंबी हो सकती है.
सहजता ही इलाज है
इसी स्तंभ में हमने लिखा था जीएसटी बेहद जटिल है. 24 से लेकर 36 रिटर्न की शर्तों और पेचीदा नियमों से लंदे फंदे जीएसटी को ऐसे सूचना तकनीक नेटवर्क के हवाले किया गया है जिसका कायदे से परीक्षण भी नहीं हुआ. यह गठजोड़ की विफलता अर्थव्यवस्था के लिए विस्फोटक हो सकती है. अफसोस कि हम गलत साबित नहीं हुए.
· जीएसटी एक ऐसा सुधार है जो तीन माह में ही खुद बीमार हो गया है. इसका ढांचा बदले बिना इसे खड़ा कर पाना अब मुश्किल लगता है.
- जीएसटी को चलाना है तो रिटर्न और तमाम प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर कमी की जरूरत है. सरकार को कारोबारियों पर हमेशा शक करने की आदत छोडऩी होगी. सरकार को यह तय करना होगा कि उसे कितनी सूचना चाहिए. हर छोटी-बड़ी सूचना हासिल करने की जिद हटाकर प्रक्रिया को आसान करना पड़ेगा.
- छोटे और बड़े कारोबारियों के लिए नियम अलग-अलग तय करने नहीं तो गैर जीएसटी कारोबार बढऩे लगेगा या फिर छोटे कारोबार और व्यापार बंद होने की नौबत आ जाएगी.
- कर नियमों में आए दिन बदलाव रोकना होगा ताकि कारोबारी स्थायित्व को लेकर आश्वस्त हो सकें.
याद कीजिए 30 जून की मध्यरात्रि को संसद में हुए जीएसटी उत्सव को. उस जलसे को याद करने पर जीएसटी का ताजा हाल हमें शर्मिंदा करता है. सुधारों की शुरुआत कोई उत्सव नहीं होती, त्योहार तो उनकी सफलता पर मनाया जाता है.
मिल्टन फ्रीडमैन ठीक ही कहते थे: ‘‘सरकारें
नसीहत नहीं लेती, सबक तो सिर्फ जनता को मिलते हैं.’’