नाइट श्यामलन की मास्टर पीस फिल्म सिक्थ सेंस
(1999) एक बच्चे की कहानी है जिसे मरे हुए लोगों के प्रेत दिखते हैं. मशहूर
अभिनेता ब्रूस विलिस इसमें मनोचिकित्सक बने हैं जो इस बच्चे का इलाज करता है
दर्शकों को अंत में पता चलता है कि मनोवैज्ञानिक डॉक्टर खुद में एक प्रेत है जो
मर चुका है और उसे खुद इसका पता नहीं है. फिल्म के एंटी क्लाइमेक्स
ने उस वक्त
सनसनी फैला दी थी
सुप्रीम
कोर्ट के ताजे फैसले से जीएसटी की कहानी में सनसनीखेज मोड आ गया है जो जीएसटी काउंसिल जो केंद्र राज्य संबंधों में ताकत की
नई पहचान थी, सुप्रीम कोर्ट ने उसके अधिकारों सीमित
करते हुए राज्यों को नई ताकत दे दी है. अब एक तरफ राज्यों पर पेट्रोल डीजल पर
वैट घटाकर महंगाई कम करने दबाव है दूसरी
तरफ राज्य सरकारें अदालत
से मिली नई ताकत के दम पर अपनी तरह से टैक्स लगाने की
जुगत में हैं क्यों कि जून के बाद राज्य कों केंद्र से मिलने वाला जीएसटी
हर्जाना बंद हो जाएगा
2017 में जब भारत के तमाम राज्य टैक्स लगाने के
अधिकारों को छोड़कर जीएसटी पर सहमत हो रहे थे, तब यह सवाल खुलकर बहस में नहीं आया अधिकांश राज्य,
तो औद्योगिक उत्पादों और सेवाओं उपभोक्ता हैं,
उत्पादक राज्यों की संख्या सीमित हैं. तो
इनके बीच एकजुटता तक कब तक चलेगी. महाराष्ट्र और बिहार इस टैक्स प्रणाली से अपनी अर्थव्यवस्थाओं की जरुरतों के साथ कब तक
न्याय पाएंगे?
अलबत्ता जीएसटी
की शुरुआत के वक्त यह तय हो गया था कि जब तक केंद्र सरकार राज्यों को जीएसटी होने
वाले नुकसान की भरपाई करती रहेगी. , यह एकजुटता बनी रहेगी. नुकसान की भरपाई की स्कीम इस साल जून से बंद हो
जाएगी. इसलिए दरारें उभरना तय है
कोविड वाली मंदी से जीएसटी की एकजुटता को पहला झटका
लगा था. केंद्र सरकार राज्यों को हर्जाने का भुगतान नहीं कर पाई. बड़ी रार मची.
अंतत: केंद्र ने राज्यों के कर्ज लेने की सीमा बढ़ाई. मतलब यह कि जो संसाधन राजस्व के तौर पर मिलने
थे वह कर्ज बनकर मिले. इस कर्ज ने राज्यों की हालत और खराब कर दी.
इसलिए जब राज्यों को पेट्रोल डीजल सस्ता करने की
राय दी जा रही तब वित्त मंत्रालय व
जीएसटी काउंसिल इस उधेड़बुन में थे कि जीएसटी की क्षतिपूर्ति बंद करने पर राज्यों
को सहमत कैसे किया जाएगा? कमजोर अर्थव्यवस्था वाले
राज्यों का क्या होगा?
बकौल वित्त आयोग जीएसटी से केंद्र व राज्य को करीब
4 लाख करोड़ का सालाना नुकसान हो रहा है.
जीएसटी में भी प्रभावी टैक्स दर 11.4 फीसदी है जिसे बढ़ाकर 14 फीसदी किया जाना है, जो रेवेन्यू न्यूट्रल रेट है यानी इस पर सरकारों को नुकसान नहीं होगा.
जीएसटी काउंसिल 143 जरुरी उत्पादों टैक्स दर 18
फीसदी से 28 फीसदी करने पर विचार कर रही है ताकि राजस्व बढ़ाया जा सके.
इस हकीकत के बीच यह सवाल दिलचस्प हो गया है कि क्या
केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी में कमी के बाद राज्य सरकारें पेट्रोल डीजल पर टैक्स
घटा पाएंगी? कुछ तथ्य पेशेनजर हैं
- 2018 से
2022 के बीच पेट्रो उत्पादों से केंद्र सरकार का राजस्व करीब 50 फीसदी बढ़ा लेकिन
राज्यों के राजस्व में केवल 35 फीसदी की बढ़त हुई. यानी केंद्र की कमाई ज्यादा थी
- 2016 से 2022 के बीच केंद्र का कुल टैक्स संग्रह
करीब 100 फीसदी बढ़ा लेकिन राज्यों इस संग्रह में हिस्सा केवल 66 फीसदी बढ़ा. केंद्र के राजस्व सेस और सरचार्ज का हिस्सा 2012 में 10.4 फीसद से बढ़कर 2021 में 19.9 फीसद हो गया है. यह राजस्व राज्यों
के साथ बांटा नहीं जाता है. नतीजतन राज्यों ने जीएसटी के दायर से से बाहर रखेग
गए उत्पाद व सेवाओं मसलन पेट्रो उत्पाद ,
वाहन, भूमि पंजीकरण आदि पर बार बार टैक्स
बढ़ाया है
- केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी के लिए वित्त
आयेाग के नए फार्मूले से केंद्रीय करों में
आठ राज्यों (आंध्र, असम, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश) का हिस्सा 24 से
लेकर 118 (कर्नाटक) फीसद तक घट सकता है (इंडिया रेटिंग्स रिपोर्ट)
- केंद्र से ज्यादा अनुदान के लिए राज्यों को शिक्षा, बिजली और खेती में बेहतर प्रदर्शन करना होगा. इसके लिए बजटों से खर्च बढ़ानाप पडेगा.
- कोविड की मंदी के बाद राज्यों का कुल कर्ज जीडीपी के
अनुपात में 31 फीसदी की रिकार्ड ऊंचाई पर है. पंजाब, बंगाल, आंध्र , केरल, राजस्थान जैसे राज्यों का कर्ज इन राज्यों जीडीपी (जीएसडीपी) के अनुपात में 38 से 53 फीसदी तक है.
- जीएसटी की हर्जाना बंद होने से जीएसटी दरें बढ़ेंगी. केंद्र
के बाद राज्यों ने पेट्रोल डीजल सस्ता किया तो जीएसटी की दरों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी
का खतरा है. जो खपत को कम करेगा
- केंद्र और राज्यों का सकल कर्ज जीडीपी के अनुपात 100
फीसदी हो चुका है. ब्याज दर बढ़ रही है, अब राज्यों 8 फीसदी पर भी कर्ज मिलना मुश्किल है
भारत का संघवाद बड़ी कश्मकश से बना था. इतिहासकार
ग्रेनविल ऑस्टिन लिखते हैं कि यह बंटवारे के डर का असर था कि 3 जून 1947 को
भारत के बंटवारे लिए माउंटबेटन प्लान की घोषणा के तीन दिन के भीतर ही भारतीय संविधान
सभा की उप समिति ने बेहद शक्तिशाली अधिकारों
से लैस केंद्र वाली संवैधानिक व्यवस्था की सिफारिश कर दी.
1946 से 1950 के बीच संविधान सभा में, केंद्र बनाम राज्य के अधिकारों पर लंबी बहस चली. (बलवीर अरोरा, ग्रेनविल ऑस्टिन और बी.आर. नंदा की किताबें) यह डा. आंबेडकर थे जिन्होंने
ताकतवर केंद्र के प्रति संविधान सभा के आग्रह को संतुलित करते हुए ऐसे ढांचे पर सहमति
बनाई जो संकट के समय केंद्र को ताकत देता था लेकिन आम तौर पर संघीय (राज्यों को संतुलित अधिकार) सिद्धांत पर काम
करता था.
संविधान लागू होने के बाद बनने वाली पहली संस्था
वित्त आयोग (1951) थी जो आर्थिक
असमानता के बीच केंद्र व राज्य के बीच टैक्स व संसाधनों के न्यायसंगत बंटवारा
करती है
2017 में भारत के आर्थिक संघवाद के नए अवतार में राज्यों
ने टैक्स लगाने के अधिकार जीएसटी काउंसिल को सौंप दिये थे. महंगाई महामारी और
मंदी इस सहकारी संघवाद पर पर भारी पड़ रही
थी इस बीच सुप्रीम कोर्ट जीएसटी की व्यवस्था
में राज्यों को नई ताकत दे दी है. तो क्या
श्यामलन की फिल्म सिक्स्थ सेंस की तर्ज पर जीएसटी के मंच पर केंद्र राज्य का रिश्तों का एंटी क्लाइमेक्स
आने वाला है?