इस बार बहुत से लोगों ने 69-70 रुपये के डॉलर पर दांव लगाकर दीपावली का शगुन किया है।
पटाखों के बारे में एक नई खोज यह है इनका प्रचलन
सिर्फ त्योहारों की दुनिया में ही नहीं, बाजारों की दुनिया में भी होता है। वित्तीय
बाजारों में भी जोरदार आवाज और चमक वाली आतिशबाजियां होती हैं जिनके बाद सब धुंआ
धुंआ रह जाता है। दीवाली के दिये जलने से पहले शेयर बाजारों में ऐसी ही
पटाखेबाजारी उतरी थी जिस पीछे न कहीं ठोस ठोस आर्थिक कारण थे तेजी बनने की तर्कसंगत
उम्मीदें। इसलिए त्योहारों के बाद जैसे मन जीवन को
एक अनमनापन और उदासी घेर लेती है ठीक उसी तरह शेयरों
में तेजी की गैस चुकते ही वित्तीय बाजार पुरानी चिंताओं से गुंथ गए हैं। रुपये की
सेहत का सवाल नई ताकत के साथ वापस लौट आया है। विदेशी निवेशकों की मेहरबानी से डॉलरों की आमद के
बावजूद रुपये में गिरावट शुरु हो गई है। विदेशी मु्द्रा बाजार में तेज उतार-चढ़ाव का इशारा करने वाले सूचकांक मई के
मुकाबले ज्यादा सक्रिय हैं क्यों कि रुपये को ढहने से बचाने वाले सहारे हटाये जा
रहे हैं। इधर अमेरिकी फेड रिजर्व के प्रोत्साहन पैकेज की वापसी