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Saturday, July 2, 2022

अच्‍छी नौकर‍ियों के बुरे द‍िन


 

 

स्‍टार्ट अप में फ‍िर छंटनी शुरु हो गई थी. फरवरी से मई के बीच कार 24, वेदंतु, अनअकाडमी, व्‍हाइट हैट जून‍ियर, मीशो, ओ के क्रेड‍िट सहित करीब आधा दर्जन स्‍टार्ट अप ने 8500 कर्मचारी निकाल दिये

यह सुर्ख‍ियां पढ़कर श्रुति का दिल बैठने लगा. वह तो अगले यूनीकॉर्न में नौकरी का आवेदन करने वाली थी. अच्‍छी नौकरियों के अकाल के बीच स्‍टार्ट अप नखलिस्‍तान की तरह उभरे थे. अगर भारत में हर महीने के एक यूनीकॉर्न बन रहा है तो  नौकरियां क्‍यों जा रही हैं? सरकार कह रही है कि भारत में स्‍टार्ट अप क्रांति हो रही है  तो रिजर्व बैंक गवर्नर स्‍टार्ट अप में जोखिम को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, शेयर बाजार में स्‍टार्ट अप शेयरों की बुरी गत बनी है. सेबी इन पर बड़ी सख्‍ती कर रहा है.

यदि आपको यह लगता है कि स्‍टार्ट अप केवल मुट्ठी भर नौकर‍ियों की बात है यह तथ्‍य समझना जरुरी है कि भारत में अच्‍छी नौकर‍ियां हैं ही क‍ितनी?  श्रम  मंत्रालय का ताजा तिमाही रोजगार सर्वे (अक्‍टूबर दिसंबर 2021) बताता है कि गैर सरकारी क्षेत्र में फॉर्मल या औपचार‍िक नौकरियां केवल 3.14 करोड़ हैं. श्रम मंत्रालय के नियमों के मुताबिक दस से अध‍िक कामगारों वाले प्रतिष्‍ठान संगठित, स्‍थायी या औपचारिक नौकरियों में गिने जाते हैं बाकी रोजगार असंगठ‍ित और अस्‍थायी हैं.

वित्‍त आयोग, संसद को दी गई जानकारी और आर्थ‍िक सर्वेक्षण 2018 के आंकड़ो के अनुसार केंद्र (सार्वहजनिक कंपनियों सहित), राज्‍य और सुरक्षा बलों को  मिलाकर करीब कुल संगठ‍ित क्षेत्र की  नौकर‍ियां (निजी व सरकारी) 5.5 से छह करोड़ को बीच हैं. यानी कि कुल  48 करोड़ की कामगार आबादी यानी लेबर फोर्स (सीएमआईई अप्रैल 2022) के लिए चुटकी भर रोजगार.

क्‍या हुआ स्‍टार्ट अप को

महंगे होते कर्ज के साथ स्‍टार्ट अप निवेश यानी वेंचर कैपिटल और प्राइवेंट फंड‍िंग घट रही है क्रंच बेस की रिपोर्ट बताती है कि मई तक पूरी दुनिया में  स्‍टार्ट अप में निवेश सालाना आधार पर 20 फीसदी और मासिक आधार पर 14 फीसदी गिरा है. सबसे तेज ग‍िरावट स्‍टार्ट अप के लेट स्‍टेज और टेक्‍नॉलॉजी ग्रोथ वर्ग में आई है. यानी चलते हुए स्‍टार्ट अप को पूंजी नहीं मिल रही है. सीड स्‍टेज यानी शुरुआती स्‍तर पर निवेश अभी बना हुआ है.

2021 में भारत के स्‍टार्ट अप 38.5 अरब डॉलर का वेंचर कैपिटल निवेश आया था. सीबी इनसाइट का आंकड़ा बताता है कि भारत के स्‍टार्ट अप में वेंचर फंडिंग इस साल की दूसरी ति‍माही में अब तक केवल 3.6 अरब डॉलर का निवेश आया जो जनवरी से मार्च के दौरान आए निवेश  का आधा और बीते बरस की इसी अवध‍ि करीब एक तिहाई है.

कई स्‍टार्ट अप फंडि‍ंग में देरी का सामना कर रहे हैं. अगर पैसा मिलता भी है तो वैल्‍यूएशन से समझौता करना होगा. पूंजी की कमी के कारण स्‍टार्ट अप अध‍िग्रहण तेज हुए हैं. फिनट्रैकर के अनुसार 2021 में 250 से अध‍िक स्‍टार्ट अप अध‍िग्रहण पर 9.4 अरब डॉलर खर्च हुए. सबसे बडा हिस्‍सा ई कॉमर्स, एडुटेक, फिनटेक और हेल्‍थटेक स्‍टार्ट अप का था.

अच्‍छी नौकर‍ियों के बुरे दिन

स्‍टार्ट अप में नौकर‍ियां जाना गंभीर है बकौल श्रम मंत्रालय भारत में मैन्‍युफैक्‍चर‍िंग, भवन निर्माण, व्‍यापार, परिवहन, श‍िक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, होटल रेस्‍टोरेंट, सूचना तकनीक और वित्‍तीय सेवायें यानी केवल कुल नौ उद्योग या सेवाओं में अधिकांश स्‍थायी या अच्‍छी नौकर‍ियां मिलती हैं

इन नौकरियों के बाजार की हकीकत डरावनी है. बैंक ऑफ बड़ोदा के अर्थशास्‍त्र‍ियों ने भारत में बीते पांच छह (2016-21) के दौरान  27 प्रमुख उद्योगों की करीब 2019 शीर्ष कंपनियों बैलेंस शीट में कर्मचारी भर्ती और खर्च के आंकडों का व‍िश्‍लेषण किया है. ताक‍ि भारत में अच्‍छे रोजगारों की हकीकत पता चल सके.

-         27 उद्योगों की दो हजार से अध‍िक कंपन‍ियों में  मार्च 2016 में कर्मचारियों की संखया 54.5 लाख थी जो मार्च 2021 में बढ़कर 59.8 लाख हो गई. यह बढ़ोत्‍तरी केवल 1.9% फीसदी थी यानी इस दौरान जीडीपी की सालाना विकास दर औसत 3.5 से कम.  कोविड के दौरान छंटनी को निकालने के बाद भी रोजगार बढ़ने की दर केवल 2.5 फीसदी नजर आती है जब कि कोविड पूर्व तक पांच वर्ष में जीडीपी दर 6 फीसदी के आसपास रही है

 

 -         27 उद्योगों में केवल नौ उद्योगों या सेवाओं ने  औसत  वृद्ध‍ि दर (1.9 फीसदी) से से बेहतर रोजगार दर हास‍िल की.  सूचना तकनीक, बैंकिंग व फाइनेंस, रियल इस्‍टेट और हेल्‍थकेयर में रोजगार बढ़े लेक‍िन जीडीपी की रफ्तार से कम.

-         कोविड के कारण सबसे ज्‍यादा रोजगार  शिक्षा, होटल और रिटेल में खत्‍म हुए. 

-         बीते पांच साल में प्रति कर्मचारी वेतन में औसत सालाना केवल 5.7 फीसदी की बढ़त हुई है. जो महंगाई की दर से कम है.

नई उम्‍मीद का सूखना 

संगठित रोजगारों के सिकुड़ते बाजार में स्‍टार्ट अप  छोटी सी उम्‍मीद बनकर उभरे थे.

इसी मार्च में संसद को बताया गया था कि देश में करीब 66000 स्‍टार्ट अप ने 2014 से मार्च 2022 तक करीब सात लाख रोजगार तैयार किये. इनमें से कई  रोजगार तो कोविड के दौरान बंद हुए कारोबारों के साथ खत्‍म हो गए.

बचे हुए स्‍टार्ट अप नई पूंजी की मुश्‍क‍िल में हैं. ई कॉमर्स,एडुटेक, ईरिटेल  जैसे स्‍टार्ट अपन जिनके बिजनेस मॉडल उपभोक्‍ता खपत पर आधारित थे जिसमें तेज बढ़त नहीं हुई. बदलते नियम और महंगा कर्ज फिनटेक डि‍ज‍िटल लेंड‍िंग कंपन‍ियों पर भारी पड़ रहे  हैं

सरकारी रोजगारों की बहस ध्‍यान बंटाने वाली है. सरकारी रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार ( 2014-15 से से 2020-21 3.3 से 3.1 मिल‍ियन) और सरकारी उपक्रमों  ( 2017-18 -2020-21 1.08 से 0.86 मिल‍ियन) में  नौकर‍ियां घट  रही हैं.    दरअसल अच्‍छी नौकरियों  के अवसर चुनिंदा उद्योग या सेवाओं तक सीम‍ित हैं. 2016 से 2020 तक कंपनि‍यों के मुनाफे बढ़ने की रफ्तार छह फीसदी रही है. खूब टैक्‍स रियायतें, सस्‍ता कर्ज मिला लेक‍िन रोजगार नहीं बढे

नई नौकर‍ियां बाजार से आएंगे सरकार के खजाने से नहीं. इस सच को  समझने में जितनी देरी होगी बेरोज़गारों का मोहभंग उतना ही बढ़ता जाएगा.

 

 

 

Saturday, July 24, 2021

पर्दा जो उठ गया तो...

 


 दुनिया के लोग जब उस ताकत के बारे में जानना चाहते थे जो केवल सरकारों के लिए सुरक्षित सैन्य जासूसी वाला कंप्यूटर प्रोग्राम खरीदकर नेताओं, पत्रकारों, अफसरों की जासूसी कर रही है तब सरकार संसद मेंनिजी सूचनाओं की गोपनीयता के लिए कानून का मसौदा पेश करने की तैयारी में थी. इसी तरह जब जोमाटो (फूड डिलिवरी स्टार्ट-अप) के पब्लिक इश्यू की बधाई बज रही थी तब डिजिटल कारोबार में एकाधिकार खत्म करने पर बनी समिति अपनी पहली बैठक कर रही थी.

यह गुजरते दौर के तात्कालिक अंतरविरोध ही नहीं हैं. इनमें छिपे बिंदुओं को मिलाने पर आने वाली दुनिया की सबसे बड़ी उलझन का नक्शा उभरता है जो जिंदगी और कई कारोबारों का पूरा ढांचा ही बदल देंगी. अब एक तरफ होगी निजताओं को बचाने की जद्दोजहद, जो जासूसियों की धुंध उठने से पहले ही शुरू हो चुकी थी और दूसरी तरफ होंगे डिजिटल इकोनॉमी के नए अमीर, जो हमारी निजता यानी व्यक्तिगत सूचनाओं का ही धंधा कर रहे हैं और जिनमें अरबों डॉलर की रकम लगी है.

इन उलटबांसियों के सुलझाने से पहले एक बार चीन की तरफ घूम कर आते हैं.

दीदी को आप चीन की उबर मान सकते हैं. मोबाइल ऐप आधारित, यह टैक्सी कंपनी चीन के 90 फीसद बाजार पर काबिज है. दीदी ने करीब 4 अरब डॉलर जुटाकर, इसी जून में अमेरिकी शेयर बाजार में शानदार आगाज किया. शुरुआत को दो दिन ही बीते थे, कंपनी का बाजार मूल्य (मार्केट कैपिटलाइजेशन) 100 अरब डॉलर की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक चीन की सरकार ने दीदी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी. कंपनी पर चीन के लोगों की निजी सूचनाएं  चुराने का आरोप लगा है. वहां के ऐप स्टोर से दीदी को हटा दिया गया.

चीन की सरकार जैक मा वाले अलीबाबा समूह की कंपनी ऐंट फाइनेंशियल पर चाबुक चला चुकी है. ऐंट फाइनेंशियल यानी अमेजन और बजाज फाइनेंस एक साथ. इसका पब्लिक इश्यू भी फंस गया. चीन में निजता का क्या मतलब है, इस पर मीम्स बनाए जा सकते हैं लेकिन बीजिंग अपने डिजिटल दिग्गजों के पर कतर रहा है.

लगे हाथ अमेरिका में झांक लेना भी ठीक रहेगा. जुलाई के पहले हफ्ते में बाइडेन साहब ने मोनोपली रोकने का अभूतपूर्व आदेश पारित किया. करीब 72 प्रावधानों से लैस इस आदेश से बड़ी टेक कंपनियों (गूगल, फेसबुक, अमेजन) के एकाधिकारों पर निर्णायक कार्रवाई शुरू होगी. निजी सूचनाओं के बेजा कारोबारी इस्तेमाल को लेकर टेक दिग्गज (गूगल, फेसबुक, अमेजन) पर ऐंटी ट्रस्ट कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो चुकी है.

चीन और अमेरिका, दोनों ने ऐलान कर दिया है कि उसकी डिजिटल कंपनियां कितनी भी नामी-गिरामी क्यों हों लेकिन ग्राहकों की सूचना (डेटा) आधारित एकाधिकार चलने नहीं दिए जाएंगे.

भारत में अगर कोई स्टार्ट-अप क्रांति की थाप पर नाच रहा है तो वह गफलत में है. बदलाव भारत में भी शुरू हो चुका है. डिजिटल क्रांति के भविष्य को इनकी रोशनी में देखना जरूरी है ताकि आपकी उंगलियां जल जाएं.

■ डिजिटल एकाधिकारों को तोडऩे के रास्ते वाली समिति काम शुरू कर चुकी है. इसे कॉमर्स के लिए सूचनाओं का ओपन नेटवर्क बनाना है. यह बन जाने के बाद पेटीएम, जोमाटो जैसों की बढ़त का क्या होगा जो केवल हमारी आदतों-व्यवहारों की सूचनाओं पर धंधा कर रहे हैं?

■  कॉमर्स के नए नियम यह निर्धारित करेंगे कि कंपनियां माल बनाने से लेकर पहुंचाने तक पूरा (जैसे जिओ मार्ट या अमेजन की गारमेंट फैक्ट्री या जोमाटो का रेस्तरां) धंधा कब्जा लें. स्टार्ट-अप कंपनियां कारोबार फैलाने के लिए प्रतिस्पर्धा या सहायक कारोबारों को निगल कर आगे बढ़ी हैं. नए नियमों के तहत यह मुश्किल हो रहा है.

■ सरकारों को अपनी जनता की जासूसी कितनी भी पसंद हो लेकिन लोग अब इसे स्वीकार नहीं करेंगे. निजता की सुरक्षा नई आजादी (सुप्रीम कोर्ट का निर्णय) है, जो एक ग्लोबल मुहिम में बदल चुकी है. निजता का धंधा करने वाली कंपनियां भी वैश्विक हैं इसलिए उन्हें सभी बाजारों में एक जैसा आचरण करना होगा. भारत सरकार को भी आखिरनिजी सूचनाओं की गोपनीयता (डेटा प्रोटेक्शन) का कानून लाना पड़ रहा है.

डिजिटल सेवाओं कॉमर्स एकाधिकारों पर रोक और वृहत डिजिटल निजता सुरक्षित करने के कानून न्यू इकोनॉमी की चूलें हिलाने वाले हैं. इस अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा तो हमारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, खरीदने-बेचने, तलाशने-मिटाने, सुनने-कहने की खरबों की सूचनाओं पर केंद्रित है. इन्हीं को बेचकर तो अमेजन, गूगल, जोमाटो, पेटीएम, फेसबुक हमें उस लोक में ले जाते हैं जहां सेवा तो मुफ्त है लेकिन हम बेचे जा रहे हैं.

अरबों लोगों की निजताएं टिकेंगी या निजी सूचनाओं का व्यापार! अगर कंपनियों की चली तो हम पूरी तरह उधड़ जाएंगे लेकिन लोग अगर निजताओं पर अड़े तो न्यू इकोनॉमी के तौर-तरीके पूरी तरह बदल जाएंगे.

राजनैतिक और कारोबारी दुनिया की सबसे बड़ी जद्दोजहद शुरू हो रही है. दम साध कर देखिए, इसमें रोमांच की पूरी गारंटी है.