एक फरवरी 2018 भारत के लिए एक खास तारीख थी. इसलिए नहीं कि उस दिन बजट आया. वह तो हर साल आता है. यह भारत में विशाल अंतरराज्यीय कारोबार को एक सूत्र में पिरोने का दिन था. इस तारीख को द्वारका से दीमापुर और लेह से कोवलम तक कारोबारी सामान की आवाजाही सभी किस्म के अवरोधों से मुक्त होने वाली थी.
जीएसटी ई वे बिल?
सही पकड़े हैं.
यह जीएसटी का सबसे जरूरी और दूरगामी हिस्सा था. यह वन नेशन, वन सिस्टम की शुरुआत था. बस कंप्यूटर से निकला एक बिल और कहीं भी माल ले जाने की छूट, न कोई परमिट, न चेकपोस्ट! यही वजह थी कि बजट के दिन कारोबारियों की दिलचस्पी वित्त मंत्री के भाषण में नहीं बल्कि ई वे बिल में थी.
एक फरवरी को बजट भाषण और जीएसटी नेटवर्क से ई वे बिल लेने की जद्दोजहद एक साथ शुरू हुई. बजट भाषण खत्म होने तक जीएसटी का नेटवर्क बैठ चुका था. कुछ राज्यों ने इस पर अमल रद्द करने का ऐलान कर दिया. शाम होते-होते टीवी स्टुडियो में जब बजट गूंज रहा था, उसी दौरान जीएसटी के अफसर एक ट्वीट टिकाकर घर को निकल लिए कि तकनीकी दिक्कतों के कारण ई वे बिल का क्रियान्वयन अनिश्चितकाल के लिए टाला जा रहा है.
और इस तरह देश को एक बाजार बनाने यानी जीएसटी का सबसे बड़ा मकसद भी खेत रहा.
शुरुआत के सात महीने बीतते-बीतते, जीएसटी सुधार से चुनौती में तब्दील हो गया है.
- इस बजट में टैक्स की जो मार (कैपिटल गेंस, सीमा शुल्क में बढ़ोतरी, सेस व सरचार्ज) हुई वह जीएसटी का नतीजा है. नेटवर्क की नाकामी से रिटर्न और टैक्स संग्रह का बुरा हाल पहले से था. इस बीच गुजरात चुनाव की चपेट में जीएसटी का ढांचा फेंट दिया गया. 95 फीसदी करदाताओं को रिटर्न भरने से रियायत मिली. नतीजतन पिछले सात माह में जीएसटी से राजस्व बढऩे की उम्मीदें ढह गईं.
- राज्यों को और ज्यादा नुक्सान हुआ. पिछली जुलाई से मार्च तक के लिए केंद्रीय बजट से राज्यों को 60,000 करोड़ रु. की भरपाई होगी और अगले साल 90,000 करोड़ रु. दिए जाएंगे. राजस्व में कमी और क्षतिपूर्ति ने वित्त मंत्री का घाटा नियंत्रण रिकॉर्ड दागदार कर दिया.
- सभी कारोबारियों को करदाता बनाने का मकसद पटरी से उतर गया है. जीएसटीएन की खामी, 95 फीसदी करदाताओं को तिमाही रिटर्न की सुविधा और एक फीसदी टैक्स व तिमाही रिटर्न वाली कंपोजिशन स्कीम के कारण केवल 30 फीसदी करदाता विस्तृत इनवॉयस रिटर्न भर रहे हैं. जीएसटी की गफलत से काफी बड़ा कारोबार टैक्स निगहबानी से बाहर है.
- जीएसटी में पंजीकरण के शुरुआती आंकड़े सरकार के लिए उत्साहवर्धक हैं. करदाताओं की संख्या 50 फीसदी बढ़ी है. छोटे उद्योगों में एक-तिहाई लेन-देन कारोबारी इकाइयों के बीच हो रहा है. इससे कर नियम पालन कराना आसान है. हर राज्य को उसके औद्योगिक कारोबारी परिदृश्य के हिसाब से पंजीकरण मिले हैं. इससे किसी खास राज्य को नुक्सान या फायदे की आशंका खत्म हुई है.
- अलबत्ता इन उपयोगी सूचनाओं के जरिए राजस्व बढऩे की उम्मीद कम है क्योंकि जीएसटी का क्रियान्वयन पटरी से उतर चुका है. ई वे बिल के जरिए देश भर में माल की आवाजाही की मॉनिटरिंग होनी थी जो टैक्स चोरी रोकने के लिए जरूरी है. सात-आठ लाख बिल प्रति दिन जारी करने वाला सिस्टम बनाने के लिए एनआइसी (सरकारी कंप्यूटर एजेंसी) को लगाया गया लेकिन यह कोशिश भी असफल रही.
बजट के बाद अपने साक्षात्कारों में वित्त मंत्री ने कहा कि टैक्स नियमों के पालन में सख्ती के साथ जीएसटी का राजस्व बढ़ेगा. वित्त मंत्रालय का कहना है कि निगरानी बढ़ाकर एक लाख करोड़ रु. टैक्स वसूला जा सकता है. सरकार को जानकारी है कि इस सुधार में रियायतों का कोटा पूरा हो गया है. चुनावी डर के चलते दी गई सुविधाओं और तकनीकी खामियों के कारण टैक्स चोरी हो रही है. राजस्व में गिरावट के कारण जीएसटी में अगले सुधार (पेट्रो उत्पाद, अचल संपत्ति को शामिल करना) जहां के तहां ठहर गए हैं.
जीएसटी को लेकर सरकार की राजनैतिक दुविधा ज्यादा बड़ी है. इसे पटरी पर लाने के लिए इंस्पेक्टर राज की वापसी यानी छोटे व्यापारियों पर सख्ती करनी होगी. गुजरात की जली सरकार चुनावों के साल यह जोखिम तो लेने से रही. इसलिए सीधे और आसानी से उगाहे जाने वाले टैक्स (इनकम टैक्स, सेस और सीमा शुल्क) बढ़ा लिए गए हैं, उपभोक्ता तो टैक्स चुका ही रहे हैं, कारोबारी टैक्स देंगे या नहीं, इसका हिसाब चुनाव देखकर होगा.
जिसका डर था वही हुआ है. भारत का सबसे नया सुधार सिर्फ सात माह में पुराने रेडियो की तरह हो गया, जिसे ठोक-पीट कर किसी तरह चलाया जा रहा है. जीएसटी का सुधारवाद अब इतिहास की बात है.