सॉफ्टवेयर इंजीनियर वरुण विदेश में नौकरी के प्रस्ताव को फिर हासिल करने में लगा है जो उसने दो साल पहले नकार दिया था. परमानेंट वीजा के नए विज्ञापन उसे अपने लिए बनाए गए लगते हैं.
सुविधाओं की कमी न होती तो वरुण के माता-पिता राजस्थान के एक कस्बे में बसा बसाया संसार छोड़कर वरुण के पास रहने न आते. नौकरी जमते और मकान जुगाड़ते ही वरुण ने बुजुर्ग मां-बाप को कस्बाई अस्पतालों के बुरे हाल का वास्ता दिया और नोएडा ले आया. उसके चचेरे भाई भी अपने रिटायर्ड माता-पिता के साथ गाजियाबाद में बसे थे जहां से न अस्पताल दूर थे, न बच्चों के स्कूल की दिक्कत.
इस साल अप्रैल में कोविड के कहर के वक्त वरुण का परिवार किसी भी कीमत पर पिता के लिए अस्पताल नहीं तलाश सका. उन्होंने लंगरों में ऑक्सीजन की भीख मांगी लेकिन परिवार के दो बुजुर्ग साथ छोड़ गए.
वरुण के माता-पिता अब संपत्ति बेचकर बेटी के पास विदेश में बसने को तैयार हैं.
वरुण उन 23 करोड़ लोगों में नहीं है जो महामारी व लॉकडाउन के कारण गरीबी की रेखा से नीचे खिसक (सर्वे अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी) गए. अब जिनके लिए निम्न मध्यम वर्ग होना भी बहुत मुश्किल है. यह बात तो उन 13-14 करोड़ मध्यवर्गीय परिवारों की है जो सोच ही नहीं सकते थे कि दिल्ली, लखनऊ, नोएडा, गांधीनगर के शानदार अस्पतालों में किसी रोज ऑक्सीजन न होने से उनके परिजन दम तोड़ देंगे.
यही मध्य वर्ग 25 साल में भारत की प्रत्येक चमत्कारी कथा का शुभंकर रहा है. यही वर्ग गांवों से संपत्ति खींच कर शहर लाया और नए नगर (80 फीसद मध्य वर्ग नगरीय) बसा दिए. उनके खर्च (60 फीसद जीडीपी खपत पर निर्भर) से अर्थव्यवस्था झूम उठी. शहरों में चिकित्सा, मनोरंजन और परिवहन, संचार का नया ढांचा बन गया. इसी वर्ग ने ऑटोमोबाइल, सूचना तकनीक, बैंकिंग, रिटेल, हाउसिंग, फार्मा जैसे उद्योगों को नए भारत की पहचान बना दिया.
यह बिंदास मध्य वर्ग, जो डिजिटल इंडिया वाले नए भारत को गर्व से कंधे पर लेकर चलता था उसकी नाउम्मीदी दोहरी है. वेतनभोगियों की तादाद जुलाई 2019 के 8.6 करोड़ से घटकर, जुलाई 2021 में 7.6 करोड़ रह गई (सीएमआइई). करीब 3.2 करोड़ लोग मध्य वर्ग से बाहर (प्यू रिसर्च 2020) हो गए.
मध्य वर्गीय परिवारों का संकट बहुआयामी है. बहुतों का रोजगार गया है या कमाई घट गई है. बीते एक साल में जीडीपी के अनुपात में परिवारों का कर्ज 35 से 37 फीसद हो गया. खुदरा (कार, मकान, शिक्षा) कर्ज लेने वालों ने, कर्ज का भुगतान टालने का विकल्प का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया. भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ सालाना खर्च योग्य आय 44 फीसद (2011 तक 30 फीसद) हो गया है.
कोविड के बाद आई महंगाई ने खर्च और बचत दोनों मामलों में गरीब किया है. जिंदगी की लागत बढ़ रही है और वेतन व बचत पर रिटर्न कम हो रहा है. सनद रहे कि यही वर्ग अपने खर्च के जरिए कई निर्धन परिवारों को जीविका देता था.
विदेश में बसने या परमानेंट वीजा दिलाने के विज्ञापन यूं ही नहीं बढ़ गए. नौकरी और पढ़ाई के लिए विदेशी विकल्पों की तलाश तेज हो रही है. परदेसी रिश्तेदारों से सलाह ली जा रही है. परमानेंट वीजा जैसे विकल्पों के लिए बचतें और संपत्ति टटोली जा रही है.
सनद रहे कि टैक्स कानूनों की वजह से 2019 तक करीब 7000-8000 सुपर रिच हर साल भारत छोड़ (मोर्गन स्टेनले रिपोर्ट) रहे थे, अब बारी उच्च मध्य वर्ग की है?
अलबत्ता भारतीय मध्य वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा किसी भी तरह विदेश नहीं बस सकेगा. वह जाएगा कहां? जिस बेहतर जिंदगी के लिए वह शहर आया, वहां हाल और बुरा हो गया.
भारतीय मध्यवर्ग की जिंदगी में सरकार कोई गुणात्मक बढ़ोतरी नहीं करती. वह शिक्षा और सेहत के लिए सरकार को टैक्स देता है और यह सेवाएं निजी क्षेत्र से खरीदता है. उसे रोजगार निजी क्षेत्र से मिलते हैं और रिश्वतें सरकार वसूलती है. इस मध्य वर्ग के टैक्स और बचत पर पलने वाले वीआइपी, कमाई तो छोडि़ए महंगाई तक को लेकर संवेदनशील नहीं हैं.
महामारियों और युद्धों के बाद एक पूरी पीढ़ी अपने आर्थिक व्यवहार बदलती है, मध्य वर्ग की मांग टूटने का असर बाजार पर दिख रहा है. इस वर्ग का मोहभंग लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. अरस्तू कहते थे, मध्य वर्ग सबसे मूल्यवान है. यह निर्धन और अमीरों के बीच खड़ा होता है. निर्धनों को सत्ता खरीद लेती है और समृद्ध वर्ग सत्ता को खरीद लेते हैं. सरकारों को काबू में रखने के लिए मध्य वर्ग का बड़ा होते जाना जरूरी है क्योंकि शासक तो बस यही चाहते हैं कि मुट्ठी भर अमीरों की मदद से करोड़ों गरीबों पर राज किया जा सके.
भारत की सरकारों को हर हाल में ऐसा सब कुछ करना होगा, जिससे मध्य वर्ग का आकार बढ़े क्योंकि मौजूदा प्रजनन दर पर एक बड़े हिस्से में 2030 से बुढ़ापा शुरू हो जाएगा. क्या भारत की बड़ी आबादी बूढ़े होने से पहले मध्य वर्गीय हो सकेगी?
उलटी गिनती शुरू होती है अब.