निजी कंपनियों का सीएजी ऑडिट, निजीकरण से उपभोक्ताओं के लाभ की थ्योरी को सवालों में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है।
भारत के आर्थिक सुधार पुरुष बीते हफ्ते जब इतिहास से दया के लिए
चिरौरी कर रहे थे तब तारीख डा. मनमोहन सिंह को केवल एक असफल प्रधानमंत्री के तौर
पर ही दर्ज नहीं कर रहा था तारीख यह भी लिख रही थी कि भारत की दूसरी आजादी उसी व्यकित
की अगुआई में दागी हो गई जिसे खुद उसने ही
गढ़ा था। अनोखा संयोग है कि मनमोहन सिंह का रिटायरमेंट सफर और देश के उदारीकरण
दूसरा ऑडिट एक साथ शुरु हो रहे हैं। देश का संवैधानिक ऑडीटर निजी कंपनियों के
खातों को खंगालेगा और जरुरी सेवाओं की कीमतें तय करने के फार्मूले परखेगा। इस
पड़ताल में घोटालों का अगला संस्करण निकल सकता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
की पहली जांच में देश को प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट व नेता कंपनी गठजोड़ का
पता चला था जबकि दूसरा ऑडिट , निजीकरण से उपभोक्ताओं के लाभ की थ्योरी को सवालों
में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है। भारत
के सुधार पुरोधा का यह परम दुर्भाग्य है कि उनके जाते जाते भारत के खुले बाजार की
साख कुछ और गिर चुकी होगी।