उपचुनाव नतीजों
के बाद मोदी समझ गए होंगे कि बहुमत वाली सरकार के साथ अपेक्षाएं नाहक ही नहीं
जोड़ी जाती हैं.
इस बात की कोई
गारंटी नहीं कि प्रचंड बहुमत वाली सरकार साहसी और क्रांतिकारी ही होगी.
अप्रत्याशित रूप से बड़ी सफलताएं, कभी-कभी जोखिम लेने की कुव्वत को इस कदर घटा देती हैं कि
ताकतवर सरकारें, अवसर और
अपेक्षाओं के बावजूद, एक दकियानूसी
निरंतरता की ओट में खुद को ज्यादा महफूज पाती हैं. मोदी सरकार के 100 दिनों पर
मंत्रियों के बयानों से गुजरते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल नहीं कि नई
सरकार के पहले 100 दिन, दरअसल पिछली
सरकार की बड़ी स्कीमों को मोदी ब्रांड के सहारे नए सिरे से पेश करने की कोशिश में
बीते हैं. विवादों का डर कहें या तजुर्बे की कमी लेकिन सरकार ने लीक तोडऩे और
पुराने को बदलने का कोई प्रत्यक्ष जोखिम नहीं लिया. यही वजह थी कि ताजा उपचुनावों
में बीजेपी विकास के वादों को प्रामाणिक बनाने वाले तथ्य पेश नहीं कर सकी और लव
जेहाद जैसे मुद्दों पर वोटर रीझने को तैयार नहीं हुए.
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