विशेष राज्य की श्रेणी के लिए बेताब राज्य सरकारें अपनी दयनीयता के पोस्टर बांटना शुरु करेंगी और ज्यादा संसाधनों के लिए केंद्र सरकार के राजनीतिक अहंकार को सहलायेंगी।
भारत
की आर्थिक राजनीति में एक नए दकियानूसी दौर का आगाज हो गया है। केंद्र सरकार
पिछड़े राज्य चुनने का पैमाना बदलने वाली है यानी कि राज्यों के बीच खुद को
दूसरे से ज्यादा पिछड़ा और दरिद्र साबित करने की प्रतिस्पर्धा शुरु होने वाली
है। विशेष राज्य की श्रेणी के लिए बेताब राज्य सरकारें अब अपनी दयनीयता के पोस्टर
बांटना शुरु कर करेंगी और ज्यादा संसाधनों के लिए केंद्र सरकार के राजनीतिक
अहंकार को सहलायेंगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अभियान शुरु हो गया है, उड़ीसा
व बंगाल को इस जुलूस में बुलाया जा रहा है। हकीकत यह है कि केंद्र से राज्यों को
संसाधन देने का ढांचा पिछले एक दशक में इस कदर बदला है कि केंद्र अब पिछडेपन का
तमगा तो दे सकता है लेकिन ज्यादा संसाधन नहीं। उत्तर पूर्व की हालत, चार
दशक पुरानी विशेष राज्य प्रणाली की समग्र असफलता का दस्तावेजी प्रमाण हैं। इसलिए
नए गठबंधन जुगाड़ने का यह कांग्रेसी पैंतरा अंतत: राज्यों की मोहताजी और विभाजक
सियासत की नई नुमाइश शुरु करने वाला है।
भारत
में 1969 तक राज्यों के बीच आम व खास कोई फर्क नहीं था। पांचवे वित्त आयोग ने
जटिल भौगोलिक स्थिति, कम
व बिखरी जनसंख्या, सीमित
राजस्व और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थिति को देखते हुए