Showing posts with label india population. Show all posts
Showing posts with label india population. Show all posts

Friday, September 25, 2020

आबादी का अर्ध सत्य

 

तमाम पापड़ बेलने और धक्के खाने के बाद समीर को इस जनवरी में नौकरी मिली थी और अप्रैल में छुट्टी हो गई. लॉकडाउन दौरान व्हाट्सऐप मैसेज पढ़-पढ़कर वह बिल्कुल मान ही बैठा था किबढ़ती आबादी उसकी बेकारी की वजह है. वह तो भला हो उसके एक पुराने टीचर का जिनसे मिले कुछ तथ्य पढ़कर उसे समझ में आया कि जब भी सरकारें बेरोजगारी पर घिरती हैं तो उनके सलाहकार और पैरोकार बढ़ती आबादी का दकियानूसी स्यापा क्यों शुरू कर देते हैं?


चालाक राजनीतिशोर की ताकत से सच समझने की क्षमता तोड़ देती हैं. यह समझ गंवाते ही लोग तथ्य और झूठ का फर्क ही भूल जाते हैं. वे मुसीबतों के लिए खुद को ही कोसने लगते हैं और जिम्मेदारों से सवाल पूछना बंद कर देते हैं. समीर और असंख्य बेरोजगारों के साथ यही हो रहा है. उनके दर्द को आबादी बढ़ने के अर्ध सत्य में लपेटा जा रहा है.


2011 की जनगणना और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के शोध के आधार पर आर्थिक समीक्षा (2018-19) ने जनसंख्या को लेकर ताजे आंकड़े दिए हैं, उसके बाद रोजगार न दे पाने में विफलता पर सरकार के बचाव में दूसरे तर्क गढ़े जाने चाहिए.


क्या सच में भारत की आबादी बढ़ रही है?


नहीं. आबादी की सालाना वृद्धि दर की गणना के फॉर्मूले के आाधार पर भारत में आबादी बढ़ने की दर अब केवल 1.3 फीसद (2011-16) रह गई है जो 1971 से 1981 के बीच में 2.5 फीसद थी. यह रफ्तार अब दक्षिण एशिया (1.2 फीसद) के प्रमुख देशों के आसपास है और निम्न मझोली आय वाले देशों की वृद्धि दर (1.5 फीसद) से कम है (विश्व बैंक). यानी ऊंची आबादी वृद्धि दर (2 से 2.5 फीसद) के दिन पीछे छूट चुके हैं.


आंकड़ों के भीतर उतरने पर आबादी को लेकर हमारी चिंताएं और कम होती जाती हैं. दक्षिण भारत और बंगाल, पंजाब, असम, हिमाचल, महाराष्ट्र, ओडिशा सहित 13 राज्यों यानी करीब आधे भारत में आबादी बढ़ने की दर एक फीसद नीचे आ गई है जो कि यूरोप के लगभग बराबर है.


यहां तक कि जनसंख्या में तेजी बढ़ोतरी के लिए कुख्यात उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान हरियाणा में भी आबादी बढ़ने की रफ्तार में आश्चर्यजनक गिरावट आई है. दस राज्य जो एक फीसद से ज्यादा की आबादी वृद्धि दर दर्ज कर रहे हैं वहां भी वृद्धि दर दो फीसद से काफी नीचे है.


भारत में आबादी रफ्तार रोकने का यह चमत्कार हुआ कैसे? 1971 से 2016 के बीच भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट या प्रजनन दर (मातृत्व आयु के दौरान प्रति महिला बच्चों का जन्म या पैदा होने की संभावना) घटकर आधी (5.3 से 2.3) रह गई है. इसका यह नतीजा हुआ कि भारत के करीब 13 राज्यों में अब रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी दर 2.1 फीसद से नीचे आ गई है. यह बेहद महत्वपूर्ण पैमाना है जो बताता है कि अगली पीढ़ी को लाने के लिए प्रति महिला कम से कम 2.1 बच्चे होना अनिवार्य है. दक्षिण और पश्चिम के राज्यों में यह दर अब 1.4 से 1.6 के बीच आ गई है यानी दो से कम बच्चे सबसे अच्छे माने जा चुके हैं.


फर्टिलिटी रेट में कमी हमेशा आय बढ़ने के साथ होती है लेकिन भारत ने गरीबी और कम आय के बीच यह चमत्कार किया है. यही वजह है 2031 तक भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर घटकर एक फीसद आ जाने का आकलन है जो 2041 तक 0.5 फीसद रह जाएगी. यानी जनसंख्या वृद्धि के मामले में हम विकसित देशों बराबर खड़े होंगे.


आबादी बढ़ने का अर्ध सत्य बुरी तरह हार चुकाा हैं. हां, रोजगारों पर बहस और तेज होनी चाहिए क्योंकि बीते दो दशक के बदलावों के बाद आबादी में आयु वर्गों का जो औसत बदलेगा उससे... 

 

2021 से 31 के बीच करीब 97 करोड़ और इसके अगले दस वर्षों में लगभग 42 करोड़ लोग (श्रमजीवी आबादी) काम करने की ऊर्जा से भरपूर होंगे

इनके लिए अगले दो दशकों में प्रति वर्ष क्रमश: एक करोड़ और 50 लाख रोजगार चाहिए

मौजूदा प्रजनन दर पर 2041 तक युवा आबादी का अनुपात अपने चरम पर पहुंच चुका होगा. इसके बाद भारत बूढ़ा हो जाएगा. दक्षिण के राज्यों में बुढ़ापा 2030 से ही शुरू हो जाएगा

कहां हैं वे लोग जो भारत की युवा आबादी को उसकी सबसे बड़ी ताकत या संभावनाओं का खजाना कह रहे थे. कहीं वे ही तो आबादी नियंत्रण कानून की जरूरत का स्यापा तो नहीं कर रहे!

दरअसल, जिस मौके का इंतजार था वह अब आ पहुंचा है. इस युवा आबादी के अलावा भारत के पास और कुछ नहीं है. भविष्य की खपत, ग्रोथ, निवेश, बचत सब इस पर निर्भर है. भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सुपर पावर या विश्व गुरु जो भी बनना है उसके लिए 15 साल का वक्त है और यही युवा उसका माध्यम हैं. सियासत का अधिकांश वक्त, इसी युवा को भरमाने, लठियाने, धमकाने, ठगने और लड़ाने में जाता है.

Saturday, October 19, 2019

वक्त की करवट


 ‘‘भविष्य हमेशा जल्दी आ जाता है और वह भी गलत क्रम में यानी कि भविष्य उस तरह कभी नहीं आता जैसे हम चाहते हैं.’’

मशहूर फ्यूचरिस्ट यानी भविष्य विज्ञानी (भविष्य वक्ता नहींएल्विन टॉफलर ने यह बात उन सभी समाजों के लिए कही थी जो यह समझते हैं कि वक्त उनकी मुट्ठी में हैभारतीय समाज की राजनीति बदले या नहीं लेकिन भारत के लिए उसके सबसे बड़े संसाधन या अवसर गंवाने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है.

भारत बुढ़ाते हुए समाज की तरफ यात्रा प्रारंभ कर चुका हैअगले दस साल में यानी 2030 से यह रफ्तार तेज हो जाएगी.

भारत की युवा आबादी अगले एक दशक में घटने लगेगीविभिन्न राज्यों में इस संक्रमण की गति अलग-अलग होगी लेकिन इस फायदे के दिन अब गिने-चुने रह गए हैंसनद रहे कि पिछले दो-तीन दशकों में भारत की तरक्की का आधार यही ताकत रही हैइसी ने भारत को युवा कामगार और खपत करने वाला वर्ग दिया है.

2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण ने बताया है किः
  •       भारत की जनसंख्या विकास दर घटकर 1.3 फीसद (2011-16) पर आ चुकी है जो सत्तर-अस्सी के दशकों में 2.5 फीसद थी  
  •    बुढ़ाती जनसंख्या के पहले बड़े लक्षण दक्षिण के राज्योंहिमाचल प्रदेशपंजाबपश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में दिखने लगे हैंअगर बाहर से लोग वहां नहीं बसे तो 2030 के बाद तमिलनाडु में जनसंख्या वृद्धि दर घटने लगेगीआंध्र प्रदेश में यह शून्य के करीब होगीअगले दो दशकों में उत्तर प्रदेशराजस्थानमध्य प्रदेश और बिहार में आबादी बढ़ने की दर आधी रह जाएगी
  •    टोटल फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर में तेज गिरावट के कारण भारत में 0-19 साल के आयु वर्ग की आबादी सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैदेश में प्रजनन दर अगले एक दशक में घटकर 1 फीसद और 2031-41 के बीच आधा फीसद रह जाएगीजो आज यूरोप में जर्मनी और फ्रांस की जनसंख्या दर के लगभग बराबर होगी
  •  2041 तक 0-19 आयु वर्ग के लोग कुल आबादी में केवल 25 फीसद (2011 में 41 फीसदीरह जाएंगेतब तक भारत की युवा आबादी का अनुपात अपने चरम पर पहुंच चुका होगा क्योंकि कार्यशील आयु (20 से 59 वर्षवाले लोग आबादी का करीब 60 फीसद होंगे
  •    आर्थिक समीक्षा बताती है कि 2021 से 2031 के बीच भारत की कामगार आबादी हर साल 97 लाख लोगों की दर से बढ़ेगी जबकि अगले एक दशक में यह हर साल 42 लाख सालाना की दर से कम होने लगेगी 

युवा आबादी की उपलब्धि खत्म होने को बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिएएनएसएसओ के चर्चित सर्वेक्षण (2018 में 6.1 फीसद की दर से बढ़ती बेकारीमें चौंकाने वाले कई तथ्य हैं:
  • ·       शहरों में बेकारी दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा यानी 7.8 फीसद हैविसंगति यह कि शहरों में ही रोजगार बनने की उम्मीद है
  •     2011 से 2018 के बीच खेती में स्वरोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या बढ़ गईलक्ष्य यह था कि शहरों और उद्योगों की मदद से खेती के छोटे से आधार पर रोजगार देने का बोझ कम होगायानी कि शहरों से गांवों की तरफ पलायन हुआ है बावजूद इसके कि गांवों में मजदूरी की दर पिछले तीन साल में तेजी से गिरी है
  •     कामगारों में अशिक्षितों और अल्पशिक्षितों (प्राथमिक से कमकी संख्या खासी तेजी से घट रही हैयानी कि रोजगार बाजार में पढ़े-लिखे कामगार बढ़ रहे हैं जिन्हें बेहतर मौकों की तलाश है
  •  लवीश भंडारी और अमरेश दुबे का एक अध्ययन बताता है कि 2004 से 2018 के बीच गैर अनुबंध रोजगारों का हिस्सा 18.1 फीसद से 31.8 फीसद हो गयायानी कि रोजगार असुरक्षा तेजी से बढ़ी हैलगभग 68.4 फीसद कामगार अभी असंगठित क्षेत्र में हैं
  •      सबसे ज्यादा चिंता इस बात पर होनी चाहिए कि देश में करीब लगभग आधे (40-45 फीसदकामगारों की मासिक पगार 10 से 12,000 रुपए के बीच हैउनके पास भविष्य की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं है

भारतीय जनसांख्यिकी में बुढ़ापे की शुरुआत ठीक उस समय हो रही है जब हम एक ढांचागत मंदी की चपेट में हैंबेरोजगारों की बड़ी फौज बाजार में खड़ी हैभारत के पास अपने अधिकांश बुजर्गों के लिए वित्तीय सुरक्षा (पेंशनतो दूरसामान्य चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं हैं.

सात फीसद की विकास दर के बावजूद रिकॉर्ड बेकारी ने भारत की बचतों को प्रभावित किया हैदेश की बचत दर जीडीपी के अनुपात में 20 साल के न्यूनतम स्तर (20 फीसदपर हैयानी भारत की बड़ी आबादी इससे पहले कि कमा या बचा पातीउसे बुढ़ापा घेर लेगा

भारत बहुत कम समय में बहुत बड़े बदलाव (टॉफलर का ‘फ्यूचर शॉक’) की दहलीज पर पहुंच गया हैकुछ राज्यों के पास दस साल भी नहीं बचे हैंहमें बहुत तेज ग्रोथ चाहिए अन्यथा दो दशक में भारत निम्न आय वाली आबादी से बुजुर्ग आबादी वाला देश बन जाएगा और इस आबादी की जिंदगी बहुत मुश्किल होने वाली है.