घनघोर मंदी के
बीच शेयर बाजार की छलांग देखने के बाद एक नवोदित ब्रोकर ने शेयरों-शेयरों का पानी
पिए अपने तपे तपाए उस्ताद के केबिन में जाकर खिलखिलाते हुए कहा, ''सर, मजा आ गया, आज तो निफ्टी
रॉकेट हुआ जा रहा है.'' उम्रदराज ब्रोकर
ने कंप्यूटर से निगाहें हटाकर कहा, ''लकी फूल हो तुम.'' यानी किस्मती मूर्ख, जो मौके के सहारे मीर (फूल्ड बाई रैंडमनेस) बन जाते हैं और
अपनी कामयाबी को तर्कसंगत ज्ञान मान बैठते हैं. सतर्क होकर ट्रेड करो, फंडामेंटल्स और
टेक्निकल्स की मर्यादा मत तोड़ना.
यकीनन
अर्थव्यवस्था में जितने नकारात्मक आंकडे़ हो सकते हैं वे सब एक साथ बरस रहे हों
और अनिश्चितता की ब्रह्मपुत्र कारोबारों को अपनी बाढ़ में डुबा रही हो तब शेयर
बाजार में जोखिमों का भंवर तैयार होने के लिए यह सबसे माकूल मौका है. बाजार हमेशा
वास्तविकताओं को कंबल ओढ़ाकर ख्याली तेजी में लग जाता है इसलिए अगर आप बहुत उत्साही
हैं तो भी कुछ ताजा तथ्यों को समझना जरूरी है ताकि कम से कम आप अपनी गाढ़ी बचत न
जला बैठें.
संयोग है कि
बाजार के रंगों को परखने वाले ही नहीं बल्कि रिजर्व बैंक ने भी (फाइनेंशियल
स्टेबिलिटी रिपोर्ट 2020) अधिकृत तौर पर इस बात पर बेचैनी जाहिर की है कि आखिर
बीते एक माह में सेंसेक्स 3000 अंक कैसे कूद गया जबकि आने वाला हर आकलन यह बता रहा
है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस पूरे साल में शून्य से 10 फीसद नीचे तक
टूट सकती है.
वित्तीय बाजार
अक्सर अति आशावाद का शिकार हो कर मौके के मीरी को हकीकत मान लेते हैं. कुछ तथ्य
हमें सतर्क करते हैः
• आमतौर पर बॉन्ड, गोल्ड और शेयर
मार्केट एक साथ नहीं दौड़ते. शेयरों में तेजी के वक्त पैसा बॉन्ड बाजार से निकल कर
शेयरों में जाता है क्योंकि तत्काल फायदे की उम्मीद होती है लेकिन इस समय आर्थिक
अनिश्चतताओं के बीच जब पूंजी बॉन्ड बाजार में लग रही है. (बॉन्ड की यील्ड कम है
यानी ग्राहक खूब हैं) संकट में चमकने वाला सोना भी बढ़ रहा है तो फिर शेयरों में
पैसा कौन लगा रहा है?
• लॉकडाउन के बाद
कंपनियों के नतीजों की हालत देखते ही बनती है. कभी भी घाटा न उठाने वाली तेल
कंपनियां तक एक तिमाही में ४० फीसद का नुक्सान दर्ज कर रही हैं. दरअसल, बाजार में
सूचीबद्ध करीब 1,640 प्रमुख
कंपनियों (बैंक व एनबीएफसी के अलावा) के मुनाफे बीते बरस की चौथी तिमाही में करीब
10.2 फीसद गिरे. यह गिरावट कॉर्पोरेट टैक्स में कमी के बावजूद हुई. नए वित्त वर्ष
(2020-21) की दो तिमाही पूरी तरह डूबने के बाद बाजार में बड़ी सतर्कता जरूरी है.
• मंदी के कारण
कंपनियों के मुनाफे ही नहीं गिरे बल्कि उनके कर्ज देनदारी की भी थम गई. कंपनियों
ने बड़े पैमाने कर्ज भुगतान टालने का विकल्प चुना. इससे उनकी साख पर गहरा असर पड़ा
है. रिजर्व बैंक ने कंपनियों के खातों को परख कर बताया है कि ज्यादातर कर्जदारों
की साख टूट (डबल ए से नीचे) रही है. इसके बाद भी किसका पैसा बाजार में लग रहा है.
• रिलायंस के बाद
भारतीय शेयर बाजारों की जान भारत के बैंकिंग उद्योग में बसती है. आत्मनिर्भरता के
तमाम मृदंग वादन के बावजूद बैंकों की कर्ज देने की रफ्तार अब तक केवल तीन फीसद रही
है जो पिछले दशकों की न्यूनतम है. कोविड लॉकडाउन के बाद कर्ज का भुगतान टालने से
बैंकों के पैर लड़खड़ा गए हैं. वहां संकट के बल्ब जल रहे हैं.
• जून में इक्विटी
म्युचुअल फंड 95 फीसद कम हुआ यानी कि छोटे निवेशकों की पूंजी भी बाजार से निकल रही
है. डेट फंड में तो संकट पहले से ही है.
• अर्थव्यवस्था में
मांग की वापसी के दूर-दूर तक कोई सबूत नहीं हैं और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में
गहरी अनिश्चतिता है. इसलिए रिजर्व बैंक को भी यह मंदी लंबी चलने का खतरा नजर आ
रहा है.
इस समय भारतीय
बाजार में तेजी चुनिंदा शेयरों में सीमित है, जो छोटे निवेशकों को भरमाए रखने के लिए है. रिजर्व को डर
है यह बाजी पलट सकती है. सनद रहे कि जानवर बनना आदमी का पुराना शौक है. इसीलिए
वित्तीय बाजार दुनिया की सबसे दिलचस्प जगह हैं. यहां पूरी भीड़ का दिमाग शहद वाली
मक्खियों की तरह एक तरफ दौड़ पड़ता (स्वार्म इंटेलिजेंस) है, यानी कभी पालकी
को उठाने की होड़ तो कभी पटकने की प्रतिस्पर्धा.
बाजार में रोज
कुछ लकी फूल्स होते हैं बकौल नसीम तालेब (किताब- फूल्ड बाइ रैंडमनेस) इनको
होने वाले 99 फीसद मुनाफे केवल मौके का नतीजा हो सकते हैं. लेकिन वे कारोबारी इसे
अक्सर अपनी सफल रणनीति समझ लेते हैं और कइयों को चिपका देते हैं यानी उनकी नकल
करते हुए असंख्य लोग मौके के मीर बनने की कोशिश करते हैं. इसलिए सतर्क रहिए
क्योंकि इस मंदी के बीच, आप अपनी गाढ़ी बचत
के साथ एक बार लकी (भाग्यशाली) और सौ बार (फूल) ठगे जाना झेल नहीं पाएंगे.